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केजरीवाल की दिल्ली में बैंड-बाजा-बारात पर बैन का संकट, अब कैसे कहें- मेरी शादी में जरूर आना

दिल्ली सरकार के इस अनोखे सुझाव से शादियों के सीजन में डीजे की जगह विपक्ष के ये सवाल गूंज सकते हैं कि क्या आने वाले समय में दिल्ली में बैंड-बाजा-बारात से पहले केजरीवाल सरकार से शादी के कार्ड छापने की इजाजत लेनी पड़ेगी?

Kinshuk Praval

दिल्ली में शादी की पार्टी में बनने वाले खाने और आने वाली मेहमानों की भीड़ पर दिल्ली सरकार नजर रखने का विचार कर रही है. दिल्ली सरकार ने महंगी शादियों में होने वाले खाने और पानी की बर्बादी और मेहमानों की लंबी-चौड़ी लिस्ट की वजह से दिल्ली की सड़कों पर ट्रैफिक जाम जैसी बातों का हवाला देते हुए दिल्ली में खर्चीली शादियों पर नियंत्रण का पहरा बिठाने की बात की है.

दिल्ली के मुख्य सचिव विजय देव ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि दिल्ली सरकार खर्चीले शादी समारोह और बड़ी पार्टियों में आने वाले मेहमानों की तादाद को सीमित करने और खाने की बर्बादी को रोकने के लिए व्यंजनों की संख्या और ट्रैफिक की जांच करने की योजना पर विचार कर रही है.


कुछ ही दिन पहले दिल्ली में भूख से कथित मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने शादियों में खाने की बर्बादी पर सवाल उठाया था. शहर में पानी की कमी और भूख से होने वाली कथित मौत के चलते सुप्रीम कोर्ट ने इसे ‘अस्वीकार्य’ बताया था. जिस पर मुख्य सचिव ने कहा कि दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट की चिंता से इत्तेफाक रखती है और वो दिल्ली में अमीरों और गरीबों की जरूरतों के बीच संतुलन रखने की पक्षधर है.

दिल्ली सरकार के इस अनोखे सुझाव से शादियों के सीजन में डीजे की जगह ये सवाल गूंज सकते हैं कि क्या आने वाले समय में दिल्ली में बैंड-बाजा-बारात से पहले केजरीवाल सरकार से शादी के कार्ड छापने की इजाजत लेनी पड़ेगी? क्या दिल्ली सरकार खाने का मेन्यू तय करेगी? क्योंकि दिल्ली सरकार ये तय करने की योजना बना रही है कि शादी में कितने मेहमान आ सकेंगे और कितने नहीं.

ऐसे में सवाल ये भी उठेंगे कि क्या दिल्ली सरकार ये भी तय करेगी कि ट्रैफिक जाम से बचने के लिए कौन से मेहमान निजी वाहन और कौन से मेहमान मेट्रो या फिर सार्वजनिक परिवहन की गाड़ी का इस्तेमाल करेंगे?

80 के दशक में ‘इडियट बॉक्स’ कहे जाने वाले टेलीविजन पर एक विज्ञापन बहुत चर्चित हुआ था. शादी ब्याह में बारातों का स्वागत करने के लिए कहा जाता था कि बारात का स्वागत पान-मसाले से होगा. पान-मसाला तो बस स्वागत का प्रतीक था विज्ञापन के लिए लेकिन समय के साथ जैसे देश भारत से इंडिया बनता गया तो शादियों में धूमधाम और चकाचौंध भी बढ़ने लगी. ऐसे में दिल्ली सरकार की खर्चीली शादियों पर सादगी के प्रस्ताव को खारिज भी नहीं किया जा सकता है क्योंकि वो बर्बाद होने वाले खाने को गरीबों तक पहुंचाने की भी योजना बना रही है. लेकिन सवाल ये है कि मेहमानों की लिस्ट कैसे फाइनल होगी?

देश धूमधाम से शादी ब्याह करना न सिर्फ एक रिवाज है बल्कि ये स्टेटस सिंबल भी माना जाता है. अब तो हालात ऐसे बदलते जा रहे हैं कि लोग देश से बाहर शादी करने में ज्यादा गौरव महसूस करते हैं.दरअसल देश में धूमधाम से शादी करने की पुरानी परंपरा रही है क्योंकि ये जीवन का पहला अनुभव होता है और जिस परिवार में ये पहली या फिर आखिरी शादी होती है तो वहां फिर किसी शानशौकत या जरूरत की कमी नहीं होने दी जाती है. चूंकि शादी-ब्याह में अगर गलती से भी कोई मेहमान या रिश्तेदार न्योता देने में छूट जाए तो जिंदगी भर की नाराज़गी हो जाती है और ऐसे में किसी मेहमान को न बुलाना बेहद कठिन फैसला होता है जिसे थर्ड अंपायर यानी दिल्ली सरकार पर छोड़ा नहीं जा सकता है. लेकिन दिल्ली सरकार अब ये तय करने की कोशिश में है कि कौन मेहमान आएगा और कौन नहीं ताकि दिल्ली में शादी में खाने और पानी की बर्बादी न हो सके.

दिल्ली सरकार की एक दलील ये भी है कि वो शादी की पार्टियों में बचने वाले खाने को बर्बादी से बचाने के लिए एनजीओ के जरिए गरीबों तक पहुंचाने पर मंथन कर रही है. दिल्ली सरकार व्यंजनों की लिस्ट को सीमित करने के लिए कैटरिंग व्यवस्था को संस्थागत बनाने पर विचार कर रही है.

दिल्ली सरकार को 31 जनवरी तक सुप्रीम कोर्ट को जवाब देना है और ऐसे में बहुत मुमकिन है कि दिल्ली सरकार एक महीने के भीतर योजना का फाइनल ड्राफ्ट तैयार कर ले.

इससे पहले दिल्ली को पॉल्यूशन से बचाने के लिए दिल्ली सरकार ऑड-ईवन का फॉर्मूला लाई थी और अब कोर्ट को शादी के साइड इफैक्ट बता रही है. इससे सोचने वाली बात ये है कि अगर ऐसा होता है तो फिर आज बात खाने के मेन्यू पर है तो कल डीजे के गाने पर न पहुंच जाए.  कहीं ऐसा न हो कि भविष्य में शादियों का ड्रेस-कोड भी दिल्ली सरकार तय कर दे और सूट-टाई के साथ सिर पर आम आदमी पार्टी की टोपी भी अनिवार्य हो जाए?