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सिंधिया को पश्चिमी यूपी का प्रभारी बनाकर कौन से समीकरण साध रही है कांग्रेस?

इन नियुक्तियों के साथ यह सवाल भी उठता है कि क्या कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य और प्रियंका को आगामी लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर राज्य का प्रभारी नियुक्त किया है, या प्लान कुछ और है

Nitesh Ojha

चंद महीनों पहले की बात है, मध्य प्रदेश में चुनावी प्रचार चरम पर था. कांग्रेस पार्टी के नेता राज्य में डेढ़ दशक के राजनीतिक सूखे के खात्मे का दावा ठोक रहे थे. वहीं कार्यकर्ता पशोपेश में थे कि पार्टी मुख्य दो चेहरों में से किसे मुख्यमंत्री बनाएगी. ये दो नेता थे कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया.

खैर पार्टी ने कमलनाथ को चुनाव बाद राज्य का मुख्यमंत्री बनाया. इस फैसले के बाद सिंधिया समर्थक कार्यकर्ताओं ने राज्यभर में उत्पात मचाया. पार्टी की तरफ से उन्हें उप मुख्यमंत्री पद का ऑफर दिया गया लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उसे ठुकरा दिया. साथ ही उन्होंने समर्थकों से भी पार्टी का साथ देने की अपील की.


क्या सिंधिया का पद भी प्रियंका के बराबर है?

अब कांग्रेस पार्टी ने इस युवा नेता को लोकसभा चुनावों से पहले एक बार फिर से तलवार थमा दी है. उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपा गया है. उत्तर प्रदेश राजनीतिक लिहाज से काफी बड़ा राज्य है. इसलिए इसे दो भागों में बांटते हुए दो बड़े नेताओं को जिम्मेदारी दी गई है.

यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि एक भाग का प्रभार प्रियंका गांधी को सौंपा जाना और उसी राज्य में उतना ही बड़ा पद ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंपा जाना पार्टी और केंद्रीय नेतृत्व की नजरों में उनकी साख को दर्शाता है. हालांकि मध्य प्रदेश से अपनी चुनावी पारी खेलने वाले सिंधिया को उत्तर प्रदेश का प्रभार क्यों सौंपा गया है इस सवाल के कई जवाब हैं.

एसपी-बीएसपी ने कांग्रेस को नहीं दी कोई तवज्जो

तमाम चुनावी समीकरणों पर ध्यान देने से पहले यह जान लें कि प्रभारी का क्या काम होता है. प्रभारी का काम है कि चुनावों के लिए प्रतिनिधियों का चयन करना या टिकट वितरण करना. प्रभारी ही राज्य में किसी पार्टी की राजनीतिक स्थिति का आकलन कर केंद्रीय नेतृत्व को इससे अवगत कराता है. ऐसे में वह किस जाति से है यह बात ज्यादा महत्व नहीं रखती. यहां यह बता दें कि इन नियुक्तियों के पहले गुलाम नबी आजाद उत्तर प्रदेश के प्रभारी थे.

अब यहां साफ कर दिया जाए कि लोकसभा चुनाव में एसपी और बीएसपी के गठबंधन ने देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में जगह नहीं दी है. उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों पर नजर डालें तो यह दो पार्टियां ही काफी हैं बीजेपी को टक्कर देने के लिए. ऐसे में रायबरेली और अमेठी समेत कुछ इलाकों को छोड़ दी जाए तो कांग्रेस राज्य में कहीं भी अच्छी भूमिका में नहीं है.

कांग्रेस फिर से यूपी में काडर तैयार करना चाहती है

दूसरी बात कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का काडर लगभग खत्म हो गया है. ऐसे में सबसे पहले पार्टी का लक्ष्य होगा फिर से काडर तैयार करना. ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया काफी अहम योगदान निभा सकते हैं. क्योंकि उनकी छवि बेदाग है और युवाओं में उनको अच्छा खासा पसंद भी किया जाता है.

साथ ही वह मध्य प्रदेश में पार्टी का काडर पहले ही तैयार कर चुके हैं. जिसने विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत में काफी अहम किरदार निभाया था. तो उनसे पार्टी जाहिर तौर पर यह उम्मीद लगा सकती है कि वह देश के सबसे ज्यादा राजनीतिक महत्व रखने वाले राज्य में भी फिर से कांग्रेस का काडर तैयार कर सकते हैं.

ये तैयारी लोकसभा चुनाव की है या मामला कुछ और है?

इन नियुक्तियों के साथ यह सवाल भी उठता है कि क्या कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य और प्रियंका को आगामी लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर राज्य का प्रभारी नियुक्त किया है, या उनका प्लान कुछ आगे का है. जिस तरह राज्य में कांग्रेस की दावेदारी को दरकिनार करते हुए एसपी-बीएसपी ने उन्हें गठबंधन में लेने लायक नहीं समझा. इससे संभावनाएं बनती हैं कि पहले कांग्रेस राज्य में अपनी राजनीतिक साख मजबूत करेगी और फिर लोकसभा के बाद होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दमदारी से चुनाव लड़ेगी.

हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया जाना उनकी नाराजगी को दिलासा देनेभर का फैसला भी हो सकता है. क्योंकि उनका नाम मध्य प्रदेश के संभावित मुख्यमंत्री के तौर पर भी देखा जा रहा था. हालांकि उन्हें यह पद न मिल सका.