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सत्याग्रह के जरिए मुख्यमंत्री बनने की राह तलाश रहे 'महाराज' !

कांग्रेस के अंदर कमलनाथ, दिग्विजय सिंह आगे न निकल जाएं इसलिए ज्योतिरादित्य 72 घंटे के सत्याग्रह पर बैठने जा रहे हैं

Amitesh

मंदसौर में बीते 6 जून को किसानों के आंदोलन के दौरान पुलिस की फायरिंग में 6 किसानों की मौत हो गई थी. इसके बाद किसानों का आंदोलन और ज्यादा उग्र और आक्रामक हो गया था.

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदसौर के पीड़ितों का हाल जानने की कोशिश की. किसी ने इसे सियासी टूरिज्म कहा तो किसी ने वोट वैंक की पॉलीटिक्स. लेकिन, इस फोटोअप से मध्य प्रदेश के 'महाराज' यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया नदारद रहे.


सिंधिया निजी कारणों से तब देश के बाहर थे. लिहाजा इस पूरे आंदोलन के दौरान पार्टी के ही अंदर वो अपने विरोधी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से काफी हद तक पिछड़ गए.

उन्हें लगा कि विदेश दौरे पर होने के चलते सूबे की सियासत में माइलेज लेने का मौका उनके हाथ से सरक न जाए. लिहाजा वतन वापसी के बाद अब वो सूबे की सियासत में अपनी कमी की भरपाई में जुट गए हैं.

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महाराज' की कोशिश अपनी गलती सुधारने की है

शिवराज के उपवास और विरोधियों के बढ़त लेने के बाद अब 'महाराज' की कोशिश अपनी गलती सुधारने की है. उनको लगता है कि पार्टी के भीतर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे उनके विरोधी उनसे आगे न निकल जाएं इसलिए अब वो सत्याग्रह पर बैठने जा रहे हैं.

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एमपी के 'महाराज' 14 जून से 72 घंटे के सत्याग्रह पर जा रहे हैं. इस उम्मीद में कि शायद इस दौरान तीन दिन तक वो ही लगातार चर्चा के केंद्र में रहेंगे. उम्मीद वही है कि किसानों के हमदर्द बनकर वो उभरें और उससे हासिल हमदर्दी से वो प्रदेश में कांग्रेस के भीतर की सियासत में बाकी नेताओं पर भारी पड़ें.

लेकिन, अब प्रदेश में आंदोलन की आग शांत होती दिख रही है. धीरे-धीरे हालात सामान्य हो रहे हैं, जिंदगी आहिस्ता-आहिस्ता पटरी पर लौट रही है. अब जब आंदोलन की आग शांत हो रही है तो आग के राख पर सिंधिया अपनी सियासी रोटी सेकने की कोशिश कर रहे हैं.

नेता नहीं चाह रहे कि किसी भी सूरत में आंदोलन से पैदा हुए तापमान में कमी आए. वरना सियासी रोटी सेकने की उनकी कोशिशों को झटका लग सकता है.

यही वजह है कि किसानों के आंदोलन और मौत के बाद का असल पोस्टमार्टम अब शुरू हुआ है. अगले साल सूबे में चुनाव है. उसके पहले हर नेता का कदम और बयान आने वाले चुनाव को ध्यान में रखकर ही दिया जा रहा है.

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15 साल बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस के आएंगे 'अच्छे दिन' ?

शिवराज ने उपवास के जरिए अपनी खिसकती सियासी जमीन संभालने की कोशिश की है. जबकि, कांग्रेस के भीतर एक उम्मीद दिख रही है कि शायद 15 साल बाद मध्य प्रदेश में एक बार फिर उसके 'अच्छे दिन' आ जाएं.

सिंधिया का सत्याग्रह शिवराज के उपवास की तरह ही है, जहां वो लगातार किसानों से मुलाकात करेंगे, उनकी बात सुनेंगे, सरकार को घेरेंगे और सरकार की तमाम नीतियों की पोल खोल कर अपनी नीति की भरपाई की कोशिश करेंगे.

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कांग्रेस के भीतर इस वक्त कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया का वर्चस्व है. इन तीनों का अपना अलग गुट है जो प्रदेश की राजनीति में हावी है. लेकिन, चुनाव से साल भर पहले मध्य प्रदेश में इसी गुटबाजी के चलते अब तक किसी के भी प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर नाम की घोषणा नहीं की जा सकी है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह की पार्टी संगठन पर अच्छी पकड़ मानी जाती है. लेकिन, दोबारा उनके हाथ में प्रदेश की कमान देना मुश्किल ही लग रहा है.

दूसरी तरफ, कमलनाथ गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं. कमलनाथ प्रदेश की बजाए अपना अधिक वक्त केंद्र की राजनीति करते बिताते हैं. लेकिन, ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र के साथ-साथ प्रदेश की सियासत में भी बराबर दखल रखते हैं. राहुल गांधी के करीबी युवा नेता सिंधिया की छवि साफ-सुथरी रही है. अब तक उनके उपर किसी तरह का कोई दाग नहीं है.

किसान आंदोलन के दौरान मंदसौर में हुई हिंसा और उपद्रव में 6 किसानों की गोली लगने से मौत हो गई थी (फोटो: पीटीआई)

कांग्रेस वनवास खत्म होने का सपना संजो रही है

ऐसे में पार्टी आलाकमान के सामने मुश्किल है कि प्रदेश की कमान किसके हाथ में दे. चुनाव में महज एक साल का वक्त है और उसके पहले किसान आंदोलन ने कांग्रेस के भीतर एक नई उर्जा का संचार किया है जिसके दम पर कांग्रेस अपना वनवास खत्म होने का सपना संजोने लगी है.

'महाराज' का सत्याग्रह इसी सपने को साकार करने की तैयारी के लिए है. आंदोलन से आस बंधी है कि शायद इस बार सूबे की सियासत नई करवट ले. लेकिन, उसके पहले पार्टी के भीतर अपनी पोजिशनिंग करने और विदेश दौरे के बाद अपने खोए मौके को वापस नए अवसर में बदलने की उनकी कोशिश उन्हें सत्याग्रही बना रही है.