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केजरीवाल की एक और अग्निपरीक्षा, बवाना उपचुनाव में साख दांव पर

बवाना सीट का उपचुनाव आम आदमी पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है

Ravishankar Singh

बवाना विधानसभा उपचुनाव को लेकर दिल्ली की राजनीति एक बार फिर से गरमाने लगी है. दिल्ली की तीनों बड़ी पार्टियों ने बवाना उपचुनाव को लेकर कमर कस ली है. उपचुनाव 23 अगस्त को है.

बवाना उपचुनाव को लेकर बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समेत अन्य राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं. हम आपको बता दें कि बीजेपी ने इस चुनाव में बवाना से आम आदमी पार्टी के विधायक रहे वेद प्रकाश को अपना उम्मीदवार बनाया है.


वेद प्रकाश ने पिछला चुनाव आम आदमी पार्टी के टिकट पर जीता था. लेकिन, वेद प्रकाश ने एमसीडी चुनाव के ठीक पहले विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया था.

ऐसे में बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा जमाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है. बीजेपी ने बवाना सीट जिताने की जिम्मेदारी पार्टी नेताओं में बांटी है. पार्टी के बाहरी दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा को विशेषतौर पर जिम्मेदारी सौंपी गई है.

दूसरी तरफ, बवाना चुनाव को देखते हुए नेताओं का पाला बदलने का खेल भी शुरू हो गया है. बवाना से बीजेपी के विधायक रहे और पिछले चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी गुग्गन को आम आदमी पार्टी ने अपने पाले में कर लिया है.

आम आदमी पार्टी ने पहले से ही यहां से भाई रामचंद्र को प्रत्याशी बना रखा है. लेकिन, गुग्गन के पार्टी में शामिल होने के बाद चर्चा चल रही है कि अब उन्हें ही आप का प्रत्याशी बनाया जाएगा.

वहीं, कांग्रेस ने बवाना उपचुनाव के लिए पूर्व विधायक सुरेंद्र कुमार को मैदान में उतारा है. एमसीडी चुनाव और हाल के रजौरी गार्डेन उपचुनाव में कांग्रेस ने बढ़िया प्रदर्शन किया था.

स्वराज इंडिया पार्टी और बीएसपी जैसी पार्टियां भी बवाना उपचुनाव में मुख्य राजनीतिक पार्टियों का गणित बिगाड़ने में लग गई हैं. बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा के मुकाबले कांग्रेसी नेताओं ने बाहरी दिल्ली के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को चुनाव की कमान सौंपने की मांग बढ़ती जा रही है.

प्रवेश साहिब सिंह वर्मा

जबकि, कांग्रेस नेताओं का एक खेमा सज्जन कुमार को आगे किए जाने के पक्ष में नहीं है. कांग्रेस कार्यकर्ताओं का एक बड़ा तबका आप और बीजेपी से मुकाबले के लिए सज्जन को मजबूत विकल्प मान रहा है.

बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले बवाना विधानसभा क्षेत्र में लगभग तीन लाख 87 हजार वोटर हैं. इनमें सिर्फ सवा लाख वोटर 25 गांवों में रहते हैं. झुग्गी-झोपड़ी कॉलोनियों में रहने वाले वोटरों की तादाद भी एक लाख के आस-पास है.

दिल्ली देहात से ताल्लुक रखने वाले बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. साहिब सिंह वर्मा और कांग्रेस के सज्जन कुमार का बाहरी दिल्ली में अच्छा वर्चस्व रहा है. कई सालों तक इस क्षेत्र में कांग्रेस का कब्जा रहा. साहिब सिंह वर्मा ने जब से यहां से बीजेपी से चुनाव लड़ना शुरू किया कांग्रेस की जड़ें हिलनी शुरू हो गईं.

पिछले दो-तीन दशक से हार-जीत भले ही इन दोनों दिग्गजों में से किसी की होती रही. लेकिन, बाहरी जनता के लिए दोनो प्रिय बने रहे. 2007 में साहिब सिंह वर्मा के आकस्मिक निधन के बाद काफी दिनों के बाद उनके पुत्र प्रवेश वर्मा ने इस क्षेत्र में फिर से बीजेपी के लिए आधार बनाना शुरू कर दिया है.

साल 1993 से अस्तित्व में आई दिल्ली विधानसभा के लिए हुए छह चुनावों में से तीन बार कांग्रेस ने दो बार बीजेपी ने और एक बार आम आदमी पार्टी ने बवाना सीट से जीत हासिल की है.

कांग्रेस के उम्मीदवार सुरेंद्र कुमार के बारे में कहा जाता है कि वह सज्जन कुमार के काफी करीबी हैं. सुरेंद्र कुमार ने कांग्रेस का मोर्चा मजबूती से थाम रखा है लेकिन, पार्टी की गुटबाजी कम होने का नाम नहीं ले रही है.

आम आदमी पार्टी ने भी बवाना उपचुनाव को लेकर प्रचार तेज कर दिया है. गुग्गन सिंह के आप में शामिल होने के मौके पर अरविंद केजरीवाल ने कहा कि जब कोई एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाता है तो कई तरह की बातें कही जाती हैं. गुग्गन सिंह बवाना से ही विधायक रह चुके हैं और वह आम आदमी पार्टी में इसलिए जुड़े हैं क्योंकि वह क्षेत्र का विकास चाहते हैं.

आपको बता दें कि गुग्गन सिंह बीजेपी से नाराज चल रहे थे, उनकी नाराजगी टिकट बंटवारे को लेकर थी क्योंकि उनकी जगह बीजेपी ने वेदप्रकाश को टिकट दे दिया था.

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल विधानसभा उपचुनाव पर लगातार नजर बनाए हुए हैं. पिछले एमसीडी चुनाव के 40 सीटों पर और रजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव में आम आम आदमी पार्टी की जमानत जब्त हो गई थी. ऐसे में आप बवाना सीट को हर हाल में जीतना चाहती है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मानें तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद इस विधानसभा क्षेत्र पर नजर बनाए हुए हैं.

देश की जनता को भले ही लगे कि यह दिल्ली में महज एक सीट के लिए चुनाव हो रहा है. लेकिन, दिल्ली का यह एक सीट का उपचुनाव अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नही हैं. क्योंकि आने वाले समय में इस हार-जीत का दिल्ली की सियासत पर काफी फर्क पड़ने वाला है.