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इतिहासकार रामचंद्र गुहा क्यों चाहते हैं कि नीतीश बनें कांग्रेस अध्यक्ष?

आखिर क्यों एक इतिहासकार को कांग्रेस बिना नेतृत्व की पार्टी लगती है.

Kinshuk Praval

इतिहासकार जब वर्तमान को अपने नजरिये से देखता है तो उसके साथ इतिहास के पन्ने तथ्यों के रूप में मौजूद होते हैं. अतीत गवाह बनकर साथ खड़ा होता है. अतीत और वर्तमान की तुलना कर इतिहासकार अपना नजरिया सामने रखता है. जाने माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कांग्रेस को मौजूदा संकट से उबारने के लिये बेबाक टिप्पणी की है.

वो कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन देखना चाहते हैं. उनके मुताबिक कांग्रेस को सिर्फ नेतृत्व परिवर्तन ही बचा सकता है. इस पर सोने पे सुहागा ये कि कांग्रेस नीतीश कुमार को अपना अध्यक्ष बना ले. जाहिर तौर पर गुहा की इस कल्पना से कांग्रेस में कोहराम मचेगा. इतिहासकार गुहा ने सौ साल पुरानी कांग्रेस को इतिहास का पाठ गणितीय समीकरण से समझाया है.


उन्होंने अपनी फंतासी में न सिर्फ राहुल गांधी को अक्षम बल्कि नीतीश को ही कांग्रेस का बेड़ापार करने वाला खेवैया बताया है. वो कहते हैं कि कांग्रेस बिना नेतृत्व की पार्टी है और नीतीश बिना पार्टी के नेता.

गुहा ये इतिहास भूल गए कि वंशवाद की बेल पर बढ़ने वाली कांग्रेस ने नेहरू, इंदिरा, राजीव और सोनिया का दौर देखा है. गुहा इतिहासकार हैं और उन्होंने नेहरूयुग देखा तो इंदिरा का दौर भी देखा. राजीव और सोनिया की सियासत देखी तो गांधी परिवार को कांग्रेस की एकमात्र पहचान बनते भी देखा. वो कांग्रेस की लोकतांत्रिक परंपरा से बखूबी वाकिफ हैं. वो जिस कांग्रेस को सुझाव दे रहे हैं उस कांग्रेस ने विदेशी मूल की बहू के मुद्दे को दरकिनार करते हुए सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाया था. सोनिया ने अपनी सीमित राजनीतिक परिपक्वता के बावजूद कांग्रेस की दो बार केंद्र में यूपीए गठबंधन के साथ सरकार बनाई. अब वक्त और मौका युवराज राहुल के महाराज बनने का है तो रामचंद्र गुहा नेतृत्व के लिये नीतीश का नाम सुझा रहे हैं. एक ऐसी जोड़ी का ख्वाब देख रहे हैं जिसे कांग्रेस जमीन तो दूर जन्नत में भी बनने नहीं देगी.

(फोटो: फेसबुक से साभार)

हालांकि गुहा के कहने और सोचने से कांग्रेस पर फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन ऐसी कल्पनाशीलता भी कभी कभी बहुत कुछ कह जाती है. गुहा की टिप्पणी सोचने पर मजबूर भी कर सकती है. आखिर क्यों एक इतिहासकार को कांग्रेस बिना नेतृत्व की पार्टी लगती है?

दरअसल राहुल को लेकर गुहा पहले भी सवाल उठाते रहे हैं. वो राहुल की नेतृत्व क्षमता पर भरोसा नहीं करते.

इकॉनमिक टाइम्‍स को दिए एक इंटरव्‍यू में उन्‍होंने अगले 15-20 साल तक देश में सिर्फ बीजेपी के ही शासन की भविष्यवाणी की थी. साथ ही उन्होंने राहुल गांधी को राजनीति से रिटायर होने की सीख भी दे डाली थी.

उन्होंने कहा था कि ‘कांग्रेस भले ही अगले चुनावों में एंटी इनकंबेंसी की वजह से 44 से 70 या 100 सीट पर पहुंच जाए, लेकिन वह बड़ी ताकत फिर से नहीं बन पाएंगे. राहुल गांधी को राजनीति से रिटायर हो जाना चाहिए, शादी करके परिवार बसाना चाहिए. यही उनके लिए अच्‍छा होगा, यही भारत के लिए अच्‍छा होगा.’

उन्होंने इससे पहले कांग्रेस की सत्ता में वापसी को सिरे से खारिज़ किया था. ‘कई लोग सोचते हैं कि कांग्रेस राष्‍ट्रीय राजनीति में फिर से वापसी कर सकती है. मगर मुझे लगता है कि हम भविष्‍य में बीजेपी को इकलौती राष्‍ट्रीय पार्टी के तौर पर उभरते देख रहे हैं. विचारधारा की बात नहीं कर रहा मगर बीजेपी की भूमिका भारतीय राजनीति में 1960 और 1970 के दशक की कांग्रेस की तरह होगी.'

इतिहासकार को लगता है कि  इमरजेंसी के बाद वापसी जैसा इतिहास कांग्रेस अब नहीं दोहरा पाएगी. कांग्रेस के पास इंदिरा जैसा करिश्माई नेता नहीं है. एक वक्त था जब ‘इंदिरा इज़ इंडिया’ का नारा गूंजा करता था. लेकिन आज राहुल अपनी राजनीतिक शैली की वजह से उपहास के पात्र बनते जा रहे हैं. उनके सामने धीर-गंभीर मोदी को चुनौती देने की काबिलियत नहीं है.

राहुल के साथ परेशानी ये भी है कि किसी भी मुद्दे को हाईजैक करने के बाद उनकी लंबी चुप्पी कांग्रेस को हाशिए पर पहुंचाने का काम करती है. कमजोर विपक्ष को वो एकजुट नहीं कर पाते हैं तो दूसरी तरफ उनकी रणनीति जनता के दिलोदिमाग पर असर नहीं छोड़ पाती है. राहुल वक्ता बनने की कोशिश में कई दफे गड़बड़ा भी जाते हैं. मोदी की जनता के साथ कनेक्टिविटी की शैली का राहुल के पास तोड़ नहीं हैं. राहुल आक्रामक तरीके से अपनी बात कहने के बाद बैकफुट पर चले जाते हैं.

नोटबंदी के मसले पर उनका 'भूचाल' लाने वाला बयान हो या फिर सर्जिकल स्ट्राइक के मामले में उन्होंने यूपी चुनाव प्रचार के वक्त मोदी सरकार पर 'खून की दलाली करने' वाला बयान हो, उनकी रणनीति ने जनमानस में उल्टा ही असर किया.

कभी अमेठी और रायबरेली जैसे क्षेत्र कांग्रेस के लिये सबसे निष्ठावान गढ़ रहे हैं. लेकिन समय के साथ यहां के लोगों की सोच भी गांधी परिवार की निष्ठा को लेकर बदल रही है.

कांग्रेस कभी गांवों और कस्बों में बसी पार्टी होती थी तो वहां से उसका जनाधार खिसकता जा रहा है. शहरी क्षेत्रों में बीजेपी के अलावा दूसरा विकल्प नहीं दिखाई देता. क्षेत्रीय पार्टियों के भ्रष्टाचार और परिवारवाद ने भी बीजेपी को मजबूत करने का काम किया है.

ऐसे में अगर इतिहासकार रामचंद्र गुहा को लगता है कि अगले बीस साल बीजेपी के लिये कोई चुनौती नहीं है तो ये उन्हें भारतीय सियासत के इतिहास का अनुभव सोचने पर मजबूर कर रहा है. वो कहते हैं कि एक दलीय व्यवस्था लोकतंत्र के लिये हानिकारक है क्योंकि इसी ने नेहरू जैसे महान लोकतांत्रिक नेता को अहंकारी बना दिया तो इंदिरा गांधी को और निरंकुश बना दिया. ऐसे में उनकी चिंता केंद्र में मोदी और अमित शाह की जोड़ी को लेकर है. वो नीतीश को ही बीजेपी और आरएसएस की काट के तौर पर देख रहे हैं. उसी चिंतन में वो नीतीश और कांग्रेस को राम-मिलाई जोड़ी की तरह भी देख रहे हैं और कांग्रेस को बिना किसी पैसे की सलाह दे रहे हैं कि अब भी वक्त है वो नीतीश को अपना नेता बना लें.