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केजरीवाल का हाल बेहाल: जो बोया वही काट रहे हैं

इसमें कोई संदेह नहीं कि केजरीवाल अपनी हार को शालीनता से स्वीकार नहीं कर सकते

Ambikanand Sahay

बहुत पहले अब्राहम लिंकन ने कहा था, 'चुनाव जनता का होता है. यह उनका निर्णय है. अगर वे अपने शरीर का पिछला हिस्सा आग की तरफ करके जला लें, तो उन्हें छालों के साथ ही बैठना पड़ेगा.'

लगता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के अक्सर दोहराये जाने वाले इस कथन से कोई सबक लेने से इनकार कर दिया है.


उनका मत है कि केंद्र सरकार में बैठे जिन लोगों के पास सत्ता की चाबी है, वे विपक्ष के प्रति निष्पक्ष बर्ताव नहीं कर रहे हैं.

वे यह भी मानते हैं कि दिल्ली नगर निगम के चुनाव में हेराफेरी हुई है. उनके सेनापति गोपाल राय ने एमसीडी में बीजेपी की जीत को ‘ईवीएम लहर’ तक करार दे दिया.

हार स्वीकार नहीं कर पाते केजरीवाल

इसमें कोई संदेह नहीं कि केजरीवाल अपनी हार को शालीनता से स्वीकार नहीं कर सकते. अन्ना हजारे के आंदोलन की बदौलत केजरीवाल का भारतीय राजनीतिक पटल पर एक चमकते सितारे की तरह पदार्पण हुआ था.

उन्हें दो साल पहले पुरस्कार स्वरूप दिल्ली पर राज करने का जबर्दस्त जनादेश भी हासिल हुआ. लेकिन अब जनआंदोलन के ही नेता प्रफुल्ल महंत की तरह इस सितारे के भी पतन की आशंका पैदा हो गई है.

याद करिए कि उन्होंने एमसीडी चुनाव की मतगणना के एक दिन पहले क्या कहा था, 'अगर एग्जिट पोल की भविष्यवाणी की ही तरह एमसीडी में बीजेपी की जबर्दस्त जीत होती है तो वे आंदोलन करेंगे. अगर ऐसे नतीजे आते हैं तो हम ईंट से ईंट बजा देंगे.'

अपनी गलती का खामियाजा भुगत रहे केजरीवाल

अब नतीजे सबके सामने हैं. दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को खारिज कर दिया है. जनता ने शक की कोई गुंजाइश भी नहीं छोड़ा है.

नतीजों के ऐलान के बाद आप नेता और दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के बयान पर भी गौर करिए, '2009 का चुनाव हारने के बाद बीजेपी न पांच साल तक ईवीएम पर रिसर्च किया और महारत हासिल की. वह आज उसी महारत के दम पर एक के बाद एक चुनाव जीत रही है.'

बीजेपी और मोदी विरोधी सभी नेता केजरीवाल की ही तरह प्रतिक्रिया दे रहे हैं. लेकिन इस मामले में शिवसेना की सोच सबसे अलग है.

काम में जीरो, चुनाव में हीरो

इस हफ्ते के शुरू में शिवसेना के मुखपत्र में छपे संपादकीय पर गौर कीजिए: 'काम में जीरो, लेकिन चुनाव में हीरो...एक वक्त था कि कांग्रेस प्रत्येक चुनाव जीता करती थी. वे काम में जीरो थे, लेकिन चुनाव में हीरो थे. आज बीजेपी के साथ भी ऐसा ही हो रहा है.'

सामना का यह संपादकीय 19 अप्रैल में महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में शिवसेना के खराब प्रदर्शन के बाद लिखा गया था.

संपादकीय आगे कहता है, 'इस बार शिवसेना अपना खाता खोलने में भी नाकाम रही. लेकिन हम बीजेपी की जीत के लिए ईवीएम पर दोष नहीं मढ़ेंगे.' 'लेकिन इस बात की जांच-पड़ताल जरूर होनी चाहिए कि बीजेपी से जनता आखिर इतनी मंत्रमुग्ध क्यों है, और किसान और नौजवान बीजेपी के पीछे संपेरे की धुन पर सांप की तरह क्यों भागे जा रहे हैं.'

केजरीवाल से बेहतर है शिवसेना  

आप सामना के संपादकीय से सहमत या असहमत हो सकते हैं, लेकिन एक बात बिल्कुल साफ है: केजरीवाल के विपरीत उद्धव ठाकरे चुनावों में हार पर अपने रुख में कम से कम 50 फीसदी सही हैं.

वे जांच-पड़ताल कर यह समझना चाहते हैं कि आखिर बीजेपी लगातार क्यों चुनाव जीत रही है.

दिल्ली और महाराष्ट्र के चुनावों को छोड़ भी दें तो भी यह सच है कि पिछले एक-दो साल में बीजेपी अन्य राज्यों में भी लगातार चुनाव जीत रही है.

2016 में असम विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद बीजेपी जिस गति से आगे बढ़ी और उत्तर प्रदेश का चुनाव जीता, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था.

उसने गुजरात, ओडिशा और चंडीगढ़ के निकाय चुनावों में भी अच्छा प्रदर्शन किया. साफ है कि बीजेपी ने अब पूरे देश में कांग्रेस का स्थान ले लिया है.

क्या आम आदमी में पुराने नेता लौटेंगे?

ऐसा नहीं है कि एमसीडी चुनाव के नतीजों का राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य पर असर नहीं पड़ेगा.

इस बात की प्रबल संभावना है कि विपक्षी दल अब जोरशोर से बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन बनाने की कोशिशों में जुट जाएंगे.

उनके पास ऐसा करने के ठोस कारण हैं: देश भर में बीजेपी के बढ़ते ग्राफ को देख वे समझ गए हैं कि उनके लिए अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है.

वे जानते हैं कि बीजेपी को रोकने का एक ही तरीका है कि बगैर देर किये विपक्षी दलों के बीच ‘इमानदार’ एकता कायम की जाए, अन्यथा वे देश के सियासी पटल से ही गायब हो जाएंगे.

वे इस बात को अच्छी तरह समझ रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, जेडीयू के नीतीश कुमार, आरजेडी के लालू यादव, टीएमसी की ममता बनर्जी, सीपीएम के सीताराम येचुरी, बीजेडी के नवीन पटनायक, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, बीएसपी की मायावती, डीएमके के एम. के. स्टालिन और अन्य नेता पहले से ही एक दूसरे से प्रत्क्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में हैं.

जहां तक आप की बात है तो केजरीवाल पहले ही उम्मीद जता चुके हैं कि आप छोड़कर जाने वाले अच्छे लोग फिर से पार्टी में वापस आ जाएंगे. यह अलग बात है कि आप से अलग हो चुके अच्छे लोग अब पार्टी को वापस आने लायक समझते हैं या नहीं.