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जन्मदिन विशेष: पश्चिम बंगाल में भूमि सुधार के नायक थे सीपीएम नेता हरेकृष्ण कोनार

वैसे तो पूरी सीपीएम सरकार को भूमि सुधार बंगाल में भूमि सुधार का क्रेडिट दिया जाता है लेकिन इसके असली प्रणेता हरेकृष्ण ही थे

Surendra Kishore

पश्चिम बंगाल में राजस्व मंत्री के रूप में भूमि सुधार के क्षेत्र में हरेकृष्ण कोनार

ने जैसा ऐतिहासिक काम किया,देश में उसका कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता.


1977 में ज्योति बसु के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल में गठित वाम मोर्चा सरकार दशकों तक यदि लगातार चुनाव जीतती रही तो उसमें सबसे बड़ा योगदान भूमि सुधार का ही माना जाता है.

यह और बात है कि भूमि सुधार और कुछ अन्य कारणों से मिले भारी जन समर्थन का जब वाम मोर्चा ने दुरुपयोग करना शुरू किया तो वाम सरकार का बाद में सफाया भी हो गया.

ज्योति बसु

5 अगस्त, 1915 में बर्दवान जिले के कामार गड़िया गांव में जन्मे हरेकृष्ण कोनार का 23 जुलाई, 1974 को निधन हो गया. वह कैंसर से पीड़ित थे. पर आज भी भूमि सुधार की समस्या और जरूरत पर देश में कहीं भी गंभीर चर्चा होती है तो हरेकृष्ण कोनार की उपलब्धियां याद की जाती हैं.

वैसे तो भूमि सुधार को पूरी वाम सरकार की उपलब्धि मानना चाहिए. पर

उसका अधिक श्रेय तत्कालीन राजस्व मंत्री कोनार को ही मिला. सीपीएम नेता हरेकृष्ण कोनार सन 1967 में पश्चिम बंगाल में गठित पहली गैर कांग्रेसी सरकार में राजस्व मंत्री थे. तब बांग्ला कांग्रेस के अजय मुखर्जी मुख्य मंत्री थे. तब सीपीएम को विधानसभा मेंं पूर्ण बहुमत नहीं था.

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उस मिली-जुली सरकार के मुख्यमंत्री अजय मुखर्जी कांग्रेस से निकले नेता थे और भूमि सुधार के बारे में उनकी राय माकपा से बिलकुल अलग थी.

इसके बावजूद कोनार की इच्छा के अनुसार राज्य के किसानों ने बेनामी और गैर मजरूआ जमीन पर कब्जा करने का अभियान तब चलाया था.

सन 1969 से पहले ही राज्य के दो लाख 38 हजार गरीब किसानों के बीच दो लाख 32 हजार एकड़ जमीन बांटी गई. यह जमीन हदबंदी से अधिक थी जो बड़े भूमिपतियों ने दबा रखी थी.

हरेकृष्ण कोनार

दरअसल भूमि सुधार की दिशा में ठोस काम वाम मोर्चा सरकार ने 1977 में शुरू किया. तब तक वाम मोर्चा को विधानसभा में पूर्ण बहुमत मिल चुका था.

करीब 16 लाख बटाईदारों को कानूनी हक दिलाने के लिए कानून बना. इस कानून के कार्यान्वयन ने वाम मोर्चा को एक बड़ा वोट बैंक प्रदान कर दिया.

1977 के बाद के हर चुनाव में वाम नेता बटाईदारों से कहते रहे कि यदि तुमने किसी अन्य दल को वोट दिया तो जमीन पर से तुम्हारा बटाईदारी हक समाप्त हो जाएगा. इस वोट बैंक की नींव मुख्यतः कोनार ने ही डाली थी. कोनार ने सन 1930 में असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया था. छह महीने जेल में रहे.

बाद में कोनार विनय चौधरी और सरोज मुखर्जी के साथ ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जारी क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए.

सितंबर 1932 में बेगुट डकैती केस में कोनार को छह साल की सजा हुई. 1933 में कोनार अंडमान जेल भेज दिए गए. वहीं उन्होंने मार्क्सवाद-लेनिनवाद का अध्ययन किया.

कोनार 1938 में जेल से रिहा होने के बाद सीपीआई में शामिल हो गए. उन्होंने किसान आंदोलन के मोर्चे पर काम किया.

इस क्षेत्र में कोनार ने बहुत अध्ययन किया था. भारत सरकार ने भूमि समस्या पर अफसरों को संबोधित करने के लिए उन्हें देहरादून भेजा था. उससे पहले 26 मार्च, 1948 को जब भारत सरकार ने सीपीआई को गैर कानूनी घोषित किया तो अन्य नेताओं के साथ कोनार भी गिरफ्तार कर लिए गए.

हरेकृष्ण कोनार पहली बार 1957 में विधानसभा के सदस्य चुने गए. उसके बाद कोनार हर चुनाव में विजयी होते रहे. कम उम्र में ही कोनार ने अपनी छाप छोड़ी थी.

भूमि सुधार को लेकर कोनार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 9 सितंबर, 1969 को पत्र लिखा था. पत्र में उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे.

हालांकि प्रधानमंत्री ने उनके पत्र को नजरअंदाज किया. पर वह लंबा पत्र भूमि सुधार के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बन गया.

कोनार ने लिखा था कि देश में कारगर भूमि सुधार नीति लागू नहीं किए जाने के कारण हमारे देश में एक सोचनीय स्थिति पैदा हो गई है.

कोनार ने सुझाव दिया था कि हदबंदी कानून में निर्मम होकर संशोधन करना होगा. छूट खत्म करनी होगी. प्रति परिवार हदबंदी लागू करनी होगी. भूमि के हस्तानांतरण पर कठोरता से रोक लगानी होगी. गैर कानूनी बंदोबस्तियों को रद करने का अधिकार सरकार को मिलना चाहिए. कुछ लोगों ने हदबंदी से फाजिल जमीन को गैर कानूनी तरीके से अपने पास रख लिया है. इस पर कार्रवाई होनी चाहिए.

जाहिर है कि किसी कांग्रेसी प्रधानमंत्री से सीपीएम नेता की यह मांग पूरी होने वाली थी नहीं.