view all

नोटबैन: भ्रष्टाचारियों को बर्बाद करने में कैसे सफल होंगे मोदी?

जब भी कोई नेता भ्रष्टाचार को लेकर कोई लक्ष्य निर्धारित करता है तो आम लोग गदगद हो जाते हैं

Surendra Kishore

नेहरू युग के अटाॅर्नी जनरल एमसी सीतलवाड़ ने करीब आधी सदी पहले ही यह कह दिया था कि भ्रष्टाचार का विष हमारी धमनियों में दौड़ने लगा है. इससे हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न भी हो सकती है.

अब मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह कह रहे है कि 30 दिसंबर 2016 के बाद इस देश के बेईमान लोग बर्बाद होंगे.


वैसे तो यह असंभव सा दिखने वाला मोदी लक्ष्य है. पर जब भी कोई नेता भ्रष्टाचार को लेकर कोई लक्ष्य निर्धारित करता है तो आम लोग गदगद हो जाते हैं. इस बार भी वे खुश हैं. इसीलिए कतार की तकलीफें भूल रहे हैं.

पर,क्या इस लक्ष्य को पाना संभव भी है? क्या इस देश के सत्ताधारी वर्ग के रग-रग में बसे भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध इतना आसान है? खैर जो हो कोशिश कर लेने में क्या हर्ज है?

पर इसके साथ यह जान लेना भी मौजूं है कि आजादी के तत्काल बाद इस देश के शासन तंत्र की रक्त धमनियों में भ्रष्टाचार ने आखिर कैसे प्रवेश पाया था.

गांधी भी चेताया करते थे 

वैसे तो आजादी की लड़ाई के समय भी गांधी जी कुछ कांग्रेसियों को उनके भष्टाचार के खिलाफ चेतावनी दिया करते थे. पर आजादी के बाद तो इसे धीरे-धीरे संस्थागत रूप दे दिया गया.

इस पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री मोदी के ये शब्द आम लोगों में एक उम्मीद जगाते हैं,‘सत्तर साल से बड़ी ताकतें बेईमानी और भ्रष्टाचार से जुड़ी हुई हैं. ये सरकार को हराने के लिए नए-नए तरीके अपनाती हैं तो हमें इनकी काट के लिए नया तरीका अपनाना पड़ता है. तू डाल-डाल मैं पात-पात. क्योंकि हमें इन्हें हराना है.’

इस देश का लोकतांत्रिक इतिहास यही कहता है कि जब-जब किसी नेता ने ऐसे हौसले बांधे है, अधिकतर जनता ने उन्हें सहयोग दिया है. पर दुर्भाग्यवश बारी-बारी से नेताओं ने ही बीच राह में जनता को छोड़ दिया.

उम्मीद की जा रही है कि शायद मोदी निराश नहीं करेंगे क्योंकि कई लोगों को ये अलग मिट्टी के बने नेता लग रहे हैं.

सरकारी भ्रष्टाचार की उत्पत्ति के पहले सबूतों में से एक सबूत अमरीकी प्रोफेसर पाॅल आर  ब्रास की किताब है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस की गुटबंदी पर लिखी उस पुस्तक की चर्चा यहां प्रासंगिक है.

व्यापक शोध के बाद ब्रास ने उन दिनों लिखा कि उत्तर प्रदेश के कई बड़े सत्ताधारी कांग्रेसी नेताओं ने राज्य भर में फैले अपने गुट के नेताओं के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए सरकारी भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया. शिक्षा विभाग का इस मामले में भरपूर इस्तेमाल हुआ. यानी भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे गया.

बेईमानों को बर्बाद करने के लिए उत्साहजनक हौसला बांधने वाले मोदी जी के लिए यह जानना जरूरी है कि जब भ्रष्टाचार ऊपर से ही नीचे गया तो उसकी सफाई की शुरुआत भी पहले ऊपर से ही करनी होगी.

एमओ मथाई ने दिखाई थी दिशा

प्रधानमंत्री नेहरू के निजी सचिव रहे एमओ मथाई की संस्मरणात्मक किताबें भी इस दिशा में राह दिखाती हैं.तेरह साल तक शीर्ष सत्ता की हर भीतरी बात के जानकार मथाई ने एक महत्वपूर्ण प्रकरण की चर्चा की है.

उन्होंने लिखा है कि एक बार जब किसी अत्यंत महत्वपूर्ण हस्ती ने प्रधानमंत्री से कहा कि उच्चस्तरीय भ्रष्टाचार पर काबू पाने के लिए कोई संस्थागत उपाय कीजिए तो नेहरू ने जवाब दिया, ‘इससे प्रशासन में निराशा आएगी.’

इतना ही नहीं प्रशासनिक सुधार के लिए केंद्र सरकार ने 1960 में बेमन से संथानम कमेटी तो बना दी पर उसकी जांच के दायरे से मंत्रियों को बाहर रखा.

ऐसा होना ही था क्योंकि जीप घोटाले के आरोपी तब केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल थे. कुछ अन्य केंद्रीय मंत्रियों के बारे में भी ऐसी-वैसी खबरें तभी मिलने लगीं थीं.

1963 आते-आते देश की स्थिति ऐसी हो गयी थी कि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष डी.संजीवैया को अपने इंदौर के भाषण में यह कहना पड़ा, 'वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे,आज करोड़पति बन बैठे हैं.'

उन्होने यह भी कहा कि झोपड़ियों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले रखा है. प्रभाव से धन और धन से प्रभाव की खरीद तेजी पर है.

गिरावट जारी रही और आज कुल मिलाकर देश के अनेक हिस्सों की राजनीति की स्थिति यह हो गयी है कि भ्रष्टाचार और परिवारवाद के कारण लोकतांत्रिक संस्थाओं का स्वरूप ही बदलता जा रहा है.

जातिवाद और संप्रदायवाद ने अनेक भ्रष्ट नेताओं को संरक्षण दे रखा है. क्योंकि कई जातियों को अब यह लगता है कि यदि बारी बारी से सब नेताओं को लूट ही मचानी है तो हमारी जाति का नेता ही क्यों पीछे रहे?

किसी तरह के भ्रष्टाचार की समस्या से निपटने के लिए पुलिस व अभियोजन पक्ष की ईमानदारी जरूरी है. इसके लिए व्यापक सुधार की जरूरत होगी.

कोर्ट ने की थी तल्ख टिप्पणी

हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद नारायण मुल्ला ने राज्य बनाम मुहम्मद नईम मुकदमे में अपना फैसला सुनाते हुए कहा था,‘पुलिस अपराधियों का सर्वाधिक संगठित गिरोह है.’

यह और बात है कि ऊपर की अदालत ने उस टिप्पणी को बाद में हटा दिया था पर वह टिप्पणी तब इतनी लोकप्रिय हुई कि मुल्ला साहब 1967 में लखनऊ से निर्दल उम्मीदवार के रूप में लोक सभा चुनाव जीत गए.

राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार यदि मोदी सरकार ने पुलिस सुधार की दिशा में भी ठोस पहल कर दी तो उनका दल अगले चुनाव में वोट बटारते-बटारते थक जाएगा.