ज्योतिरादित्य सिंधिया आखिरकार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बन सके, पर उनकी दादी राजमाता सिंधिया ने वर्ष 1967 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र की कुर्सी पलट दी थी. एक सभा में राजघरानों के खिलाफ मुख्यमंत्री मिश्र की अमर्यादित टिप्पणी से कांग्रेस की सांसद विजयराजे सिंधिया सख्त नाराज हो गई थीं.
डी.पी मिश्र के बाद मुख्यमंत्री बने गोविंद नारायण सिंह मिश्र मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने से नाराज थे. 1967 के आम चुनाव के बाद तो राजनीति के ‘चाणक्य’ माने जाने वाले द्वारका प्रसाद मिश्र के नेतृत्व में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार तो बन गई, पर वो सिर्फ 4 महीने ही चल सकी. 8 मार्च, 1967 से 29 जुलाई, 1967 तक ही. ऐसे मुख्यमंत्री को राजमाता ने उलट दिया जिन्होंने एक ही साल पहले इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में ‘चाणक्य’ की भूमिका निभाई थी.
शिकायत थी कि तिब्बत को हड़प लेने पर नेहरू ने चीन का विरोध नहीं किया
हालांकि डी.पी मिश्र बाद के वर्षों में जवाहर लाल नेहरू के विरोधी हो गए थे. मिश्र की शिकायत थी कि तिब्बत को हड़प लेने पर नेहरू ने चीन का विरोध नहीं किया. एक बार तो उन्होंने यह भी कह दिया दिया था कि मैं 1962 में जवाहर लाल नेहरू को प्रधानमंत्री नहीं बनने दूंगा. हालांकि वो उस ‘पहाड़' को नहीं हिला सके थे.
1967 के चुनाव के बाद उपजे तरह-तरह के असंतोष के कारण मध्य प्रदेश विधानसभा के कुल 167 कांग्रेसी विधायकों में से 36 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी. हालांकि उस दल बदल के सिलसिले में कई नाटकीय घटनाएं भी हुर्इं जिसकी एक पात्र राजमाता थीं. कहा जाता है कि यदि उनके पास गैर-राजनीतिक ताकत नहीं होती तो दल-बदलू विधायकों का सत्ता ने अपहरण कर लिया होता.
तब की एक पत्रिका के अनुसार, '1963 में द्वारका प्रसाद मिश्र के मुख्यमंत्री होने पर भोपाल के समाचार पत्रों के दफ्तरों में राज्य के विभिन्न कोनों से अनेक पत्र आए थे जिनमें लौह पुरूष द्वारका प्रसाद मिश्र को अवतार और देवता मान कर उनके दर्शन की लालसा जताई गई थी. मिश्र के मुख्यमंत्री बनने के बाद 4-6 महीने तक खूबसूरत जाल अपनी ओर लोगों को आकर्षित किए रहा. लेकिन वास्तविकता जैसे-जैसे सामने आती गई, जनता का मोह टूटता गया. बाद के दिनों में उसके सामने सिर्फ मिश्र मंत्रिमंडल की तानाशाही और नौकरशाही रही. अंत में असंतोष का विस्फोट हुआ.’
प्रथम गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल में 36 दल-बदलू विधायकों में से 19 हुए शामिल
मध्य प्रदेश में गोविंद नारायण सिंह के नेतृत्व में 30 जुलाई, 1967 को 31 सदस्यीय मंत्रिमंडल गठित हुआ. उस प्रथम गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल में उन 36 दल-बदलू कांग्रेसी विधायकों में से 19 दल-बदलू शामिल किए गए. जनसंघ घटक से 7 मंत्री बने. राजमाता की पार्टी जन क्रांति दल से 5 मंत्री बने. जनसंघ घटक के वीरेंद्र कुमार सकलेचा उप-मुख्यमंत्री बनाए गए. हालांकि गोविंद नारायण सिंह की सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी.
कहा गया कि राजमाता की ओर से शासन में लगातार हस्तक्षेप को आखिरकार गोविंद नारायण सिंह सहन नहीं कर सके. वो वर्ष मार्च 1969 में अपने पद से हट गए. फिर वो कांग्रेस में शामिल हो गए.
राजीव गांधी के शासनकाल में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया था पर उनका मुख्यमंत्री से लगातार टकराव चलता रहा. उन दिनों एक दल-बदलू का तर्क था कि विंस्टन चर्चिल ने भी मतभेदों के कारण 1904 में दल-बदल किया था. पहले वो कंजर्वेटिव पार्टी से चुने गए फिर लिबरल पार्टी में शामिल हो गए थे.
वर्ष 1967 के आम चुनाव में देश में कांग्रेस विरोधी हवा थी.
इसका नतीजा हुआ कि 7 राज्यों में कांग्रेस हार गई. लोकसभा में भी उसका बहुमत पहले की अपेक्षा कम हो गया. कुछ समय बाद उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी दल-बदल के कारण कांग्रेस सरकारें गिर गईं.
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उत्तर प्रदेश में किसान नेता चरण सिंह ने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस छोड़ कर चंद्रभानु गुप्त की कांग्रेसी सरकार गिराई. चरण सिंह खुद मुख्यमंत्री बने. मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार गिराने में सिंधिया घराने ने मुख्य भूमिका निभाई. पर मुख्यमंत्री कोई और बना. गोविंद नारायण सिंह के पिता अवधेश प्रताप सिंह विंध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री रह चुके थे.
राज्यों का पुनर्गठन हुआ तो मध्य भारत मध्य प्रदेश का हिस्सा बना
विजयराजे सिंधिया के पति जीवाजी राव सिंधिया मध्य भारत के राज प्रमुख थे.
पर जब राज्यों का पुनर्गठन हुआ तो मध्य भारत मध्य प्रदेश का हिस्सा बन गया.
मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार के अपदस्थ होने के बाद श्यामा प्रसाद शुक्ल और अर्जुन सिंह दिल्ली गए. यहां वो हाईकमान के सदस्यों से अलग-अलग मिले.
दोनों मिश्र मंत्रिमंडल के सदस्य थे. अर्जुन सिंह ने हाईकमान से कहा कि डी.पी मिश्र अब भी मध्य प्रदेश के बेताज बादशाह हैं. उन्हें ही आगे भी मौका मिलना चाहिए. पर श्यामा चरण शुक्ल नए नेतृत्व के पक्ष में थे. वर्ष 1969 में श्यामा चरण शुक्ल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए.