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कांग्रेस का 84वां अधिवेशन: 2019 के लिए कितने तैयार दिखते हैं राहुल गांधी

आज कांग्रेस का स्टेज खाली है. राहुल गांधी ने इसे युवाओं के लिए खाली किया है. लेकिन सवाल है कि क्या युवा इस खाली स्टेज को सच में भरना चाहते हैं?

Vivek Anand

कांग्रेस के 84वें अधिवेशन की एक तस्वीर ट्वीट हुई. तस्वीर में अधिवेशन के मंच की तरफ बढ़ते हुए सोनिया गांधी बैरिकेड के बाहर खड़ी लड़की को एक सेलफोन देते हुए दिख रही हैं. तस्वीर की कहानी कुछ यूं बताई गई कि कांग्रेस के वीआईपी नेताओं के गुजरने वाले रास्ते पर एक लड़की का सेलफोन गिर गया था. लड़की बैरिकेड के बाहर थी इसलिए सेलफोन वहां से उठा नहीं पा रही थी.

वीआईपी नेता आ-जा रहे थे लेकिन किसी का ध्यान इस तरफ नहीं गया. तभी वहां से सोनिया गांधी गुजरी और उन्होंने जमीन पर पड़े सेलफोन को उठाकर उस लड़की को दे दिया. इसके साथ ही सोनिया गांधी ने मुस्कुराते हुए इस असुविधा के लिए लड़की को सॉरी भी कहा. बड़ी मामूली सी तस्वीर थी. लेकिन इसी मामूली तस्वीर के जरिए सोनिया गांधी के मानवीय, संवेदनशील और मददगार रवैये की तारीफ की गई. तस्वीर कांग्रेस के ही एक कार्यकर्ता ने अपनी संवेदनशील नेता की एक झलक दिखाने के लिए ट्वीट की थी. जिसे सोशल मीडिया में खासी तवज्जो मिली.


ये तस्वीर इसलिए खास हो गई क्योंकि हम ये उम्मीद नहीं करते कि एक वीवीआईपी नेता एक मामूली सी लड़की के मामूली सा फोन उठाने के लिए झुकने की जहमत उठाएगा.

एक और तस्वीर है. जिसमें राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी के गले लग रहे हैं. अधिवेशन की भीड़-भाड़ में सारे लकदक नेताओं के बीच राहुल का अपनी मां के लिए ये लाड़ प्यार दिल को छू लेता है. तस्वीर को देखते ही एकबारगी मन में यही ख्याल आता है कि अपने जैसे ही तो हैं ये. यही सब तो हम करते हैं. क्या हम इस स्थिति में रहते तो ऐसा नहीं कर रहे होते? राजनीति की बेहद रूखी और बनावटी दुनिया में इंसानी जज्बात को हल्के से छू जाने वाली ऐसी तस्वीरें बड़ी मुश्किल से मिलती हैं. और मिलती हैं तो फिर इसकी तारीफ भी होती है.

कांग्रेस के 84वें अधिवेशन में सोनिया गांधी के गले लगते राहुल गांधी

लेकिन सवाल है कि जिस दौर में धर्म आधारित भावनाओं को कुचलने वाली घातक राजनीति हो रही हो, जहां जमीनी स्तर की राजनीति इस बात से तय हो रही हो कि किसके हक में कितने मुसलमान हैं और कितने हिंदू हैं, जहां वोटों के गणित को अपने हिसाब से बदलने के लिए माहौल में नफरत भरने से भी गुरेज नहीं किया जाता हो, वहां ऐसी तस्वीरों के जरिए प्रतीकात्मक संदेश देने कि कितनी गुंजाइश रह जाती है?

एक तरफ जहां सोशल मीडिया पर इस तरह की तस्वीरें जारी हो रही थीं तो दूसरी तरफ वो वीडियो भी वायरल था, जिसमें कांग्रेस के इस मेगा इवेंट की खाली पड़ी कुर्सियों को दिखाया जा रहा था. इस मकसद के साथ कि देखिए रोटी-रोजगार और किसान-मजदूर की खोखली और आसमानी बातें करने वाले लोग आंकड़ों की जमीन पर कितने खाली हैं.

हालांकि इन सबके बीच मूल सवाल ये है कि प्रतीकात्मक तस्वीरों और संदेशों के जरिए भी जो राजनीति कांग्रेस और राहुल गांधी कर रहे हैं वो भविष्य की उनकी राजनीति और कांग्रेस की दशा-दिशा की कैसी तस्वीर पेश करते हैं? कांग्रेस के 84वें अधिवेशन में राहुल गांधी के भाषण पर जरा गौर फरमाने की जरूरत है.

राहुल गांधी को कभी अच्छा बोलने वाला नहीं माना गया. उन्होंने खुद कई मौकों पर कहा है कि वो अच्छे वक्ता नहीं हैं. हालांकि अपनी इस कमी का बचाव करने के लिए साथ में ये भी जोड़ देते हैं कि वो सिर्फ बोलते नहीं हैं बल्कि सुनते भी हैं. बोलने के दौर में सुनने का महत्व कम पड़ते जाने के बावजूद पिछले दिनों ऐसे कई मौके आए हैं, जहां उनके भाषणों पर खूब तालियां बजी हैं. उनके बयानों की सोशल मीडिया में तारीफ हुई है.

कांग्रेस 84वें अधिवेशन में सोनिया गांधी

उनके सधे हुए जवाब को उनके आलोचकों ने भी सराहा है. जैसे रविवार को कांग्रेस के 84वें महाधिवेशन में उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत बड़े ही अनौपचारिक तौर पर की. बिल्कुल हल्के-फुल्के अंदाज में. माइक पकड़ा और वहां मौजूद कांग्रेस के हजारों कार्यकर्ताओं से पहले बोले- “कैसे हैं? अच्छा... अच्छा मूड है...?” कोई बनावटीपन नहीं. कोई दिखावे जैसी बात नहीं. कोई बड़े नेता वाला एटीट्यूट नहीं.

राहुल गांधी मोदी सरकार पर आक्रामक लहजे में हमले करते हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर तीखे प्रहार करते हैं. राजनीतिक हमलों के तेवर में वो खुद को कहीं से भी कम पड़ते नहीं दिखाना चाहते. और इस सबके बीच वो अपनी ही पार्टी की असलियत बताने पर भी उतर आते हैं. अच्छी बात ये है कि उनकी इन्हीं सच्ची बातों पर सबसे ज्यादा तालियां भी बजती हैं. रविवार को राहुल गांधी जब कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी पर बोलने पर आए तो सबसे ज्यादा तालियां बजीं.

राहुल गांधी ने संगठन के तौर पर कांग्रेस की कमजोरी की वजह कार्यकर्ताओं की अनदेखी को बताया. राहुल बोले, 'इस संगठन को बदलना पड़ेगा. कैसे बदलना पड़ेगा मैं बताता हूं… वो जो पीछे हमारे कार्यकर्ता बैठै हैं. उनमें उर्जा है, शक्ति है, देश को बदलने की शक्ति है. मगर उनके और हमारे नेताओं के बीच में एक दीवार खड़ी है. मेरा पहला काम- उस दीवार को तोड़ने का होगा. गुस्से से नहीं... प्यार से... और जो हमारे सीनियर नेता हैं, उनकी इज्जत रखकर उनसे प्यार करके हम ये दीवार तोड़ेंगे.'

कांग्रेस के 84वें अधिवेशन में राहुल गांधी और सोनिया गांधी

राजनीतिक हैसियत में ही नहीं एक संगठन के तौर पर भी कांग्रेस पार्टी लगातार कमजोर पड़ी है. लगातार हार की एक वजह ये भी है. कांग्रेस के पांव शहर से लेकर कस्बों और गांवों तक से उखड़े हैं. इसकी कई वजहें हैं. और कुछ वजहों के बारे में राहुल गांधी ने खुद ईमानदारी से स्वीकार किया.

राहुल गांधी बोले, 'ये जो नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच दीवार है. इस दीवार के अलग-अलग रूप होते हैं. एक रूप होता है- पैराशूट से ऊपर से टिकट लेकर कोई व्यक्ति गिरता है. दूसरा रूप होता है- 10-15 साल तक कार्यकर्ता खून पसीना देता है, फिर कहा जाता है कि तुम कार्यकर्ता हो तुम्हारे पैसा नहीं है. इसलिए तुम्हें टिकट नहीं मिलेगा....नहीं... अब नहीं..अब अगर तुम कांग्रेस के कार्यकर्ता हो तो तुम्हें टिकट मिलेगा.'

राहुल गांधी गुजरात का उदाहरण देकर बताते हैं कि गुजरात में कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं को टिकट दिया गया और नतीजे अच्छे आए. पिछले साल दिसंबर में हुए चुनाव में कांग्रेस ने 35 वर्षों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था. कांग्रेस ने 80 सीटों पर जीत हासिल की थी. प्रधानमंत्री मोदी के मेगा कैंपेन और गुजरात से लेकर दिल्ली तक से सारा जोर लगाने के बाद भी कांग्रेस की ऐसी जीत पार्टी का उत्साह बढ़ाने वाला था. लेकिन अब इससे आगे बढ़कर सोचना होगा. राहुल गांधी इस बात को समझते हैं. इसलिए वो अधिवेशन के मंच को दिखाते हुए कहते हैं कि ये मंच इसलिए खाली है ताकि युवाओं को मौका मिले.

राहुल गांधी कहते हैं, 'आप सभी राजनीतिक दलों की मीटिंग देख लो. मैं हिंदुस्तान के युवाओं से कहना चाहता हूं. आप ये स्टेज देखो. बाकि राजनीतिक दलों की ऐसी मीटिंग देख लो. आपको किसी भी मिटिंग में ऐसा खाली स्टेज नहीं दिखेगा. हिंदुस्तान के युवा, जो देश में हैं या बाहर हैं देख लें. मैंने ये स्टेज आपके लिए खाली किया है.'

आज कांग्रेस का स्टेज खाली है. राहुल गांधी ने इसे युवाओं के लिए खाली किया है. लेकिन सवाल है कि क्या युवा इस खाली स्टेज को सच में भरना चाहते हैं? जिन्हें लगता है कि ये दूर की कौड़ी है उन्हें थोड़ा इंतजार कर लेना चाहिए.