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शिवभक्ति में डूबने के बाद अब बिहार में 'सवर्ण' बनी कांग्रेस? नाराजगी भुनाने की कोशिश!

लंबे इंतजार के बाद बिहार में कांग्रेस ने अपनी टीम का ऐलान कर दिया है.

Amitesh

लंबे इंतजार के बाद बिहार में कांग्रेस ने अपनी टीम का ऐलान कर दिया है. मदनमोहन झा को कांग्रेस ने बिहार की कमान सौंपी है. मदनमोहन झा मौजूदा वक्त में एमएलसी हैं और इसके पहले नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. उनके हाथों में कांग्रेस ने बिहार की कमान सौंपकर बिहार में ब्राह्मण समुदाय को साधने की कोशिश की है. कांग्रेस को लगता है कि मदनमोहन झा के नाम पर एक बार फिर उसका पुराना वोटबैंक उसके साथ आ सकता है.

मदन मोहन झा को बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष नियुक्त करने के अलावा कांग्रेस ने जिन चार कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति की है, उनमें भी दो सवर्ण समुदाय से ही हैं. पुराने कांग्रेसी नेता श्याम सुंदर सिंह धीरज और समीर कुमार सिंह को कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है. श्याम सुंदर सिंह धीरज भूमिहार जाति से आते हैं जबकि समीर बहादुर सिंह राजपूत हैं.


इसके अलावा कांग्रेस ने दलित समुदाय से आने वाले डॉ. अशोक कुमार और मुस्लिम समुदाय के कौकब कादरी को भी कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है. डॉ. अशोक कुमार मौजूदा वक्त में एमएलए हैं और एक साल पहले नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. जबकि कौकब कादरी कांग्रेस अध्यक्ष के पद से अशोक चौधरी की छुट्टी के बाद से ही एकमात्र कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर तैनात हैं.

कांग्रेस में एक और बड़ी नियुक्ति हुई है. बिहार में चुनाव कैंपेन कमिटी के अध्यक्ष के तौर पर राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह को जिम्मेदारी सौंपी गई है. अखिलेश प्रसाद सिंह भूमिहार जाति से आते हैं. कुछ वक्त पहले ही उन्हें राज्यसभा का सांसद बनाया गया था. कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ में भी अखिलेश प्रसाद सिंह शामिल थे. लेकिन, अब उन्हें महज चुनाव कैंपेन कमिटी की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

टीम के ऐलान करते वक्त सवर्ण समुदाय को साधने की पूरी कोशिश की गई है. सवर्ण समुदाय में भी ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत के अलावा दलित और मुस्लिम के पुराने गठजोड़ को फिर से अपने साथ लाने की कोशिश कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तरफ से की गई है.

दरअसल, कांग्रेस को लगता है कि जिस तरह से सवर्ण समुदाय बीजेपी से एससी-एसटी एक्ट के मुद्दे को लेकर नाराज है, उसका फायदा उसे मिल सकता है. दूसरी तरफ, बिहार में जेडीयू, बीजेपी, आरएलएसपी और एलजेपी समेत एनडीए के घटक दल पिछड़े और दलित तबके की राजनीति पर ज्यादा जोर दे रहे हैं. इसके अलावा महागठबंधन के दल आरजेडी और हम भी पिछड़े और दलित समुदाय की राजनीति पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. यहां तक कि आरजेडी के अलावा जेडीयू ने भी सवर्ण गरीबों के आरक्षण को खारिज कर दिया है.

ऐसे में कांग्रेस के रणनीतिकारों को अपने लिए पैर जमाने का मौका दिख रहा है. कांग्रेस को लगता है कि सवर्णों में उपेक्षा का भाव पैदा हो रहा है और यही वक्त सवर्णों को अपने पाले में करने का है.

हालाकि, कांग्रेस के नवनियुक्त कार्यकारी अध्यक्ष समीर कुमार सिंह जाति की राजनीति से इनकार करते हैं. फर्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान समीर कुमार सिंह कहते हैं, ‘कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी के प्रति वफादारी और अनुभव को ध्यान में रखकर फैसला किया है.’ उनका कहना है, ‘टीम में ऐसे पुराने कांग्रेसियों को रखा गया है जिनके पास 35 से 40 साल का अनुभव हो. समीर सिंह कहते हैं, ‘पार्टी में कोई गुटबाजी नहीं है. ऐसे में हम सफल होकर अध्यक्ष राहुल गांधी की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे.’

राहुल गांधी के साथ समीर सिंह

गौरतलब है कि समीर कुमार सिंह पहले भी 2008 में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष रह चुके हैं. समीर सिंह के पिता राजेंद्र प्रसाद सिंह बिहार सरकार में मंत्री रह चुके हैं जबकि उनके दादा बनारसी प्रसाद सिंह तीन बार सांसद रह चुके हैं. इसके अलावा मोकामा के रहने वाले श्याम सुंदर सिंह धीरज भी पुराने कांग्रेसी नेता हैं.

बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी की 23 सदस्यीय कार्य समिति और 19 सदस्यीय सलाहकार समिति का भी गठन कर दिया गया है. इसमें भी सभी तबके को साधने की कोशिश की गई है.

दलित समुदाय से आने वाले अध्यक्ष अशोक चौधरी के कांग्रेस छोड़कर जेडीयू में शामिल होने के बाद से ही कांग्रेस अपनी टीम नहीं बना पा रही थी. पिछड़े समुदाय के सदानंद सिंह पहले से ही कांग्रेस विधायक दल के नेता हैं. ऐसे में अब नई टीम में ब्राम्हण अध्यक्ष के अलावा कार्यकारी अध्यक्ष भूमिहार, राजपूत, दलित और मुस्लिम बनाकर कांग्रेस ने सबको साधने की कोशिश की है. लेकिन, नजर सवर्ण पर सबसे ज्यादा है.