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दिल्ली में शीला दीक्षित को आगे कर देश में माहौल बनाने की तैयारी कर रही है कांग्रेस

2004 और 2009 में कांग्रेस के लिए आंध्र प्रदेश ने एकमुश्त सांसद जिताकर भेजे थे. लेकिन अब तस्वीर अलग है

Syed Mojiz Imam

दिल्ली में शीला दीक्षित की ताजपोशी से उमड़ी भीड़ से कांग्रेस उत्साहित है. कांग्रेस खुश है कि कार्यकर्ता उत्साहित हैं. कई साल बाद डीपीसीसी के दफ्तर के बाहर रौनक अच्छी दिखाई दे रही थी. कार्यकर्ता खुश हैं कि दिल्ली में आप और बीजेपी के खिलाफ दमदार चेहरे को कांग्रेस ने आगे किया है. कांग्रेस के पास अरविंद केजरीवाल को चुनौती देने के लिए इससे बेहतर विकल्प नहीं है. इस लिहाज से कांग्रेस ने सही काम किया है, लेकिन ऐसा लग रहा है कि ये फैसला पहले हो जाना चाहिए था. वक्त कम है आम चुनाव की तारीख का ऐलान होने में डेढ़ महीने का वक्त बचा है.

दिल्ली, हरियाणा, पंजाब की चुनौती


2009 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में सभी 7 सीट कांग्रेस ने जीती थी. तब दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी. इसका फायदा 2004 के चुनाव में मिला था. 2014 में पार्टी हाशिए पर पहुंच गई, अब इसको नए सिरे से खड़ा करना है. आप की चुनौती सामने है, आप ने कांग्रेस के वोट पर कब्जा कर लिया है. दिल्ली का चुनाव पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है. यहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की तो सत्ता दूर नहीं है. हालांकि वक्त कम है लेकिन दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री को विश्वास है प्रदेश में कांग्रेस वापसी करेगी.

दिल्ली के अलावा हरियाणा के प्रदेश के मुखिया अशोक तंवर का कहना है कि बीजेपी की सरकार हर फ्रंट पर नाकाम है. कांग्रेस को लेकर जनता में उत्साह है. हालांकि जींद में चल रहे उपचुनाव से पता चल जाएगा कि हवा किस ओर चल रही है. हरियाणा में विरोधी दल कई टुकड़ों में बंटा है. कांग्रेस के भीतर भी आपसी गुटबाजी चरम पर है.

पंजाब एक राज्य है, जहां कांग्रेस को 13 सीटों में से ज्यादा सीट जीतने की संभावना है. पंजाब की प्रभारी आशा कुमारी ने आप से किसी तरह के गठबंधन से इनकार किया है. आशा कुमारी ने कहा कि पंजाब में आप नहीं है. हालांकि पंजाब में कांग्रेस को लगातार चुनावी राजनीति में सफलता मिल रही है.

राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़

इन तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है. कांग्रेस की लोकसभा सीट यहां सबसे ज्यादा बढ़ सकती है. राजस्थान में कांग्रेस को 25 में से आधी सीट जीतने की उम्मीद है. हालांकि पार्टी का टार्गेट 20 सीट है. मध्य प्रदेश में कमोवेश यही स्थिति है. जहां सत्ता का फायदा कांग्रेस को मिल सकता है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने एकतरफा जीत दर्ज की है. इसलिए वहां ज्यादातर सीट कांग्रेस के खाते में आ सकती है, लेकिन यहां बीजेपी की जड़े मजबूत हैं. इसलिए कांग्रेस को ढील नहीं बरतनी चाहिए.

ओडीशा, बंगाल और पूर्वोत्तर

कांग्रेस के लिहाज़ से सबसे कमज़ोर कड़ी यही तीन राज्य हैं. जिसमें कांग्रेस लगातार कमज़ोर हो रही है. बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस के लिए स्पेस नहीं छोड़ रही हैं. ओडीशा में नवीन पटनायक एकला चलो की लाइन पर चल रहे हैं. पूर्वोत्तर कांग्रेस के गढ़ से बीजेपी का गढ़ बन गया है. वहां कांग्रेस को नए सिरे से कोशिश करने की ज़रूरत है. पूर्वोत्तर में असम से ही 14 लोकसभा की सीट है. बीजेपी की सरकार है. कांग्रेस ने पूर्वोत्तर को राजनीतिक लिहाज़ से नजरअंदाज़ किया है. जिसका खामियाजा पार्टी भुगत रही है.

गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र

ये तीन राज्य बीजेपी के लिहाज़ से मज़बूत हैं. गुजरात में सारी सीट बीजेपी के पास है. बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस ने महाराष्ट्र में मज़बूत गठबंधन खड़ा किया है. एनसीपी कांग्रेस के बीच का गठबंधन बीजेपी पर भारी पड़ सकता है. हालांकि सीटों को लेकर अभी कशमकश है. वहीं गुजरात में कांग्रेस को लग रहा है कि 2009 वाली स्थिति रिपीट कर सकती है. गुजरात में कांग्रेस मज़बूत हुई है. जिसका असर लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है. हालांकि कांग्रेस को 2004 की स्थिति में पहुंचने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी.

साउथ में गठबंधन भरोसे

2004 और 2009 में कांग्रेस के लिए आंध्र प्रदेश ने एकमुश्त सांसद जिताकर भेजे थे. लेकिन अब तस्वीर अलग है. आंध्र प्रदेश और तेलांगना में कांग्रेस कमज़ोर है. पहले जैसी ताकत इन राज्यों में नहीं मिल सकती है. हालांकि कांग्रेस दोनों राज्यों में टीडीपी की सहायता से कुछ सीट जीत सकती है. कर्नाटक में जेडीएस से गठबंधन के बाद भी बीजेपी मज़बूत है. वहां सरकार पर खतरा मंडरा रहा है. तमिलनाडु में भी डीएमके के साथ बड़ा गठबंधन की दरकार है. डीएमके को बड़ा गठबंधन के लिए पीएमके और शशिकला को साथ रखने की जरूरत है. केरल में भी कांग्रेस के सामने लेफ्ट है. हालांकि यहां लेफ्ट और कांग्रेस बराबरी पर छूटते हैं तो भी केंद्र में साथ मिल सकते हैं.

यूपी, बिहार

यूपी की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है. यूपी में एसपी बीएसपी और आरएलडी के गठबंधन से कांग्रेस की आस टूट गई है. कांग्रेस बीजेपी की तर्ज पर छोटी पार्टियों का एक बड़ा मोर्चा खड़ा करने की कोशिश कर रही है. लेकिन शिवपाल यादव के अलावा कोई अन्य दल साथ आते दिखाई नहीं दे रहा है. ओपी राजभर और अनुप्रिया पटेल दोनों पहले ही बीजेपी के साथ मोलभाव कर रहे हैं. अगर वहां बातचीत फेल हुई तो कांग्रेस की बात बन सकती है.

बिहार में बीजेपी और कांग्रेस कमोवेश एक तरह की स्थिति में है. हालांकि आरजेडी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ कांग्रेस का जातीय अंकगणित मज़बूत है. बीजेपी के साथ पासवान हैं तो कांग्रेस के साथ जीतनराम मांझी हैं. ऐसे में बराबर की लड़ाई में कांग्रेस को फायदा हो सकता है.

2004 की तरह रहें नंबर

कांग्रेस को उम्मीद है कि 2004 की तरह उसकी लोकसभा में तादाद रह सकती है. यानी 143 सीट लेकिन ये नंबर तब मिला था, जब आंध्र प्रदेश से एक मुश्त सांसद जीतकर आए थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. कांग्रेस को हर प्रदेश में सीट जीतने की दरकार है. यूपी में बड़ी चुनौती है, लेकिन कांग्रेस यूपी के अलावा अगर हर जगह बेहतर नतीजे लेती है तो इस टार्गेट के आसपास पहुंच सकती है. हालांकि बीजेपी तब भी कांग्रेस से मज़बूत हो सकती है. असली खेल रीजनल पार्टियों के हाथ में चला जाएगा. 2004 में लेफ्ट के सांसदों के समर्थन से सरकार बना ली थी. लेकिन लेफ्ट की ताकत घटी है. अब लेफ्ट कितनी सीट जीतेगा कयास लगाना मुश्किल है.