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राहुल चाहते हैं जमीन पर दिखे कांग्रेस का विरोध...सड़क पर संघर्ष का प्लान

आम चुनाव से पहले कांग्रेस बड़ा जनांदोलन करने की तैयारी कर रही है. पार्टी जनता का ध्यान मोदी सरकार की नाकामियों की तरफ दिलाना चाहती है.

Syed Mojiz Imam

आम चुनाव से पहले कांग्रेस बड़ा जनांदोलन करने की तैयारी कर रही है. पार्टी जनता का ध्यान मोदी सरकार की नाकामियों की तरफ दिलाना चाहती है. कांग्रेस को लग रहा है कि सरकार के खिलाफ मुद्दों की कमी नहीं है. लेकिन पार्टी इसको कैश नहीं कर पा रही है. मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे कांग्रेस उठाना चाहती है.

ये सारे मसले संसद में पार्टी उठा रही है. लेकिन इसको सड़क तक ले जाने में कामयाबी नहीं मिल पा रही है. कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में काफी देर तक चर्चा हुई है. जिसमें तय हुआ है कि राज्य के प्रभारी आंदोलन के लिए रूपरेखा तैयार करके इस पर अमल करने की योजना पार्टी के सामने रखेंगे.


संसद से सड़क तक का प्रोग्राम

संसद में राहुल गांधी ने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान जमकर आरोप लगाए. लेकिन पार्टी इन मसलों को जनता के मसले में तब्दील करने में सफल नहीं हो पा रही है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को लग रहा है कि राजनीतिक हवा बदल रही है. लेकिन इस हवा को कांग्रेस के पक्ष में करने के लिए पार्टी अभी तक कोई प्रोग्राम नहीं कर पा रही है.

इसलिए अब पार्टी चुनाव के नौ महीने पहले इसकी तैयारी कर रही है. इसको सड़क पर कैसे उतारेगी, ये खाका अमल में आना बाकी है. जनता के आक्रोश को वोट में बदलने में कांग्रेस का अमला सुस्त है. चुनाव वाले राज्य में भी पार्टी का जनता से कनेक्ट न हो पाना चिंता का विषय है.

राज्य के नेता कांग्रेस आलाकमान की तरफ टकटकी लगा कर देख रहे हैं. वहां से इशारा मिलने के बाद ही हरकत करते हैं. हालांकि कुछ नेता मेहनत कर रहे हैं. हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर की साइकिल यात्रा चल रही है. बकौल अशोक तंवर उनकी यात्रा को जनता का समर्थन मिल रहा है. अशोक तंवर की यात्रा के कई चरण पूरे हो गए हैं. बाकी राज्यों से इस तरह की खबर आना बाकी है.

फ्रंटल संगठन सुस्त

कांग्रेस के फ्रंटल संगठन कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर पा रहे हैं. दिल्ली में जो आंदोलन देखने को मिल रहा है. उसमें भीड़ नहीं जुट पा रही है. ज्यादातर ऐसे प्रोग्राम रस्म अदायगी की तरह लग रहे हैं. राफेल मुद्दे पर सोमवार को दिल्ली यूथ कांग्रेस ने प्रदर्शन किया लेकिन उसका कोई असर देखने को नहीं मिल रहा है.

हालांकि यूथ कांग्रेस के नए अध्यक्ष केशव यादव पूरे देश में जाकर कार्यकर्ताओंं  को संगठित करने का प्रयास कर रहे हैं. केशव यादव ने कहा कि भारत बचाओ आंदोलन बदस्तूर जारी है. जिसके तहत सरकार के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा है. लेकिन ये आंदोलन महज फोटो सेशन से ज्यादा कुछ नहीं है.

महिला संगठन का दिल्ली में प्रदर्शन सिर्फ एआईसीसी के गेट तक महदूद होकर रह गया है. पिछले कई धरने अकबर रोड पर ही समाप्त हो गए. बिहार के शेल्टर होम वाली घटना कांग्रेस के लिए बड़ा मुद्दा बन सकता थी. लेकिन महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देब इस अवसर का उपयोग नहीं कर पाईं. इस पर कांग्रेस को तेजस्वी यादव के भरोसे चलना पड़ रहा है. जबकि कांग्रेस निर्भया कांड के समय चलाए गए आंदोलन से सीख ले सकती थी.

राफेल पर राहुल गांधी काफी चुस्त हैं लेकिन उनकी पार्टी के लोग रक्षा मंत्री के खिलाफ कोई माकूल धरना नहीं दे पाए. हालांकि 2003-2004 में तत्कालीन यूथ के अध्यक्ष रणदीप सुरजेवाला उस वक्त के रक्षा मंत्री रहे जार्ज फर्नाडिस के खिलाफ उनके घर तुगलक रोड पर प्रदर्शन करते रहे. लेकिन ऐसे जज्बे की कमी दिखाई दे रही है. सड़क पर संघर्ष करने से कांग्रेस कतरा रही है. कोई आंदोलन लंबे समय तक नहीं चल पा रहा है.

कमोवेश कांग्रेस सेवा दल का भी यही हाल है. नए मुखिया के आने के बाद भी सेवा दल पस्त है. आरएसएस के खिलाफ सेवा दल कांग्रेस के काम आ सकता है लेकिन सेवा दल न ही दैवी आपदा में न ही किसी अनहोनी में सेवा करते हुए दिखाई दे रहा है. सेवादल सिर्फ कांग्रेस के आयोजन में ही दिखाई पड़ता है.

सुप्रीम कोर्ट के एससी/एसटी एक्ट पर फैसले के बाद कांग्रेस संसद में तो बोली, लेकिन सड़क पर अपने आपको नहीं खड़ा कर पाई. जबकि इस मसले पर पूरे देश का दलित आंदोलित था.

कांग्रेस को अन्ना मोमेंट की जरूरत

अन्ना आंदोलन के समय की तस्वीर

2014 में बीजेपी की कामयाबी के पीछे अन्ना हजारे के लोकपाल अनशन का भी महत्वपूर्ण रोल था. मोदी सरकार का पूरा कार्यकाल बिना लोकपाल नियुक्त किए बीत रहा है. सुप्रीम कोर्ट सरकार से जवाब-तलब कर रहा है. इस तरह कालाधन पर रामदेव के अभियान का कांग्रेस पर बुरा असर रहा है. लेकिन इन दोनों मुद्दों पर कांग्रेस सिर्फ बयानबाज़ी करती रही. जनता को जोड़ने की कोशिश नहीं हुई. जिस जीएसटी के मसले पर सूरत में बड़े प्रदर्शन हुए. वहां बीजेपी का विधानसभा में चुनाव जीतना इस बात का सबूत है.

कांग्रेस पुराने ढर्रे पर

कांग्रेस के वर्कर राहुल गांधी के तीखेपन से उत्साहित तो हैं. लेकिन बहुत आशावादी नहीं लग रहे हैं. कांग्रेस का ज्यादा जोर गठबंधन पर है. लेकिन पार्टी अपनी मजबूती पर ध्यान नहीं दे रही है. कांग्रेस मुद्दे तो उठा रही है. लेकिन उसको जनता तक नहीं ले जा पा रही है. मसलन मोदी उज्जवला योजना का बखान कर रहे हैं. लेकिन कांग्रेस का सिलेंडर का दाम बढ़ने का विरोध सोशल मीडिया तक सीमित है. जबकि 2003-2004 की तस्वीर सबके जेहन में होगी किस तरह स्मृति ईरानी और सुषमा स्वराज ने यूपीए के खिलाफ प्रदर्शन किए थे.

कांग्रेस के आंदोलन में न नयापन आ रहा है, न धार. जिसके लिए राहुल गांधी चिंतित दिखाई दे रहे हैं. हालांकि सवाल उठ रहा है कि कांग्रेस क्या काशी के अस्सी के उस प्रसंग की तरह तो नहीं हो रही है जिसमें कहा गया कि कांग्रेस बुझे हुए हुक्के की तरह है...ये तो हमीं हैं जो गुड़गुड़ाए जा रहे हैं. हालांकि कांग्रेस के इस हुक्के को फिर से शबाब पर लाने के लिए जनता से कनेक्ट की जरूरत है.