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दिल्ली को बचाने के लिए क्या मोदी और केजरीवाल साथ आ सकते हैं?

क्या केंद्र का राजनीतिक नेतृत्व और दिल्ली सरकार अपने राजनीतिक मतभेदों को एक तरफ रखकर इस मसले पर एकसाथ आ सकते हैं?

Sanjay Singh

अपनी किताब ‘कनवीनिएंट एक्शन: गुजरात्स रेस्पॉन्स टू चैलेंजेज टू क्लाइमेट चेंज’ के अनावरण में गुजरात के तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अथर्ववेद के सूक्तों का जिक्र करते हुए लिखा है, ‘हम लंबा जीना चाहते हैं, हमारे बच्चे भी लंबा जीना चाहते हैं और बीमारियों से दूर रहना चाहते हैं. हम सब पृथ्वी मां की गोद में पलते हैं. ईश्वर हमें दीर्घायु बनाए, लेकिन हमें सतर्क रहना होगा और हमें पृथ्वी मां के लिए अपना सर्वस्व बलिदान देना होगा.’

उन्होंने आगे लिखा है, ‘क्लाइमेट चेंज निश्चित तौर पर हमारी पीढ़ियों पर बुरा असर डालेगा, जो आज की पीढ़ियों के उठाए जाने वाले कदमों को लेकर कुछ नहीं कह पा रहा है. यूएन की एक रिपोर्ट में इसे गैर-स्थायित्व भरा इकोलॉजिकल कर्ज बताया गया है.’ यह 2011 की बात है. मोदी अब प्रधानमंत्री हैं और नई दिल्ली से पूरे देश पर शासन कर रहे हैं.


प्रदूषणमुक्त गुजरात का फॉर्मूला

‘रिड्यूसिंग अर्बन वॉर्निंग’ नाम से चैप्टर में मोदी ने बताया है कि किस तरह से 2002 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अहमदाबाद में वायु प्रदूषण को कम किया. उन्होंने कहा है कि 2001 के सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, अहमदाबाद में आरएसपीएम के एनुअल एवरेज कॉन्सनट्रेशन भारत में चौथा सबसे ऊंचा लेवल था. आरएसपीएम का मतलब है रेस्पाइरेबल सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर. कई उपायों से वह प्रदूषण का स्तर कम करने में सफल रहे.

2007 में अहमदाबाद आरएसपीएम लेवल के मामले में 85 शहरों में 53वें नंबर पर था, और 2008 में यह 90 शहरों में 66 वें नंबर पर आ गया. सीपीसीबी के आंकड़ों में इस बात का जिक्र किया गया था.

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लेकिन दिल्ली स्मॉग पर चुप्पी क्यों?

अब तक दिल्ली और देश के बाकी हिस्सों के नागरिकों ने राजधानी और नेशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) के ऊपर छाए खतरनाक स्मॉग के बारे में प्रधानमंत्री से एक शब्द भी नहीं सुना है. इस स्मॉग का इस इलाके में रहने वाले और कारोबार या घूमने के मकसद से दिल्ली आने वाले लाखों लोगों की जिंदगियों पर बुरा असर डाला है. निश्चित तौर पर यही वक्त है जबकि प्रधानमंत्री को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के मुखिया के तौर पर लोगों को यह बताना चाहिए कि वह किस तरह से इस समस्या का हल लॉन्ग-टर्म में निकालना चाहते हैं.

उनकी पार्टी बीजेपी हमेशा से दिल्ली को अंतरराष्ट्रीय शहर के तौर पर दिखाती आई है और राजधानी को इंफ्रास्ट्रक्चर और लोगों के रहन-सहन के हिसाब से दुनिया की बेहतरीन राजधानी बताती है. ब्रांड मोदी का मतलब बड़े विजन, मेगा प्रोजेक्ट्स और आइडियाज को समयबद्ध तरीके से लागू करना है. दिल्ली को उनकी ध्यान की जरूरत है.

ऐसा इस तरह से किया जाना चाहिए कि कम से कम धूल उड़े, न्यूनतम ट्रैफिक जाम की दिक्कत हो और यह कम से कम वक्त में लागू हो. केंद्र निश्चित तौर पर दखल दे सकता है और संबंधित राज्यों के साथ बैठक बुला सकता है ताकि किसानों को फसलों के बचे-खुचे हिस्सों को खेतों में जलाने के रोकने के उपाय ढूंढे जा सकें और इसी तरह की दूसरी समस्याओं को का हल निकाला जा सके. इससे दिल्ली को जहरीली हवा की चपेट में आने से रोका जा सकता है.

भले ही मोदी को दुनिया का प्रभावी नेता माना जाता हो, लेकिन दुनिया के नक्शे पर दिल्ली की रेटिंग लगातार गिर रही है. यह मोदी और बीजेपी के एक चिंता की बात होनी चाहिए.

दिल्ली की हर मुश्किल के हल केजरीवाल फेल

यही चीज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भी लागू होती है. वह खुद को दिल्ली की सभी बीमारियों का इकलौता हल बताते हैं. लेकिन, उन्होंने खुद को मोदी की बुराई करने, लेफ्टिनेंट गवर्नर से जंग लड़ने, कोर्ट मुकदमों और अपनी पार्टी आप के लिए देश के दूसरे हिस्सों में कैंपेनिंग करने में ज्यादा व्यस्त रखा है. निजी महत्वाकांक्षाएं और ज्यादा राजनीति उनकी प्राथमिकता में हैं. गवर्नेंस पर फोकस नहीं रह गया है. पिछले साल के अंत में और इस साल की शुरुआत में पंजाब और गोवा इलेक्शंस से पहले केजरीवाल ने दिल्ली को अपने हाल पर छोड़ दिया था. पंजाब, गोवा और दिल्ली म्यूनिसिपल रिजल्ट्स का उन पर कुछ असर हुआ है.

दिल्ली में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए उन्होंने ऑड-ईवन का हल ढूंढा था. ऑड-ईवन के पहले चरण में उन्हें देश और विदेश के विद्वानों से खूब तारीफ मिली. कुछ वक्त उन्होंने इसी खुशफहमी में गुजारे. ऑड-ईवन का दूसरा दौर या तो नाकामी रही या यह सफल नहीं हुआ. अब जबकि उन्होंने तीसरी बार ऑड-ईवन लाने की कोशिश की तो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उनसे कुछ सख्त सवाल पूछे, इनमें महिलाओं को कार चलाने और बाइकर्स को छूट देने से संबंधित कड़ी आपत्तियां थीं.

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केजरीवाल का दूसरा उपाय पार्किंग चार्ज में चार गुने का इजाफा करना था. इस फैसले पर भी उतने ही सवाल उठाए गए. पार्किंग चार्ज में इतना बड़ा इजाफा करना सरकार के लिए रेवेन्यू में बढ़ोतरी करने और कॉन्ट्रैक्टर्स को फायदा पहुंचाने के मकसद से है न कि निजी गाड़ियों के इस्तेमाल को हतोत्साहित करने के लिए.

दोनों नेताओं को साथ आना होगा

जब दिल्ली के लोगों ने मई 2014 में लोकसभा की सातों सीटें बीजेपी को दी थीं ताकि मोदी प्रधानमंत्री बन सकें, या फरवरी 2015 में 70 में से 67 असेंबली सीटें आप को दीं ताकि केजरीवाल मुख्यमंत्री बन सकें, तब उन्होंने यह सोचा था कि उनकी सभी समस्याएं हल हो जाएंगी. लोगों को उम्मीद थी कि दिल्ली भारत में रहने और काम करने का सबसे अच्छा स्थान होगी. लेकिन, लोगों को बड़ी निराशा से गुजरना पड़ा.

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यह भी गौर करने वाली बात है कि केंद्रीय पर्यावरण और विज्ञान और टेक्नोलॉजी मिनिस्टर, डॉ हर्षवर्धन दिल्ली से ही एमपी हैं. दिसंबर 2013 के इलेक्शंस में वह दिल्ली से बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे. बाद की दिल्ली असेंबली में वह विपक्ष के काफी मुखर नेता थे. हर्षवर्धन ने भी दिल्ली के प्रदूषण पर कुछ भी नहीं बोला है, न ही उनके मंत्रालय ने कोई ऐसा कदम उठाया है जिससे स्मॉग के मौजूदा हालात से निपटा जा सके और लोगों के स्वास्थ्य के लिए मौजूद खतरे को खत्म किया जा सके.

मुख्य सवाल यह है कि क्या केंद्र का राजनीतिक नेतृत्व और दिल्ली सरकार अपने राजनीतिक मतभेदों को एक तरफ रखकर इस मसले पर एकसाथ आ सकते हैं और लाखों लोगों की जिंदगियों पर मौजूद खतरों को दूर करने की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं.