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लोगों की शिकायतें सुलझाने के मामले में फिसड्डी है एमसीडी

ढाई सालों में 10 प्रतिशत से भी कम मामले सुलझाए

Kangkan Acharyya

जनशिकायतों के निपटारे के मामले में एमसीडी की स्थिति राजधानी में मौजूद दूसरे सरकारी विभागों से कहीं ज्यादा खराब है. इस बात का खुलासा पब्लिक ग्रीवांस मॉनिटरिंग सिस्टम (लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली ) से मिले दस्तावेजों के जरिए हुआ है.

फ़र्स्टपोस्ट ने जन शिकायतों के निपटारे से संबंधित 21 सरकारी विभागों और एजेंसियों के आंकड़े की जब जांच की तो लंबित मामलों की सबसे ज्यादा संख्या एमसीडी के पास मिली. लेकिन फ़र्स्टपोस्ट के ये आंकड़े आम आदमी पार्टी के लिए सियासी हथियार बन गए हैं, जो फिलहाल एमसीडी चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस से काफी पीछे दिख रही है.


10 प्रतिशत से भी कम मामले सुलझाए 

रिकॉर्ड की बात करें तो पिछले ढाई साल के दौरान एमसीडी के पास 50983 मामले आए. इनमें 5588 मामलों का निपटारा किया गया तो 45 हजार से ज्यादा मामले लंबित पड़े हैं.

पब्लिक ग्रीवांस डिपार्टमेंट के एक सूत्र ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि राजधानी दिल्ली में पिछले ढाई साल के दौरान जन सेवा मुहैया कराने वाली सरकारी एजेंसियों और विभागों के खिलाफ कुल 2 लाख 26 हजार 573 मामले दर्ज किए गए.

इनमें से महज 45 हजार मामलों को ही पूरी तरह निपटाया जा सका. जबकि बचे हुए 1 लाख 81 हजार 573 मामलों में एमसीडी से संबंधित लंबित मामलों का प्रतिशत 25 फीसदी है. जिनका निपटारा संतोषप्रद तरीके से नहीं किया जा सका. हैरानी तो इस बात को लेकर होती है कि किसी भी सरकारी विभाग या एजेंसी के पास इतने लंबित मामले नहीं हैं.

एमसीडी के पास कुल जितने लंबित मामले हैं, उनमें दिल्ली पुलिस के पास अकेले 20 हजार ऐसे मामले हैं जिनका निपटारा नहीं किया जा सका है. ऊपर जिस समय का जिक्र किया गया है उस दौरान पीजीएमएस के पास दिल्ली पुलिस के खिलाफ 23430 जनशिकायत के मामले आए थे.

इनमें से महज 2095 मामलों का ही निपटारा संतोषप्रद रहा. फ़र्स्टपोस्ट को पीजीएमएस के एक सूत्र ने बताया कि चूंकि दिल्ली पुलिस राज्य सरकार के अधीन नहीं आती है लिहाजा दिल्ली सरकार के पास बस इन शिकायतों के निपटारे के लिए आग्रह भर करने का ही अधिकार बच जाता है.

आरोपों को नकारता है पीजीएमएस

पीजीएमएस के कर्मचारी नीरज कुमार ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि ऐसी ही हालत एमसीडी की भी है. वो बताते हैं, ' दिल्ली सरकार के किसी विभाग के खिलाफ जब कभी भी कोई शिकायत दर्ज की जाती है तो बतौर राज्य सरकार का हिस्सा हम दबाव तो बना सकते हैं. लेकिन एमसीडी के खिलाफ हम कोई ऑर्डर जारी नहीं कर सकते क्योंकि ये दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है'.

आखिर एमसीडी के पास इतने लंबित मामले क्यों हैं? इसके जवाब में उन्होंने बताया कि एमसीडी के चाहते हुए भी कई ऐसे मामले हैं जिन्हें संतोषप्रद तरीके से सुलझाया नहीं जा सका है.

पीजीएमएस के पास उपलब्ध रिकॉर्ड बताते हैं कि तीनों एमसीडी के खिलाफ 2949 मामले हैं जो उस सूची में रखे गए हैं. इनका निपटारा नहीं हो सकता. उन्होंने ये भी बताया कि कुछ मामले ऐसे भी हैं जिसे एमसीडी कर्मचारियों ने अटेंड तक नहीं किया. उन्होंने कहा कि 'जो अनअटेंडेड’ मामले हैं उनके बारे में हम उन्हें हमेशा याद दिलाते रहते हैं'.

एमसीडी के पास सबसे ज्यादा लंबित मामले हैं. पीजीएमएस रिकॉर्ड के मुताबिक नॉर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के पास 15.42 फीसदी, साउथ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के पास 10.74 फीसदी और ईस्ट दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के पास 18.39 फीसदी ‘अनअटेंडेंड’ मामले हैं.

लेकिन ‘अनअटेंडेड’ मामले में दिल्ली डेवलेपमेंट अथॉरिटी इस सूची में सबसे ऊपर है. डीडीए के पास 24.29 फीसदी ‘अनअटेंडेड’ मामले हैं. हालांकि एमसीडी पीजीएमएस के आंकड़ों को सिरे से खारिज करती है. और जन शिकायतों को सुलझाने में नागरिक संस्थाओं के ढीले ढाले रवैए के लिए आरोपों का सहारा लेती है.

दो मेयरों के अलग-अलग जवाब

नॉर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के मेयर संजीव नय्यर ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा कि ये आंकड़े गलत हैं. उन्होंने कहा, 'आंकड़े जबरदस्ती पैदा किए गए हैं. इससे ज्यादा इस संबंध में मुझे कुछ नहीं कहना है.'

दूसरी ओर ईस्ट दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के मेयर सत्या शर्मा ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा कि दिल्ली सरकार ने जिन कर्मचारियों की तैनाती की है, वही दरअसल जनता के लिए दिक्कत पैदा कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि 'दिल्ली सरकार को हमने कई बार पहले लिखा है और आग्रह किया है कि इन कर्मचारियों को हटाया जाए. लेकिन इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. ये कर्मचारी जो भी करते हैं उन्हें दिल्ली सरकार की शह मिली होती है. लेकिन पीजीएमएस के एक कर्मचारी इन आरोपों को खारिज करते हैं और बताते हैं कि ये सारे शिकायत लिखित हैं और सिस्टम में रजिस्टर्ड हैं.

उन्होंने कहा कि 'यहां तक कि किस शिकायत को पूरी तरह सुलझा लिया गया है इसे भी मार्क करने के लिए हमें शिकायकर्ता से फोन पर उसकी सहमति लेनी पड़ती है. इन सारी प्रक्रियाओं के हर स्तर का रिकॉर्ड यानी शिकायत करने से लेकर उसे सुलझाने तक हम अपने पास रखते हैं. और ये सबूत डिजिटल हैं जिन्हें कोई नहीं नकार सकता है'.

यहां तक कि दिल्ली के कई लोग भी एमसीडी की जनशिकायतों को निपटाने के तरीके से नाराज दिखते हैं. दिल्ली के नागरिक दीपक दुआ कहते हैं कि उन्होंने वर्ष 2015 में नॉर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की वेबसाइट पर विजय विहार फेज 2 इलाके में रुके हुए पानी की समस्या की शिकायत की थी. उन्होंने www.consumercomplaints.in वेबसाइट पर अपनी शिकायत को अपलोड किया. लेकिन इसके बावजूद उनकी समस्या की सुनवाई नहीं हुई.

उन्होंने कहा कि 'सिर्फ एक बार उन लोगों ने मुझे फोन किया और मेरा पता पूछा. लेकिन इसके बाद उनकी तरफ से कभी कुछ नहीं किया गया.

अशोक अग्रवाल जो खुद एक एक्टिविस्ट हैं उन्होंने फ़र्स्टपोस्ट से कहा कि दिल्ली सरकार के कई ऐसे विभाग हैं जो जनशिकायतों का सही से निपटारा नहीं कर पाए हैं. उन्होंने कहा कि 'पीजीएमएस कागजी शेर की तरह है. वह किसी कर्मचारी के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकती. यही वजह है कि कई विभागीय मामले हैं जिन्हें सुलझाया नहीं जा सका है'.

बहुत कम विभाग ही जनशिकायतें सुलझाने में सफल

संतोषप्रद तरीके से जनशिकायतों की सुनवाई करने में कुछ ही सरकारी एजेंसियां और विभाग सफल कहे जा सकते हैं. लेबर डिपार्टमेंट में 6 फीसदी और दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूवमेंट बोर्ड में 9 फीसदी मामले ही आज तक पूरी तरह सुलझाए जा सके हैं.

हालांकि नीरज कुमार इस आरोप पर जवाब देते हैं. उनका कहना है कि कई मामले हैं जिनके निपटारे में समय लगता है. इसलिए नहीं कि वो ना सिर्फ पेंचीदा होते हैं, बल्कि इसलिए भी कि वो काफी पुराने होते हैं.

वो कहते हैं कि दिल्ली सरकार के किसी भी कर्मचारी के जन शिकायत को सुलझाने को लेकर थोड़ी सी भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जा सकती है. ऐसे कई उदाहरण हैं जब जनशिकायत निपटारा मामले में लापरवाही करने के चलते दिल्ली सरकार ने अपने कर्मचारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है.

दरअसल वर्ष 2015 में जब दिल्ली की सत्ता पर आम आदमी पार्टी काबिज हुई तब से ही दिल्ली सरकार ने पब्लिक ग्रीवांस मॉनिटरिंग सिस्टम की शुरुआत की थी. इस व्यवस्था के तहत दिल्ली सरकार के विभाग और एजेंसियों के खिलाफ जो जन शिकायतें की जाती हैं, उन्हें कर्मचारियों की एक टीम मॉनिटर करती है. और जल्द से जल्द उसका निपटारा कर राजधानी में जन सेवा मुहैया कराती है.