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गोवा और दिल्ली के उपचुनाव नतीजे से तय होगा किसका कायम रहेगा दबदबा?

देश के तीन राज्यों में चार विधानसभा सीटों के लिए बुधवार को उपचुनाव में वोट डाले गए

Amitesh

देश के अलग-अलग राज्यों की चार विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हो चुका है. बुधवार को इसमें गोवा की दो और दिल्ली की एक विधानसभा सीट के लिए वोट डाले गए. आंध्र प्रदेश में भी एक सीट के लिए उपचुनाव कराया गया.

आंध्र प्रदेश की नांदयाल सीट पर टीडीपी के मौजूदा विधायक के निधन से यह सीट खाली है. लेकिन, गोवा और दिल्ली की कहानी बेहद रोचक है.


गोवा में दावं पर पर्रिकर की प्रतिष्ठा

गोवा की दो विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुआ. पणजी और वालपोई विधानसभा उपचुनाव में मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर की प्रतिष्ठा दांव पर है. साख की इस लड़ाई में पणजी से खुद मनोहर पर्रिकर चुनाव मैदान में हैं.

मनोहर पर्रिकर ने इस साल विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा था. लेकिन, गोवा में जब सरकार बनाने की बारी आई तो फिर वही सबकी पसंद बनकर सामने आए. बीजेपी से लेकर सहयोगी दलों तक सबने पर्रिकर के नाम पर मुहर लगाई.

रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा देकर मनोहर पर्रिकर ने गोवा के मुख्यमंत्री का काम संभाल लिया था.

गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर

अब अपनी परंपरागत सीट पणजी से मनोहर पर्रिकर चुनावी मैदान में हैं. बीजेपी विधायक सिद्धार्थ कमकालिंकर ने मनोहर पर्रिकर के लिए पणजी की सीट खाली की है. मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए मनोहर पर्रिकर का उपचुनाव जीतना जरूरी है.

लेकिन, मनोहर पर्रिकर के लिए गोवा की राजनीति में अपना दबदबा कायम रखने के लिए ना सिर्फ अपनी सीट जीतना जरूरी है, बल्कि, वालपोई से भी बीजेपी उम्मीदवार विश्वजीत राणे की जीत गोवा की सियासत में उनके दबदबे का एहसास कराएगी.

विश्वजीत राणे कांग्रेस के टिकट पर वालपोई से विधानसभा चुनाव जीतकर आए थे, लेकिन, उन्होंने पार्टी आलाकमान से नाराजगी के बाद इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया था.

विश्वजीत राणे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रताप सिंह राणे के बेटे हैं, लेकिन, उनका मुकाबला कांग्रेस के दूसरे बड़े नेता रवि नाईक के बेटे रॉय नाईक के साथ है. गोवा में गठबंधन सरकार चला रहे मनोहर पर्रिकर के लिए दोनों सीटों का जीतना काफी जरूरी है.

कौन साबित होगा दिल्ली का दबंग

गोवा के अलावा दिल्ली की सियासत के लिए भी उपचुनाव काफी महत्वपूर्ण हो गया है. बवाना विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव के नतीजे से दिल्ली की सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. लेकिन, यह चुनाव दिल्ली की सियासत में उथल-पुथल लाने वाला हो सकता है.

आप के विधायक वेदप्रकाश के इस्तीफे से बवाना में उपचुनाव कराना पड़ रहा है. एमसीडी चुनाव से ठीक पहले वेदप्रकाश ने इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया था. उस वक्त वेदप्रकाश ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बहुत ही भला-बुरा कहते हुए आप से अलग होने का फैसला किया था.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल

उपचुनाव में वेदप्रकाश को ही बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है. जबकि आप की तरफ से भाई रामचंद्र और कांग्रेस के सुरेंद्र कुमार चुनाव मैदान में हैं.

दिल्ली की लड़ाई इस वक्त काफी दिलचस्प है. क्योंकि 2015 के विधानसभा चुनाव में क्लीन स्वीप करने वाली आप को झटके पर झटके लगते रहे हैं. एमसीडी चुनाव में करारी हार के बाद आप को राजौरी गार्डेन विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी ने आप से यह सीट छीन ली. दिल्ली के अलावा पंजाब और गोवा में उसकी तमाम आशाओं पर पानी फिर चुका है.

अगर इस बार भी दिल्ली में हो रहे उपचुनाव में आप की हार होगी तो फिर यह अरविंद केजरीवाल के खत्म होते जादू का संकेत होगा. केजरीवाल के करिश्मे पर ग्रहण तो एमसीडी चुनाव में ही लग चुका है लेकिन, बवाना की हार आप के ढलान के प्रतीक के तौर पर सामने आ जाएगा.

लेकिन, बवाना की जीत अरविंद केजरीवाल के लिए संजीवनी का काम करेगी. कई दिनों से चुप्पी साधे केजरीवाल फिर से इस जीत की बदौलत एक नए उत्साह के साथ सामने दिख सकते हैं.

अगर बीजेपी बवाना में विजयी होती है तो फिर इसे वो बड़ी जीत के तौर पर भुनाने की कोशिश करेगी. विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर सिमटने वाली बीजेपी को पहले राजौरी गार्डेन में जीत मिली और फिर बवाना की विजय विधानसभा के भीतर उसकी ताकत को चार से पांच विधायकों तक पहुंचा देगी.

बीजेपी इस जीत को बड़े स्तर पर भुनाने की कोशिश करेगी. खास तौर से दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी इसे केजरीवाल की उल्टी गिनती के तौर पर पेश करने की कोशिश करेंगे.

दूसरी तरफ, कांग्रेस के लिए खोने को कुछ बचा नहीं है. कांग्रेस अगर जीत जाती है तो मौजूदा विधानसभा में उसकी इंट्री हो जाएगी. लेकिन, बवाना में लड़ाई बीजेपी बनाम आप की ही दिख रही है.