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एक्सक्लूसिव: कांग्रेस ने गांधी, नेहरू और इंदिरा के सपने किए धराशायी- केसी त्यागी

गुलाम नबी आजाद के बयान का जवाब देना क्यों जरूरी था, बता रहे हैं जेडीयू के पूर्व सांसद केसी त्यागी

KC TYAGI

कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद का यह बयान काफी आपत्तिजनक है कि कुछ लोगों की कई विचारधाराएं होती हैं और वे कई तरह के फैसले लेते हैं. उनका इशारा और निशाना जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा रामनाथ कोविंद को समर्थन ले कर है.

नीतीश कुमार के तरफ से और पार्टी की तरफ से मेरे द्वारा स्पष्ट किए जाने के बाद कि ‘ये आइसोलेटेड इंसिडेंट है और वन टाइम अफेयर है.’ पता नहीं क्यों कांग्रेस के इतने सीनियर नेता ने ऐसा स्टेंटमेंट दिया है.


गुलाम नबी आजाद राज्यसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं. वे इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की कांग्रेस के सरकारों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं. नीतीश कुमार पर की गई उनकी टिप्पणी ने गठबंधन को झकझोर दिया.

कांग्रेस ने यूं खोया विपक्ष को लामबंद करने का मौका 

महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के किसान आंदोलन में विपक्षी दलों और किसान संगठनों की हुई हिस्सेदारी से एक बार फिर से मोदी सरकार के खिलाफ लामबंदी तेज हुई. मंदसौर में 6 किसानों की हत्या के बाद समूचा देश किसान आंदोलन के गिरफ्त में आ गया है. इसी बीच वहशी और अनियत्रिंत भीड़ के द्वारा की गई हत्याओं पर भी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अपनी चिंता व्यक्त कर चुके थे.

कांग्रेस नेतृत्व के पास एक अच्छा मौका था जब इन सारे मुद्दों को उठाकर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर सकती थी. लेकिन, इन जन-आंदोलनों का और जन-असंतोषों के आधार पर पार्टी ने लामबंदी करने के बजाय कांग्रेस ने अपने ही गठबंधन के मुखिया पर हमला बोलना शुरू कर दिया.

तस्वीर: न्यूज़ 18 हिंदी

आखिर नीतीश पर ही निशाना क्यों?

नीतीश कुमार के गुड गवर्नेस से लेकर उनके स्वच्छ छवि को लेकर समूचे देश में धीरे-धीरे एक एहसास सा बनने लगा कि पीएम मोदी की चुनौती के रूप में एक मुकाबला देने योग्य व्यक्ति मैदान में है.

एचडी देवगौड़ा, शरद पवार और लालू प्रसाद यादव कई अवसरों पर उनके नेतृत्व की प्रशंसा कर उन्हें एक भावी चुनौती के रूप में देख रहे थे.

कई समाचार पत्रों और चैनलों के समूहों के द्वारा उन्हें देश के सबसे सर्वश्रेष्ठ चीफ मिनिस्टर का भी अवार्ड मिल चुका है. बेदाग छवि के मालिक, जातिवाद, परिवारवाद आदि से दूर नीतीश कुमार निरंतर समाचार पत्रों की सुर्खियां बटोर रहे थे.

शायद यही कारण है कि नीतीश कुमार हमारे कुछ मित्रों के निशाना बन गए.

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हम समाजवादी आंदोलन के उच्च आदर्शों के प्रति समर्पित हैं. धरना, प्रदर्शन, जुलूस, हड़ताल और जेल जाना हमारी राजनीति का हिस्सा रहा है. आजादी के तुरंत बाद लोहिया, जेपी और नरेंद्रदेव इस नतीजे पर पहुंच चुके थे कि सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी खेत-खलिहानों और कल-कारखानों के सवालों से दूर हो जाएगी. और इसका रवैया इन क्षेत्रों में कार्यरत वर्गों के प्रति शासक दलों जैसा ही होगा.

इस वजह से जरूरी था जवाब देना 

खुद महात्मा गांधी और पंडित नेहरू नहीं चाहते थे कि कांग्रेस पार्टी से समाजवादी नेताओं की विदाई हो. पंडित नेहरू प्रगतिशील विचारधारा के वाहक थे. धर्मनिरपेक्षता, गुटनिरपेक्षता उनके नस-नस में भरी थी. और अधिकांश राज्यों की कांग्रेस पार्टी दक्षिणपंथी और सामंती वर्गों का प्रतिनिधित्व करती थी.

हमारे पुरखे अगर चाहते तो पार्टी में शीर्षस्थ नेता होने के नाते उच्च स्थानों पर सुशोभित हो सकते थे. इन्हीं श्रेष्ठ आदर्शों को अपना कर हमलोग लोहिया, कर्पूरी ठाकुर और जयप्रकाश नारायण के चले अनवरत संघर्ष का हिस्सा रहे हैं.

आपातकाल समय के लंबी अवधि की जेल भी हमें अपने सिंद्धातों और आदर्शों से नहीं टिका पाई. जब ऐसे प्रतिबद्ध लोगों पर और ऐसे सुनहरे विचार पर प्रहार हो तो जवाब देना आवश्यक होता है.

महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम का आंदोलन लड़ा गया. जवाहरलाल नेहरू अंतरराष्ट्रीय स्तर के नेता थे. धर्मनिरपेक्षता, सार्वजनिक क्षेत्र का निर्माण और विकास, गुटनिरपेक्षता आदि उनके द्वारा दिए गए विचार थे. जवाहरलाल नेहरू पहले गैर अरब मुल्क के प्रधानमंत्री थे जिन्होंने फिलिस्तीन को मान्यता दी. पंडित नेहरू, चाऊ-एन-लाई, मार्शल टीटो, नासिर, सुकार्णो आदि उस समय गुटनिरपेक्ष आंदोलन को मजबूत बना रहे थे.

कांग्रेस के राजनीतिक फिसलन का दौर 

उन्हीं के उत्तराधिकारी पीवी नरसिम्हा राव ने 1992 में गुटनिरपेक्षता को तिलांजलि दे कर न सिर्फ इजरायल के दर्जे को राजनीतिक मान्यता दी, बल्कि इजरायल से सैन्य हथियारों की खरीद-फरोख्त भी परवान चढ़ी.

ये कांग्रेस के नेतृत्व में राजनीतिक फिसलन का दौर था. इंदिरा गांधी ने अपने जीवनकाल में जिन उपलब्धियों को छूआ है. उनमें बैंकों का राष्ट्रीयकरण एक साहसिक कदम था. इससे पहले गरीब आदमी की पहुंच से बैंक बाहर था.

यूपीए1 के दौरान कांग्रेस पार्टी ने पीजे नायक की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया जिसका कार्य और उद्देश्य बैंकों के एक बार फिर से डिनेशनलाइजेशन को दिशा देना था.

नेहरू और इंदिरा के समय पनपे हुए सभी सार्वजनिक उपकरण बंद हो रहे थे. डिसइन्वेस्टमेंट अपने चरम सीमा पर था. और यही वो दौर था जब कांग्रेस पार्टी अपने घोषित समाजवादी कार्यक्रम से पीछे हट गई. नव-उदारीकरण, प्राइवेटाइजेशन और अंधाधुंध विदेशी पूंजी निवेश को बढ़ावा देकर महात्मा गांधी, पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी के सपने को धराशायी कर दिया.

नेहरू और इंदिरा विश्व समाज के सामने धर्मनिरपेक्षता के बड़े आलम्बरदार थे. कांग्रेस पार्टी के शासनकाल में ही एक ऐसा दिन और समय देश को देखने को मिला जब दिल्ली में कांग्रेस की सरकार होते हुए उत्तर प्रदेश में बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया. इसकी तीव्र प्रतिक्रिया समाज विभाजन के तौर पर देखने को मिली.

जब सरकार की जाने की चिंता नहीं की

ऐसा ही दौर जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री थे तो देखने को मिला था. जब बीजेपी के बाहर से समर्थन के चलते संयुक्त मोर्चे की सरकार सत्तारूढ़ थी और वीपी सिंह उसके प्रधानमंत्री थे. सारनाथ यात्रा करते-करते लालकृष्ण आडवाणी अयोध्या में शिलान्यास हेतु एक ईंट रख कर औपचारिकताएं पूरी करना चाहते थे.

केंद्र में जनता दल की सरकार थी. नीतीश कुमार, शरद यादव, रामविलास पासवान आदि सरकार में मंत्री थे. इतिहास गवाह है कि हमारी सरकार चली गई. लेकिन विवादित स्थान पर शिलान्यास नहीं होने दिया.

जिस समय वीपी सिंह के नेतृत्व में मंडल कमीशन की अनुशंसाओं को लागू किया तो मानो देश में भूचाल आ गया. पिछड़े वर्ग और वंचित समाज के लोगों को हितों के लिए आजादी के बाद उनके सशक्तीकरण के लिए उठाया गया यह सबसे बड़ा कदम था और संविधान के व्याख्याओं के अनुकुल था. इसमें सोशली और एजुकेशनली बैकवर्ड लोगों के लिए नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था का उल्लेख है.

हमें खेद है कि वंचित तबकों की हिमायती सरकार को अपदस्थ करने में बीजेपी के साथ कांग्रेस पार्टी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कांग्रेस पार्टी के अधिकांश नेताओं ने इसे जाति-आधारित होने की संज्ञा दी.

किसी के डिक्टेशन पर नहीं चलेगा जेडीयू 

एक बार फिर आज जब गठबंधन को ईमानदार कर्मठ नेतृत्व मिला है. उसको विकसित करने के बजाए उन्हीं में कमी और खामी देखना शुरू कर दिया गया. इसी वजह से अंततः नीतीश कुमार ने यह एहसास करते हुए खुद ही घोषणा की कि वह किसी टॉप पोस्ट के उम्मीदवार नहीं है. उनकी पार्टी छोटी पार्टी है और 15-20 सांसदों के बल पर प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं.

लिहाजा विपक्षी दलों को अब एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बना कर कार्य करना चाहिए. जेडीयू किसी सहयोगी पार्टी के डिक्टेशन पर काम नही कर सकता. नीतीश कुमार ने गुलाम नबी आजाद के सवालों पर कड़ा प्रतिवाद जताते हुए भी गठबंधन को और मजबूत बनाने का आह्वान किया है.