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अब राहुल गांधी की नोट बैंक राजनीति

पिछले कुछ महीनों से राहुल गांधी ने खुद को मोदी-विरोध के आधार पर परिभाषित कर रहे हैं.

सुरेश बाफना

संसद मार्ग पर स्थित भारतीय स्टेट बैंक की शाखा के बाहर नोट बदलने की कतार में अचानक कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी को उनकी राजनीतिक पैंतरेबाजी का एक हिस्सा माना जाना चाहिए.

दिल्ली विधानभसभा चुनाव में मिली पराजय के बाद उन्होंने कहा था कि अरविंद केजरीवाल से सीखने की जरूरत है. लगता है राहुल अब राजनीति के केजरीवाल-मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं.


24 घंटे के न्यूज चैनल के इस युग में नेताअों पर दबाव बना रहता है कि वे किस तरह प्रतिदिन टीवी के परदे पर कुछ न कुछ करते हुए दिखाई दें. इसलिए न्यूज चैनलों के कैमरों का आकर्षण नेताअों को चुम्बक की तरह खींचता है.

पिछले कुछ महीनों से राहुल गांधी ने अपने व्यक्तित्व को मोदी-विरोध के आधार पर परिभाषित करने की कोशिश की है. न्यूज चैनल के कैमरे जिस दिशा में घूम रहे होते हैं, राहुल भी उस दिशा में किसी न किसी तरह पहुंचकर मोदी के खिलाफ टीवी बाइट देकर आत्म-संतुष्टि प्राप्त करते हुए दिखाई देते हैं.

विपक्षी दल के नेता होने के नाते मोदी-सरकार की किसी भी नीति का सही या गलत विरोध करना उनका लोकतांत्रिक अधिकार है.

राहुल से यह उम्मीद करना गैर-वाजिब नहीं है कि यदि वे प्रधानमंत्री के किसी बड़े नीतिगत निर्णय का विरोध करते हैं तो उन्हें मीडिया के सामने खड़े होकर सवालों का जवाब देना चाहिए. हिट एंड रन की केजरीवाल स्टाइल उन्हें अधिक दूर नहीं ले जा पाएगी.

कतार में खड़े राहुल ने मोदी के साथ-साथ मीडिया पर भी आरोप लगा दिया कि आप लोग और आपके अरबपति मालिक भी आम लोगों को हो रही परेशानी को नहीं समझ पा रहे हैं.

राहुल एक तरह से यह कह रहे हैं कि मीडिया भी मोदी सरकार का हिस्सा बन गया है.उनकी यह टिप्पणी पूरी तरह अभद्र व अनुचित है.

राहुल गांधी यह कहकर किसी रहस्य का उद्घाटन नहीं कर रहे हैं कि 500 व 1000 रुपए के नोट गैर-कानूनी घोषित किए जाने से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. जब कोई बड़ा लक्ष्य प्राप्त करना होता है तो उसे पाने की प्रक्रिया में परेशानी होना कोई अस्वाभाविक बात नहीं है.

राहुल को यह समझना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों का टीवी बाइट के माध्यम से विरोध करना ही पर्याप्त नहीं होगा. यदि काले धन को खत्म करने के सवाल पर वे मोदी की नीति से अहसमत हैं, तो उनको वैकल्पिक समाधान भी पेश करना होगा.

राहुल गांधी को यह भी बताना होगा कि 10 साल तक चली मनमोहन सिंह सरकार के दौरान काले धन की समस्या से निपटने की दिशा में क्या कदम उठाए गए? अभी तो स्थिति यह है कि राहुल ने विरोध के कारणों का विस्तार से खुलासा नहीं किया है.

नोट बदलवाने की कतार में खड़े होकर वे कुछ घंटों के लिए टीवी पर सनसनी पैदा कर सकते हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी की राजनीति को आगे बढ़ाने में कामयाब नहीं हो सकते हैं.

130 साल की कांग्रेस पार्टी के लिए यह बात दुखदायी है कि वह राहुल गांधी के टीवी बाइट के माध्यम से अपना खोया हुआ जनाधार फिर पाने का प्रयास कर रही है.

इस कोशिश का सीधा अर्थ यह है कि कांग्रेस पार्टी बदले हुए समाज के साथ अपना वैचारिक तालमेल बिठाने में विफल रही है.