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इंदिरा गांधी की वसीयत: वरुण के हितों की सुरक्षा राजीव-सोनिया की जिम्मेदारी थी

वसीयतनामे के जरिए यह माना जा रहा था कि इंदिरा गांधी ने अघोषित रूप से राजीव और उनके बेटे राहुल को ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी नामजद कर दिया न कि वरुण गांधी को...

Surendra Kishore

इंदिरा गांधी ने लिखा था कि ‘मैं यह देख कर खुश हूं कि राजीव और सोनिया, वरुण को उतना ही प्यार करते हैं जितना अपने खुद के बच्चों को. मुझे पक्का भरोसा है कि जहां तक संभव होगा, वो हर तरह से वरुण के हितों की रक्षा करेंगे.’ यह बात पूर्व प्रधानमंत्री ने अपनी वसीयत में दर्ज की है. यह वसीयत 4 मई, 1981 को लिखी गई थी. उसके गवाह थे एम.वी राजन और माखन लाल.

इंदिरा गांधी ने यह भी लिखा है कि ‘संजय गांधी की जायदाद में मेरा जो शेयर है, मेरी इच्छा है कि वह वरुण को मिले. इन बच्चों के बालिग होने तक यह संपत्ति ट्रस्ट के पास रहे जिसके प्रबंधक राजीव और सोनिया रहें.’ इंदिरा गांधी की वसीयत में अन्य परिजन की चर्चा मौजूद है सिवा मेनका गांधी के. वरुण का तो उन्होंने पूरा ध्यान रखा, पर अपने छोटे पुत्र संजय की विधवा के लिए उनके पास देने को कुछ नहीं था. संजय के निधन के बाद मेनका का संबंध इंदिरा गांधी से बहुत ही खराब हो गया था.


अपने दोनों बेटों और बहुओं के साथ इंदिरा गांधी. साथ में हैं नन्हे प्रियंका और राहुल (फोटो: फेसबुक से साभार)

वसीयत में लिखा- 1947 में हमारे पास जितनी संपत्ति थी, आज उससे कम 

इंदिरा गांधी के जीवन काल में मेनका ने अपना एक संगठन भी बना लिया था-संजय विचार मंच. ऐतिहासिक वसीयत में इंदिरा गांधी ने यह भी लिखा है कि 1947 में हमारे पास जितनी संपत्ति थी, आज उससे कम है. याद रहे कि इस बीच उन्होंने जवाहर लाल नेहरू स्मारक ट्रस्ट को आनंद भवन दान कर दिया था. वसीयत के अनुसार महरौली के नजदीक वाला निजी फार्म हाउस

राहुल और प्रियंका को मिले. वसीयत के अनुसार हिस्सेदारी दोनों बच्चों की बराबर-बराबर रहेगी. उन्होंने पुस्तकों की काॅपी राइट भी 3 हिस्सों में बांट दिए, तीनों बच्चों के नाम. यानी प्रियंका, राहुल और वरुण के नाम.

वसीयत के अनुसार इंदिरा गांधी ने जेवर प्रियंका को दिए. पर शेयर, सिक्योरिटी और यूनिट को तीनों बच्चों में बांटे. पुरातन सामग्री जो पुरातत्व विभाग में निबंधित हैं, वो प्रियंका को मिलेंगे. इंदिरा ने अपनी वसीयत में लिखा कि मेरे सारे निजी पेपर्स राहुल को मिलेंगे. बहुमूल्य और दुर्लभ पुस्तकें राहुल और प्रियंका को मिलेंगे. वसीयत में कुछ अन्य सामग्री के बारे में भी जिक्र है.

इंदिरा गांधी ने लिखा कि तीनों बच्चों के नाम की गई संपत्ति, ट्रस्ट के तहत रहेगी क्योंकि बच्चे अभी वयस्क नहीं हैं. ट्रस्ट के प्रबंधक राजीव होंगे. यदि किसी कारण राजीव प्रबंधक नहीं रहे तो सोनिया प्रबंधक बनेगी. यह भी मान लिया गया कि इस वसीयत के जरिए भी इंदिरा ने अघोषित रूप में राजीव और उनके बेटे राहुल को ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी नामजद कर दिया न कि वरुण को. वैसे भी 1980 में संजय गांधी की असामयिक निधन के थोड़े ही दिनों बाद मेनका गांधी इंदिरा गांधी के आवास से बाहर हो गई थीं.

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संजय गांधी की जायदाद जो भी रही हो, पर खुद इंदिरा गांधी की जायदाद ऐसी नहीं थी जिस पर उंगली उठाई जा सके. इंदिरा का यह कहना भी महत्वपूर्ण है कि 1947 की अपेक्षा उनके परिवार की संपत्ति घटी जबकि लंबे समय तक उनका परिवार सत्ता में रहा. उनके जीवनकाल में भी किसी विरोधी नेता ने भी उनकी आय से अधिक संपत्ति का कोई मामला उठाया हो, यह मुझे याद नहीं.

पिता जवाहर लाल नेहरू के साथ इंदिरा गांधी

आज के नेताओं से तुलना करने पर लगता है कि वो राजनीति के ‘संत’ थे

हां, एक दूसरे प्रकार की शिकायत जरूर रही. अपने प्रधान मंत्रित्वकाल में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्हें जितना कठोर होना चाहिए था, उतना नहीं हुर्इं. कई लोगों की ऐसी ही शिकायत जवाहर लाल नेहरू से भी रही. फिर भी नेहरू-गांधी परिवार की 1981 तक की निजी संपत्ति को देख कर और आज के पक्ष-विपक्ष के अनेक नेताओं से उसकी तुलना कर के देखने पर लगता है कि वो राजनीति के ‘संत’ थे. हालांकि इस शब्द का इस्तेमाल खुद इंदिरा गांधी ने अपने पिता के लिए किया था- ‘मेरे पिता संत थे. पर मैं तो पाॅलीटिशियन हूं.'