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आप भारतीय राजनीति के सबसे पढ़े-लिखे शख्स को जानते हैं?

डॉ जिचकर का नाम लिम्का बुक आॅफ वर्ल्ड रिकाॅर्ड में भारत के सबसे अधिक योग्य और निपुण व्यक्ति के नाते दर्ज है

Surendra Kishore

डॉ. श्रीकांत जिचकर न सिर्फ महाराष्ट्र सरकार के मंत्री थे बल्कि राज्य सभा के सदस्य भी थे. वह महाराष्ट्र विधानपरिषद के भी सदस्य रहे. उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर एक बार लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था, लेकिन सफल नहीं हो सके थे.

सत्तर के दशक में इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया था.


डॉ. जिचकर का जन्म 1954 में हुआ. 2004 में एक कार दुर्घटना में सिर्फ 50 साल की उम्र में इनका निधन हो गया. लेकिन दिवंगत डॉ. जिचकर का सिर्फ यही परिचय नहीं है.

पिछड़ी जाति में जन्मे थे जिचकर 

पिछड़ी जाति में जन्मे डॉ. जिचकर ने कहा था कि ‘अब मैं दीक्षित हो गया हूं. दीक्षा प्राप्त करने के बाद ब्राह्मणत्व की श्रेष्ठत्तम परंपरा में सम्मिलित हो गया हूं. मैं जन्म से ब्राह्मण नहीं था. परंतु घर में अग्नि प्रतिष्ठापित कर अग्निहोत्र धर्म का नियमानुसार पालन कर और अब सोम यज्ञ द्वारा दीक्षित होने के बाद मैं स्वयं को दीक्षित कहने का अधिकारी हो गया हूं.’

डॉ. जिचकर एमबीबीएस और एमडी थे. वह एलएलबी, एलएलएम और एमबीए भी थे.उन्होंने पत्रकारिता की भी डिग्री ली थी. वे दस विषयों में एमए थे.

1973 से 1990 के बीच उन्होंने कुल 20 डिग्रियां लीं. सारी परीक्षाओं में उन्होंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्णता हासिल की. उन्हें कई स्वर्ण पदक भी मिले. वह संस्कृत में डि लिट थे.

जीनियस डॉ. जिचकर 1978 में आईपीएस बने. इस्तीफा देने के बाद वह आईएएस बने.

1980 में महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य बने. मंत्री भी बने. उनके पास 14 विभाग थे.

जीरो बजट की अवधारणा के जनक थे जिचकर 

अद्भुत शब्द शायद डॉ. जिचकर जैसी हस्तियों के लिए ही बना है. नागपुर के डॉ. जिचकर का नाम लिम्का बुक आॅफ वर्ल्ड रिकाॅर्ड में भारत के सबसे अधिक योग्य और निपुण व्यक्ति के नाते दर्ज है.

डॉ. जिचकर का वह रिकाॅर्ड अब भी कायम है. वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने जीरो बजट की अवधारणा को कार्यरूप दिया था.

यदि वह अपनी पूरी आयु जीते तो वह इस देश की राजनीति या फिर दूसरे क्षेत्र में कमाल कर सकते थे. अफसोस है कि महाराष्ट्र के बाहर कम ही लोग डॉ. जिचकर को जानते हैं.

डॉ. जिचकर को समय-समय पर याद करके नागपुर का अभिभावक अपने बच्चों से कहता है कि ‘बेटा, बड़ा होकर श्रीकांत जिचकर की तरह बनना.’ वह आधुनिक राजनीति में एक ऐसे व्यक्ति थे जिनको कोई पिता दिल्ली में अपनी संतान का स्थानीय अभिभावक बना सकता था.

आज कितने अभिभावक दिल्ली में अपनी संतान का लोकल गार्जियन किसी सांसद को बनाना पसंद करेंगे? बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ. जिचकर ने नागपुर में एक विद्यालय की स्थापना की थी.

उस स्कूल के बारे में अभिभावकों से अपील करते हुए अखबार में विज्ञापन छपा था, ‘डॉ. श्रीकांत जिचकर जिस विद्यालय में अपने बेटे को प्रवेश दिला रहे हैं, क्या आप अपने बच्चों को भी उसी विद्यालय में पढ़ाना चाहेंगे?’

इस विज्ञापन के छपते ही सैकड़ों अभिभावकों की भीड़ लग गई थी. यानी उन्होंने एक ऐसा गुणवत्तापूर्ण स्कूल स्थापित किया था जिसमें उनका बेटा भी पढ़ सके.

इतनी अधिक पढ़ाई लिखाई करने के साथ-साथ वह छात्र राजनीति में भी रूचि लेते थे. वह नागपुर छात्रसंघ के अध्यक्ष भी थे.

इसके अलावा भी उनके पास डिग्रियां और उपलब्धियां थीं. सन 1983 में दुनिया के दस सर्वाधिक प्रमुख युवा व्यक्तियों की सूची में शामिल होने का सम्मान उन्हें मिला था.

कई कलाओं के भी जानकर थे जिचकर 

वह सन् 1992 में राज्य सभा के सदस्य चुने गए. पीवी नरसिंहा राव उन्हें पसंद करते थे. राव ने डॉ. जिचकर को इंदिरा गांधी से मिलवाया था. डॉ. जिचकर ने अधिकतर देशों की यात्राएं की थीं. उनके निजी पुस्तकालय में 52 हजार पुस्तकें थीं. वे छायांकन, चित्र कला, रंग कर्म के भी जानकार थे.

उन्हें संपूर्ण गीता कंठस्थ थी. साथ ही उन्होंने वेदों और उपनिषदों का गहन अध्ययन किया था.

खेतिहर परिवार के जिचकर के साथ एक सुविधा अवश्य थी कि पैसे की कमी के कारण उनका कोई काम नहीं रुका. एक व्यक्ति सिर्फ 50 साल की उम्र में ही यह सब प्राप्त कर ले, यह अकल्पनीय लगता है.

उनमें और भी अनेक गुण थे. पर सबसे बड़ी बात यह थी कि वे राजनीति में भी थे. यानी ऐसे लोग राजनीति में आ सकते हैं, यदि उनके लिए सम्मानपूर्ण जगह बनाई जाए.

हालांकि आज जितने लोग राजनीति में हैं, उनमें से भी अनेक लोग योग्य और कर्तव्यनिष्ठ हैं. पर, वैसे लोगों की संख्या घटती जा रही है. यह लोकतंत्र के लिए चिंताजनक बात है.

डॉ. जिचकर जैसी विभूतियों को समय -समय पर याद करके नई पीढ़ी को प्रेरित किया जा सकता है.