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अपनी सांसदी बचाने के लिए इंदिरा गांधी ने थोप दी थी देश पर इमरजेंसी

न्यायाधीश जगमोहन लाल सिंहा ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द किया

Surendra Kishore

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रायबरेली से इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया था. उन पर उस लोकसभा चुनाव में भ्रष्ट तरीके अपनाने का आरोप साबित हो गया था. याद रहे कि उन्होंने जन प्रतिनिधित्व कानून को तोड़ा था.

अपनी सांसदी बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोप दिया. सर्वोदय नेता जयप्रकाश नारायण और प्रतिपक्ष के करीब एक लाख से भी अधिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेलों में ठूंस दिया गया. प्रेस पर कड़ी सेंसरशिप लागू कर दी गई.


इंदिरा गांधी ने चुनाव के दौरान कई कानून तोड़े और भ्रष्ट तरीके अपनाए

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. पर उन्हें मालूम था कि जन प्रतिनिधित्व कानून की संबंधित धाराओं में संशोधन किए बिना सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिलेगी. इसलिए उन्होंने इमरजेंसी और प्रेस सेंसरशिप लगाई. क्योंकि उसके बिना चुनाव कानून में परिवर्तन यदि असंभव नहीं तो कठिन जरूर था.

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पहले उन्होंने कानून में संशोधन किया. संशोधन में यह प्रावधान भी किया कि यह परिवर्तन पिछली तारीख से लागू होगा. बाद में सुप्रीम कोर्ट से अपने अनुकूल फैसला हासिल कर लिया. कानून में परिवर्तन के बाद सुप्रीम कोर्ट के सामने कोई चारा भी नहीं था.

1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राज नारायण को एक लाख 11 हजार मतों से हराया था. राज नारायण ने इस चुनाव के खिलाफ याचिका दायर की. आरोप लगाया कि इंदिरा गांधी ने चुनाव के दौरान कई कानून तोड़े हैं और भ्रष्ट तरीके अपनाए है.

मामले की सुनवाई के बाद न्यायाधीश जगमोहन लाल सिंहा ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द किया. अगले छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक भी लगा दी. साथ ही, जज ने कहा कि इंदिरा गांधी लोकसभा की बैठक में तो शामिल हो सकती हैं, पर वह सदन में मतदान नहीं कर सकतीं.

उन्हें सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 20 दिनों का समय दिया गया. न्यायमूर्ति ने अपने ऐतिहासिक जजमेंट में कहा कि प्रतिवादी को चुनाव कानून की धारा- 123 (7) के तहत दोषी पाया जाता है. उन्होंने जिलाधिकारी, एस.पी, पीडब्ल्यूडी के गजटेड इंजीनियर से अपनी चुनावी संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए सहायता ली.

साथ ही उन्होंने एक गजटेड कर्मचारी यशपाल कपूर की सेवाएं प्राप्त कीं. यह भ्रष्ट तरीके के इस्तेमाल की श्रेणी में आता है. अदालत ने यह भी पाया कि इंदिरा गांधी, पीएन हक्सर और यशपाल कपूर के कोर्ट में दिए गए बयान दस्तावजों के तथ्यों से मेल नहीं खाते.

हालांकि राज नारायण ने कुछ अन्य आरोप भी लगाए थे. पर वे अदालत में साबित नहीं हो सके. इससे पहले कभी किसी प्रधानमंत्री का चुनाव रद्द नहीं हुआ था.

जब इंदिरा गांधी ने जज को बताया था तुच्छ

चुनाव रद्द होने की इस खबर के बाद देश में राजनीतिक हलचल मच गई.

उन्हीं दिनों जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन चल रहा था. 12 जून 1975 को ही यह खबर भी आई कि गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई.

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इस फैसले के बाद जगजीवन राम, देवकांत बरूआ तथा कुछ अन्य नेताओं ने यह बयान दिया कि प्रधानमंत्री तुरंत इस्तीफा न दें. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए. पर प्रतिपक्ष ने इस्तीफे की मांग शुरू कर दी. इस मांग के समर्थन में धरना, प्रदर्शन और सभाएं होने लगीं. अंततः 25 जून 1975 को आपातकाल लागू कर दिया गया.

अपातकाल 19 महीने जारी रहा. जनवरी 1977 में चुनाव की घोषणा हो गई. उसके बाद जग जीवन राम ने कांग्रेस छोड़ दी. मार्च, 1977 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर हो गई. जनता पार्टी के मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने.

हालांकि जनता प्रयोग अधिक दिनों तक नहीं चल सका. तीन बड़े नेताओं की आपसी खींचतान के कारण 1979 में मोरारजी सरकार गिर गई. कांग्रेस के समर्थन से चरण सिंह प्रधानमंत्री बने. इस बीच जनता कलह के कारण निराश मतदाताओं को इंदिरा गांधी पसंद आने लगीं. इससे उनका मनोबल बढ़ा.

मुंबई में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 10 सितंबर 1979 को एक बड़ा बयान दे दिया. उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजमेंट पर यह कह दिया कि ‘एक तुच्छ जज ने कच्चे आधार पर एक प्रधानमंत्री को चुनाव लड़ने से रोक दिया था. दरअसल इसी मानसिकता के तहत इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई थी. वह खुद को कानून से ऊपर समझती थीं.

आज तो इस देश में इस तरह के अनेक नेता हैं जो खुद को कानून से ऊपर समझ रहे हैं. कच्चे आधार को लेकर वकील एजी नूरानी ने लिखा था कि यदि आधार कच्चे थे तो संबंधित कानून में परिवर्तन क्यों किया गया? खैर अब जरा उस तुच्छ जज के बारे में.

गैर कांग्रेसी सरकार ने जस्टिस सिन्हा को दिया था राज्यपाल बनने का ऑफर

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस निर्णय पर अमरीकी दैनिक ‘क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर’ ने लिखा कि ‘किसी देश के न्यायाधीश के द्वारा प्रधानमंत्री तक को चुनावों में भ्रष्ट तरीके अपनाने का दोषी ठहराने से यह स्पष्ट है कि उस देश में लोकतंत्र और कानूनी प्रक्रिया पूर्णतः सफल है.'

अखबार ने लिखा, 'निःसंदेह जिन कारणों से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्रीमती गांधी को भ्रष्ट तरीके अपनाने का दोषी ठहराया है, वे निहायत तकनीकी हैं. लेकिन इन तकनीकी तरीकों का लाभ उठाना नैतिकता के विरुद्ध है.’

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इस मुकदमें में फैसला देने से पहले और बाद में जगमोहन लाल सिन्हा को कई तरह और कई तरफ से प्रलोभन दिए गए. पर वह किसी प्रलोभन में नहीं आए. दूसरी ही मिट्टी के बने जस्टिस सिन्हा 1982 में रिटायर कर गए. सन 2008 में उनका निधन हो गया.

उससे पहले एक बार जब किसी गैर कांग्रेसी सरकार ने उन्हें राज्यपाल बनने का ऑफर दिया. तो उन्होंने कहा था कि ‘किताबें पढ़ने और बागवानी करने से अधिक सुख किसी और काम में मुझे नहीं मिल सकता.’