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पीताम्बरा शक्तिपीठ पहुंचे ‘शिवभक्त’ 'रामभक्त' 'नर्मदा भक्त' राहुल को क्या मंदिर-मार्ग से मिलेगी राजसत्ता?

वानप्रस्थ झेल रही कांग्रेस आध्यात्म के जरिए सत्ता का मार्ग तलाश रही है

Kinshuk Praval

गुजरात के मंदिरों से शुरू हुई कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की परिक्रमा कैलाश मानसरोवर से होते हुए अब बगलामुखी देवी के मंदिर तक पहुंच गई है. मध्य प्रदेश के दतिया के विश्वप्रसिद्ध पीताम्बरा पीठ मंदिर में राहुल पहुंचे और उन्होंने मां बगलामुखी देवी से आशीर्वाद मांगा. पीताम्बरा शक्तिपीठ मंदिर को लेकर लोगों का सदियों से विश्वास है कि माता प्रसन्न होने पर यहां आने वाले भक्तों को सत्ता और सफलता का आशीर्वाद देती हैं. यह मंदिर राजसत्ता के लिए मशहूर है यही वजह है कि सियासत की दिग्गज शख्सियतें यहां पद और प्रतिष्ठा की मनोकामना लेकर आती रही हैं.

मां पीताम्बरा शक्तिपीठ मंदिर को जागृत माना गया है. यह महाभारतकालीन मंदिर है. इस मंदिर की माया कुछ ऐसी है कि यहां राष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमंत्री, सियासत के दिग्गज नेता, तमाम मंत्री, समाज के हर क्षेत्र से दिग्गज चेहरे और  विभूतियां माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते हैं. राहुल से पहले इस मंदिर में उनके पिता राजीव गांधी और दादी इंदिरा गांधी भी आ कर दर्शन कर चुकी हैं.


लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के यहां आने के पीछे दूसरी सियासी वजह है. भले ही यह नवरात्र का मौका हो लेकिन सामने 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव का अनुष्ठान भी हैं. यह चुनाव कांग्रेस के सियासी वजूद और राजनीतिक साधना के लिए बेहद जरूरी हैं. इन चुनावों के नतीजों से ही साल 2019 के लोकसभा चुनाव के महायज्ञ को लेकर कांग्रेस-बीजेपी की किस्मत भी तय होगी. यही वजह है कि विधानसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए शहरों-गांवों की सड़कों से लेकर घरों तक तो मंदिर-मस्जिद-चर्च से लेकर गुरुद्वारों तक मत्था टेकने निकल चुकी हैं.

दरअसल, इस चुनाव में भले ही कई स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दे हैं लेकिन इसके बावजूद एक बड़ा मुद्दा छवि का भी है. वो छवि हिंदुत्व की है. इस बार कांग्रेस 'नरम हिंदुत्व' की छवि लेकर मंदिरों की परिक्रमा में जुटी हुई है. राहुल गांधी इस बार कांग्रेस के ‘नरम-हिंदुत्व’ के पोस्टर-बॉय हैं. कैलाश मानसरोवर की यात्रा से लौटे राहुल को 'शिवभक्त' कह कर प्रचारित किया जा रहा है. जहां मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनआशीर्वाद यात्रा के जरिए वोटरों के दिलो-दिमाग पर दस्तक देने की कोशिश कर रहे हैं तो राहुल गांधी मंदिर दर्शन कर हिंदू वोटरों के मन-मस्तिष्क में नई कांग्रेस की छाप छोड़ना चाह रहे हैं.

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव को देखते हुए हिंदुत्व की अनदेखी नहीं की जा सकती है. इसी अनदेखी के चलते ही मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का वनवास जारी है. तभी कांग्रेस इस बार बीजेपी की ही तरह एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में खुल कर हिंदुत्व-कार्ड खेल रही है ताकि कांग्रेस पर अतीत में लगे मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपनाने के आरोपों से छुटकारा मिल सके.

यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने एक बार बीजेपी पर आरोप लगाया था कि उसने कांग्रेस की छवि मुस्लिम परस्त पार्टी होने की गढ़ी है जिसका नुकसान साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ा. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार पर आई एंटनी रिपोर्ट ने भी कहा था कि हिंदुओं से दूरी ने ही कांग्रेस को सत्ता से भी दूर किया है. यही वजह है कि कांग्रेस अब तमाम पुराने ठप्पों से पीछा छुड़ाते हुए नरम-हिंदुत्व के एजेंडे पर मंदिर मार्ग अपनाने को मजबूर हुई है.

अब कांग्रेस भी बीजेपी पर राम के नाम पर किए गए वादों को पूरा न करने का आरोप लगा रही है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि बीजेपी ने राम वन गमन पथ बनाने का वादा किया था लेकिन रामपथ नहीं बनाया. उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो वो रामपथ बनाएगी.

लेकिन हिंदुत्व कार्ड खेलते वक्त वो समझदारी और सावधानी भी बरत रही है. मंदिरों के अलावा राहुल मस्जिद और गुरुद्वारे भी जा रहे हैं. स्पष्ट है कि राहुल अल्पसंख्यकों में यह भाव नहीं जगाना चाहते कि बीजेपी के दबाव में आकर कांग्रेस अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि से दूर हो रही है. यानी कांग्रेस नरम-हिंदुत्व की राह पर सेकुलर छवि को लेकर सतर्क भी है.

बहरहाल, वानप्रस्थ झेल रही कांग्रेस आध्यात्म के जरिए सत्ता का मार्ग तलाश रही है. कहा जा रहा है कि पीताम्बरा पीठ में दर्शन के बाद राहुल उज्जैन के महाकाल भी जाएंगे. इससे पहले राहुल चित्रकूट के राम मंदिर में भगवान के दर्शन कर चुके हैं. अब राहुल की मंदिर परिक्रमा और आरती-आराधना पर भी नजर रखी जा रही है. उन पर आरोप है कि उन्होंने 6 अक्टूबर को नर्मदा मैया की आरती सांझ ढलने से पहले ही कर दी थी. ऐसे में राहुल को मंदिर-परिक्रमा के दौरान किसी नए विवाद से बचने की जरूरत है क्योंकि राहुल के हिंदुत्व पर सवाल उठाने वाले उनके जनेऊ-धारण पर भी सवाल उठा चुके हैं. हालांकि कहा यह भी जाता है कि ऐसे सवाल न उठते अगर कांग्रेस ने वोट के लिए 'धर्मांतरण' न किया होता.