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खस्ताहाल है बीजेपी के 'आदर्श' दीनदयाल का गांव

भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा जिले के नगला चंद्रभान नामक गांव में हुआ था. दिल्ली से करीब 220 किलोमीटर दूर यूपी के इस गांव के हालात का हमने जायजा लिया

FP Staff

भारतीय जनता पार्टी के प्रेरणास्त्रोत एवं आदर्श पुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय के गांव का क्या हाल है? जवाब ये है हालात उतने अच्छे नहीं हैं, जितने एक महापुरुष के गांव के होने चाहिए. गांव के लोग मूलभूत समस्याओं से ही जूझ रहे हैं. अधिकारी सुनते नहीं और नेता वादा करके भूल जाते हैं.

भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा जिले के नगला चंद्रभान नामक गांव में हुआ था. दिल्ली से करीब 220 किलोमीटर दूर यूपी के इस गांव के हालात का हमने जायजा लिया.


हम उपाध्याय के गांव में शाम को करीब साढ़े चार बजे पहुंचे. गांव के बारे में हमने जैसा सोचा था वह बाहर से वैसा ही था. आगरा के पास नेशनल हाइवे-2 से जब हम फरह गांव की तरफ बढ़े तो एक भव्य बोर्ड स्वागत कर रहा था. शानदार सड़क थी. हम जब नगला चंद्रभान पहुंचे तो भव्य दीनदयाल धाम बता रहा था कि यहां काफी विकास हुआ है.

दीनदयाल उपाध्याय स्मृति भवन

लेकिन जब हम गांव में लोगों से मिले तो उनमें अजीब सी बेचैनी दिखी. यह बेचैनी थी बुनियादी समस्याओं की, रोजगार की, शिक्षा और स्वास्थ्य की. यूपी या फिर केंद्र में सरकार किसी भी दल की रही हो, इस महापुरुष का गांव उपेक्षित रहा. दूसरी सरकारों ने इसे इसलिए उपेक्षित रखा क्योंकि यह बीजेपी के प्रेरणास्रोत का गांव है और इसकी ओर सरकार ने उतना ध्यान नहीं दिया, जितना देना चाहिए था. कोई भी सरकार इसे बिजली, पानी, चिकित्सा और शिक्षा के रूप में मॉडल गांव के रूप में विकसित नहीं कर सकी.

दीनदयाल उपाध्याय का गांव

दीनदयाल उपाध्याय के गांव में खारे पानी की आपूर्ति

सबसे पहले हमने गांव की समस्या को लेकर सरपंच चिंतामणि से मुलाकात की. क्योंकि उनकी बात गांव के लिए सबसे महत्वपूर्ण थी. उन्होंने कहा 'टैंकर से पानी मंगाना पड़ता है. यहां का पानी खारा है. जो बोरिंग लगी है उसका पानी बिल्कुल खराब है. यह पानी नुकसान कर रहा है. हमारे बच्चों का इलाज चल रहा है. इसे ठीक कराने के लिए हमने सरकार से आग्रह किया. पत्र लिखा, लेकिन मीठे पानी की आपूर्ति नहीं हो सकी है.'

वह हमें गांव के उस सामुदायिक स्वास्थ्य उप केंद्र पर ले जाते हैं, जिस पर ताला लटका हुआ है. कहते हैं कि 'यह ताला महीने में एकाध बार खुलता है. अस्पताल के बारे में सबको पता है कि यह अक्सर बंद रहता है. कोई अधिकारी सुनता नहीं. न बड़ा सरकारी स्कूल है और न अस्पताल.'

गांव के बुजुर्ग लक्ष्मीचंद पाठक नौकरशाहों और सरकारों से काफी व्यथित दिखे. उन्होंने कहा 'हर बात से गांव दुखी है. ये सड़क भाजपा के राज में बनी है, लेकिन पानी हम अब भी टैंकर का पी रहे हैं. कोई रोजगार नहीं है. रेलवे क्रॉसिंग का पुल नहीं बन रहा है. इसी गांव में इतनी बड़ी शख्सियत पैदा हुई थी. इसलिए हमारी मजबूरी है बीजेपी को वोट देना. किसी अन्य को भी वोट दे दें तो भी माना जाता है कि यहां के लोग तो बीजेपी को ही वोट देते हैं. इसलिए अन्य सरकारों ने गांव को उपेक्षित रखा. बीजेपी सरकार में गांव की थोड़ी सुध ली जाती है.'

स्वच्छता अभियान की ऐसी है स्थिति

सूरज ढलने को था. हमारी टीम को देख समस्या बताने वालों की भीड़ लग चुकी थी, मानों हर किसी को नौकरशाहों, नेताओं से शिकायत हो. कुछ युवा भी अपनी व्यथा बताना चाहते थे. लेकिन उससे पहले छगनलाल ने कहा 'पानी की समस्या सबसे बड़ी है. नेता आश्वासन देते हैं लेकिन काम नहीं हो पाता है. किसी तरह हमारे गांव में मीठा पानी मिलने लगे तो अच्छा हा जाता." समस्या के साथ उन्होंने मजबूरी भी बताई. कहा "दीनदयाल जी का गांव है इसलिए वोट 'दीनदयाल जी' को ही देते हैं.'

गांव में सिर्फ पांचवीं तक का सरकारी स्कूल है

सुनील पाठक भी नेताओं से नाराज दिखे. सवाल पूछते हैं कि 'अन्य समस्याओं से तो गांव के लोग जूझ सकते हैं, पानी का क्या करें? इसकी व्यवस्था अब तक ना भई. रोड वगैरह सब बढ़िया है लेकिन पानी की व्यवस्था सबसे खराब है. दीनदयाल जी का गांव होने का फायदा ये है कि सड़क अच्छी बन गई है.'

श्याम पाठक इस स्कूल की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि 'गांव में सिर्फ प्राइमरी तक का स्कूल है. बच्चियों को पढ़ने के लिए आगरा, मथुरा जाना पड़ता है. युवा दर दर भटक रहा है. उसके लिए रोजगार की व्यवस्था नहीं है.'

सरकारी अस्पताल पर अक्सर ताला लगा रहता है

बीए के छात्र सागर शुक्ला कहते हैं कि 'कोई रोजगार नहीं है यहां. कमाने के लिए बाहर ही जाना पड़ेगा.' नंद किशोर पाठक थोड़े आक्रामक दिखे. उन्होंने कहा 'इस गांव में ऐसा विकास नहीं है कि यहां के लोगों को रोजगार मिले. बड़ी पीड़ा के साथ कहना पड़ रहा है कि दीनदयाल जी के गांव में पीने के लिए साफ पानी तक नहीं है. हम चाहते हैं कि गांव के आसपास युवाओं के लिए फैक्ट्री और लड़कियों के लिए डिग्री कॉलेज हो. तो शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर न जाना पड़े.'

आपका जो कहना है मैं उस बात से सहमत हूं. पर यह कुदरत का खेल है कि यहां सब जगह खारा पानी है. फरह ब्लॉक में पानी की छह टंकियां पास करवाई गई हैं. लेकिन जल निगम के नकारेपन के कारण तीन साल से इसका पता नहीं है. पैसा काहे में उड़ा दिया, पता नहीं. दो बार विधानसभा में सवाल भी डाल दिया मैंने. यह विडंबना मेरी है. अधिकारी सरकार की छवि खराब कर रहे हैं. सांसद जी हैं या हम हैं, प्रयासरत हैं समस्या के समाधान के लिए. कन्या डिग्री कॉलेज के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ को प्रस्ताव दिया है.

— पूरण प्रकाश, बीजेपी विधायक, बदलेव विधानसभा, मथुरा

मथुरा की सांसद हेमा मालिनी हैं, जिन्हें आप रोजाना एक विज्ञापन में साफ पानी का प्रचार करते टीवी पर देखते होंगे. वह भारतीय जनता पार्टी की सांसद हैं. जब हमने उनके मथुरा प्रतिनिधि जर्नादन शर्मा से बातचीत की तो उन्होंने कहा 'पूरे मथुरा में खारे पानी की समस्या है. यह समस्या भगवान कृष्ण के समय से चली आ रही है. इससे भगवान मुक्ति नहीं दिला सके, हम क्या कर पाएंगे. फिर भी नगला चंद्रभान में नए ट्यूबवेल का प्रस्ताव है. हम कोशिश कर रहे हैं कि समस्या दूर हो जाय.'

ग्रामीणों के साथ प्रधान चिंतामणि

विधायक से बातचीत करने के बाद हमने उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता एवं ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा से बातचीत की. उन्होंने कहा कि 'मैं पानी की समस्या से वाकिफ हूं. वह पूरा क्षेत्र ही खारे पानी से परेशान है. जल निगम के अधिकारियों से बातचीत की गई है. जल्द ही इस समस्या का समाधान कराया जाएगा.'

(साभार :ओम प्रकाश न्यूज18)