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मणिपुर संकटः राजनाथ के ‘लेट रिस्पांस’ ने लगाया ‘ब्रांड मोदी’ को पलीता

पहाड़ी क्षेत्रों में 7 नए जिले बनाने के विरोध को लेकर शुरू हुए संकट के जल्द सुलझने के आसार नहीं

Mukesh Bhushan

मणिपुर के वर्तमान संकट से निपटने में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का देर से सक्रिय होना. क्या राज्य में ‘ब्रांड मोदी’ के बढ़ते प्रभाव को पतीला लगा गया है? राज्य के राजनीतिक हालात का बारीक विश्लेषण हमें इसी नतीजे तक ले जाता है.

केंद्रीय गृहमंत्री 22 दिसंबर को इस संवेदनशील राज्य के प्रति तब सक्रिय दिखे. जब भारतीय जनता पार्टी के दो विधायक पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर कांग्रेस की गोद में जा गिरे.


उन्होंने यूनाइटेड नगा काउंसिल (यूएनसी) के आह्वान पर एक नवंबर से की जा रही आर्थिक नाकेबंदी से निबटने में केंद्र की उदासीनता से दुखी होकर ऐसा करने की घोषणा की.

इनमें एक थांग्मेइबैंड के विधायक खुमुक्याम जॉयकिसन सिंह तो बीजेपी विधायक दल के नेता थे. और समझा जा रहा था कि 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सीएम पद का उम्मीदवार बनाया जाएगा.

उनके साथ ही पार्टी छोड़नेवाले केइशाम्थांग के विधायक लाइसॉम इबोमचा ने भी ऐसा ही आरोप लगाया है.

केंद्र के प्रति असंतोष की आंच झेल रहे बीजेपी का एक प्रतिनिधिमंडल इसी दिन राजनाथ सिंह से मिला था. प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह पर निष्क्रियता का आरोप लगाकर केंद्र से दखल देने की मांग की थी.

इससे पहले 20 और 21 दिसंबर को यूएनसी प्रतिनिधिमंडल ने भी गृहमंत्री राजनाथ सिंह. और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलकर सीएम की शिकायत करते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की थी.

अपने-अपने तर्क

यूएनसी का आरोप है कि राज्य सरकार ने सात नए जिले बनाने से पहले हिल एरिया में रहनेवाले नगा जनजातीय लोगों को विश्वास में नहीं लिया. ऐसा करना केंद्र सरकार द्वारा 2011 में दिए गए लिखित आश्वासन के खिलाफ है.

गृह मंत्रालय ने यह आश्वासन दिया था कि स्थानीय निवासियों की सहमति के बगैर एडमिनिस्ट्रेटिव सेटअप से संबंधित कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा.

नाराज यूएनसी ने राज्य के घाटी क्षेत्र की आर्थिक नाकेबंदी कर रखी है. उसके बाद नगा आबादी तक जानेवाली सड़क पर भी मैतेयी समूहों ने जवाबी नाकेबंदी कर दिया है.

दूसरी तरफ राज्य सरकार का तर्क है कि नए जिलों का गठन पूरी तरह प्रशासनिक फैसला है. ऐसा करने का राज्य सरकार को पूरा अधिकार है.

सीएम का यह तर्क राज्य की बहुसंख्यक मैतेयी समुदाय को अच्छी तरह समझा दिया गया है. उन्हें यह भी समझा दिया गया है कि केंद्र की बीजेपी सरकार नगा समूहों के साथ मिली हुई है. इसीलिए आर्थिक नाकेबंदी को खोलने में उसकी कोई रुचि नहीं है.

वरना क्या वजह है कि तेंग्नॉपाल में पांच पुलिसवालों की हत्या और तामेंग्लोंग में रिजर्व बटालियन से हथियार छीनने की घटना के बाद भी केंद्र खामोश है?

पहाड़ों में रहनेवाले नगा और घाटी में रहनेवाले मैतेयी जनजातियों के बीच खूनी संघर्ष का इतिहास काफी पुराना है. इसीलिए मैतेयी आबादी को कांग्रेस का तर्क समझने में कोई दिक्कत नहीं हुई. सीएम इबोबी सिंह भी इसी समुदाय से आते हैं.

सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता सबिता देवी, जो वूमेन इंवायरमेंटल प्रोटेक्शन फोर्स की महासचिव भी हैं.

उनकी बात से इसे समझा जा सकता है. ‘नगा इनसर्जेंट ग्रुप एनएससीएन के साथ सेंटर ने सीजफायर का समझौता किया है. उसके साथ सेंटर बातचीत कर रहा है तो इकॉनामिक ब्लाकेड हटाने का भी दबाव बना ही सकता था... ऐसा तो किया नहीं... ’

वे यह भी कहती हैं कि, ‘नगा लोग खाली अपने बारे में सोचता है. यहां घाटी में रहने के लिए जमीन नहीं है. नन-नगा पापुलेशन कहां जाएगा? करीब 40 ट्राइब्स यहां पर हैं. नया जिला बनने से सबको फायदा होगा’.

कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक

विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पूर्व बहुसंख्यक हिंदू ट्राइब का बीजेपी से मोहभंग करने के लिए इबोबी सिंह का यह मास्टर स्ट्रोक समझा जा रहा है. वर्तमान संकट से पहले करीब 15 साल पुरानी इबोबी सरकार ‘एंटी एनकम्बेंसी’ से जूझ रही थी.

राजनीतिक पंडित यह संभावना जता रहे थे कि बीजेपी वहां असम दोहरा सकती है. असम में 15 साल पुरानी तरुण गोगोई की कांग्रेस सरकार को हराकर बीजेपी ने अप्रत्याशित सफलता हासिल की है.

कुछ महीने पहले हुए म्युनिसिपल चुनावों में अप्रत्याशित तरीके से 278 में 62 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया.

इनमें इंफाल की 27 में से 10 सीटें शामिल हैं. बीते 14 सितंबर को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का राज्य में काफी गर्मजोशी से स्वागत किया गया था.

उनकी सभा में जुटी बड़ी भीड़ ने कांग्रेस नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी थी. यह ‘ब्रांड मोदी’ का ही करिश्मा था.

फिलहाल ऐसा लग रहा है कि मणिपुर के वर्तमान संकट ने कांग्रेस को उसके अपने संकट से उबार लिया है. हर बार चुनाव से पूर्व जातीय ध्रुवीकरण ही वह पुराना हथकंडा है जो कांग्रेस को सत्ता में बनाए रखती है.

पिछले विधानसभा चुनाव से पहले 2011 में भी ऐसा ही संकट पैदा हुआ था. तब नगा समूहों की आर्थिक नाकेबंदी करीब 100 दिनों तक चली थी. उस समय भी इबोबी सिंह ने अपना दुखड़ा रोकर राजनीतिक स्थिति मजबूत की थी.

उससे पहले 2010 में राज्य सरकार ने उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन-आइएम) के महासचिव को मणिपुर में अपने पैतृक गांव जाने की अनुमति नहीं दी थी. ऐसा कर के सीएम इबोबी सिंह राज्य के दूसरे समुदायों में हीरो बन गए थे.

घाटी के वोटों के ध्रुवीकरण का ही नतीजा था कि कांग्रेस को 42 फीसदी से ज्यादा वोट शेयर मिले थे. और कुल 60 में से 42 सीटों पर इसने कब्जा जमा लिया था.

क्या है इस बार का संकट

इस बार सीएम ने 08 दिसंबर, 2016 की आधी रात को सात नए जिलों की घोषणा की. इनके नाम हैं- कांगपोकपी, तेंगनोपाल, फेरजावल, नोनी, कामजोंग, जिरीबाम व काकचिंग.

इनमें दो सदर हिल व जिरीबाम जैसे छोटे कस्बे को जिला बनाने की घोषणा पहले ही हो चुकी थी. इसके विरोध में एक नवंबर से ही नगा समूह नेशनल हाइवे-2 और 37 पर नाकेबंदी कर रहे थे.

नाकेबंदी के कारण राज्य के घाटी क्षेत्र में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई पर असर पड़ रहा था. नए जिलों की घोषणा ने आग में घी का काम किया. नगा विद्रोहियों के समर्थन से नाकेबंदी ने हिंसक रूप ले लिया.

इंफाल पूर्व: यूनाइटेड नागा काउंसिल के आर्थिक नाकेबंदी लगाने से नाराज भीड़ ने गाड़ियों को आग लगाई

इसके बाद घाटी के लोगों की दैनिक जरूरतें बुरी तरह प्रभावित हुई. खाने-पीने की चीजें महंगी हुई. रसोई गैस का संकट हुआ और पेट्रोल 200 रुपए लीटर से ज्यादा महंगा हो गया. आवाजाही तो प्रभावित हुआ ही, अफवाह रोकने के नाम पर संचार के साधन भी ठप कर दिए गए.

मोदी थे आशा की नई किरण

राज्य की लगातार बिगड़ती स्थिति में घाटी में रहनेवाली गैर नगा आबादी ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी’ के रूप में आशा की नई किरण का इंतजार कर रही थी. यह इंतजार लंबा खिंचता चला गया.

इंफाल निवासी उद्यमी और सामाजिक कार्यकर्ता बिमलता देवी (मैतेयी) कहती हैं, ‘हम लोग को मोदी ने भी छोड़ दिया... वह तो अलग तरह का नेता है? देश के लिए सोचते हैं... डेवलप कंट्री बनाना चाहते हैं... अभी तो कुछ नहीं किया... हमलोग बहुत परेशानी में हैं... वह चाहते तो बहुत कुछ कर सकते थे’.

करीब एक हजार महिलाओं के साथ कपड़े का लघु उद्योग चलानेवाली बिमलता देवी यह मानती हैं कि, इस बार नोटबंदी के कारण नाकेबंदी से ज्यादा परेशानी हो रही है. लेकिन उन्हें नोटबंदी से कोई शिकायत नहीं है.

‘नोटबंदी से दिक्कत है पर मोदी ने अच्छा काम किया है. गरीब से गरीब लोग भी शिकायत नहीं कर रहा है. लेकिन ऐसा कब तक चलेगा... ऐसे ही रहा तो जीना मुश्किल हो जाएगा’.

कैसे चूक गए राजनाथ

करीब 50 दिनों तक स्थिति बिगड़ने के बाद केंद्रीय गृहमंत्री ने मुख्यमंत्री पर निष्क्रियता का आरोप लगाते हुए अर्द्धसैनिक बलों के करीब 4000 जवानों को नेशनल हाइवे खाली कराने के लिए भेजा है. गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजु ने इंफाल में सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया है.

इससे पहले मुख्यमंत्री नई दिल्ली में राजनाथ सिंह से मिलकर यह आग्रह कर चुके थे कि नगा समूहों को नाकेबंदी खत्म करने के लिए मनाएं. वह केंद्र पर निष्क्रिय होने का आरोप भी लगा चुके थे और अतिरिक्त बल भेजने की अपील भी कर चुके थे.

दरअसल राजनाथ सिंह कांग्रेस के पुराने हथकंडे का कोई नया जवाब नहीं ढूंढ सके. उन्होंने भी स्थिति बिगड़ने के बाद राज्य सरकार पर दोषारोपण कर के राजनीतिक लाभ लेने का वही पुराना हथकंडा ही अपनाया.

यदि वह राज्य की नब्ज समझ रहे होते तो तुरंत नाकेबंदी खत्म करते और कांग्रेस को दुखड़ा रोने का मौका नहीं देते. यदि ऐसा होता तो घाटी के लोगों में केंद्र सरकार के प्रति भरोसा बढ़ता. राजनाथ ने यह मौका गंवा दिया.

राज्य की जटिल संरचना

मणिपुर एक जटिल सांस्कृतिक-सामाजिक संरचना वाला राज्य है. यहां की राजनीतिक स्थितियां उत्तर पूर्व के अन्य राज्यों की ही तरह काफी जटिल हैं. राजनीतिक नफा-नुकसान का गणित भी देश से दूसरे इलाकों से अलग हैं.

घाटी क्षेत्र की 10 फीसदी जमीन पर राज्य की करीब 60 फीसदी आबादी निवास करती है. जबकि, 90 फीसदी पहाड़ हैं जहां शेष 40 फीसदी आबादी रहती है. राजनीतिक रूप से घाटी को अपने कब्जे में करने का मतलब कुल 60 में से 40 विधानसभा सीटों पर पकड़ मजबूत करना है.

दूसरी तरफ मणिपुर में रहनेवाले नगा जनजातीय समूह के सांस्कृतिक केंद्र नगालैंड में हैं. वे नगा उग्रवादी समूहों के प्रभाव में भी हैं, जिनका एजेंडा अलग नगालिम राज्य (ग्रेटर नगालैंड) बनाना रहा है. इसमें मणिपुर, अरुणाचल, असम व म्यांमार के इलाके शामिल करने की तैयारी रही है.

इसी वजह से एनएससीएन-आइएम व केंद्र में समझौता वार्ता के साथ ही इन इलाकों में तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. समझौते के बिंदुओं के सार्वजनिक न होने के कारण अन्य जनजातीय समूहों में आशंकाएं बनी हुई हैं.

नगा उग्रवादी संगठन एनएससीएन उत्तर-पूर्व का सबसे खतरनाक उग्रवादी संगठन रहा है. हालांकि इसके एक गुट (आइएम) को समझौते की मेज तक लाने में केंद्र सरकार सफल रही है. किसी भी समय उसके साथ समझौता घोषित हो सकता है. इसीलिए केंद्र सरकार यहां फूंक-फूंककर कदम रख रही है.