2002 में महाराष्ट्र में कांग्रेस नेतृत्व वाली विलासराव सरकार गिरने ही वाली थी. हार को देखते हुए उन्होंने अपने सभी विधायक कर्नाटक भेज दिए, जहां एसएम कृष्णा की सरकार थी. कृष्णा ने विधायकों को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी शहरी विकास मंत्री डीके शिवकुमार को दी. वे उन्हें बेंगलुरु के बाहर स्थित ईगलटन रिजॉर्ट ले गए और एक हफ्ते तक उनका ख्याल रखा. विश्वासमत के दिन वे उन्हें सुरक्षित मुंबई लाए और इस तरह विलासराव की सरकार बच पाई. इस घटना के बाद शिवकुमार देशभर के अखबारों में छा गए. इस घटना के बाद गांधी परिवार से उनके संबंध और मजबूत हो गए.
डीकेएस के नाम से मशहूर शिवकुमार कर्नाटक की राजनीति में काफी चर्चित हैं. गौड़ा परिवार के गढ़ में उनसे ही लड़ते हुए वे स्टेट पॉलिटिक्स में ऊपर तक पहुंचे.
शिवकुमार वोक्कालिगा हैं और उन्होंने 1989 में कनकपुरा के सथनूर में पहला विधानसभा चुनाव जीता. इस चुनाव में उन्होंने कर्नाटक की राजनीति के धुरंधर एचडी देवगौड़ा को हराया था. 1990 में जब एस बंगरप्पा मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने शिवकुमार की काबिलियत को पहचाना और उन्हें जेल एंव होमगार्ड प्रोफाइल के साथ मंत्री बनाया. छोटी प्रोफाइल होने के बावजूद शिवकुमार ने अपनी काबिलियत के बूते पार्टी और सीनियर लीडर्स का ध्यान खींचा. उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 29 साल थी.
1194 में देवगौड़ा नेतृत्व वाली जनता दल सत्ता में आई तो शिवकुमार उन चुनिंदा नेताओं में थे, जिन्होंने खुद को बचाए रखा. देवगौड़ा के पीएम रहते हुए भी शिवकुमार ने उनसे लड़ाई जारी रखी.
1999 में जब एसएम कृष्णा मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने शिवकुमार को शहरी विकास मंत्री बनाया. 2002 में लोकसभा उपचुनाव में वह देवगौड़ा के खिलाफ लड़े, लेकिन हार गए. हालांकि, 2004 के लोकसभा चुनाव में देवगौड़ा को हराकर उन्होंने बदला ले लिया था.
लेकिन लोकसभा चुनाव के साथ-साथ हुए विधानसभा चुनाव में कृष्णा सरकार हार गई. कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन सरकार बनाई और शिवकुमार को इससे बाहर रखा. कर्नाटक कैबिनेट में वापस आने के लिए उन्हें 2014 तक का इंतज़ार करना पड़ा.
येदियुरप्पा सरकार में वह कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर रहे.
जब सिद्धारमैया नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार 2013 में सत्ता में आई, भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण शिवकुमार को बाहर रखा गया. लेकिन उन्होंने न तो पार्टी छोड़ी और न ही हाई कमांड के खिलाफ कुछ कहा. जनवरी 2014 में उन्हें ऊर्जा मंत्री बनाया गया.
अगस्त 2017 में गुजरात राज्यसभा चुनाव में जब बीजेपी ने सोनिया गांधी के पॉलिटिकल सेक्रेटरी अहमद पटेल को हटाने की कोशिश की तो शिवकुमार ने गुजरात कांग्रेस विधायकों को शरण दी थी. उनपर इनकम टैक्स और ईडी के छापे भी पड़े लेकिन वे डगमगाए नहीं. अहमद पटेल जीते और शिवकुमार की जगह पार्टी में और मजबूत हुई.
चूंकि सिद्धारमैया उन्हें खतरा मान बैठे थे, इसलिए मई 2017 में उन्हें कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष नहीं बनाया गया. लेकिन फिर भी उन्होंने सिद्धारमैया के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला. पिछले चुनाव में वे प्रचार समिति के अध्यक्ष थे.
खंडित अधिदेश आने पर इसी शिवकुमार ने गौड़ा परिवार से हाथ मिला लिया और बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने की कोशिश की. इस बार भी विधायकों को तीन दिन तक ईगलटन रिजॉर्ट में रखा गया.
उन्होंने सुनिश्चिक किया कि कांग्रेस का कोई भी विधायक इधर से उधर न जाए. यही नहीं वे 'गायब' विधायक प्रताप गौड़ा पाटिल और आनंद सिंह को वापस लाने में सफल रहे.
शिवकुमार के दुश्मन उनसे डरते हैं. वे भविष्य में कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने की इच्छा भी रखते हैं. पत्रकारों से बात करते हुए शिवकुमार ने कहा था कि वे सात विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं और उन्होंने पार्टी के लिए काफी कुछ किया है. इसलिए वह सीएम पद के लिए उपयुक्त हैं. और ज्यादातर लोग इससे सहमत भी हैं.
(न्यूज़18 के लिए डी.पी सतीश की रिपोर्ट)