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बेल्ट और रोड फोरम बैठक: क्या भारत साल के सबसे बड़े राजनयिक कार्यक्रम में शामिल होगा?

भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली पहले ही जता चुके हैं आपत्ति

shubha singh

बीजिंग में 14 मई से शुरू हो रहे चीन के बेल्ट एंड रोड फोरम की बैठक को साल का सबसे बड़ा राजनयिक कार्यक्रम माना जा रहा है. दो दिवसीय आयोजन को सफल बनाने के लिए बहुत प्रयास किए गए हैं. बैठक में 'एक बेल्ट, एक रोड' प्रस्ताव पर चर्चा होगी.

एशिया, यूरोप और समुद्री मार्गों से अफ्रीका और प्रशांत क्षेत्र को ट्रांसपोर्ट कोरिडोर के जरिए चीन से जोड़ने की इस महत्वाकांक्षी पहल के आर्थिक उद्देश्य हैं. लेकिन बहुत से लोगों का मानना है कि यह चीन के राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक प्रभाव के बड़े पैमाने पर विस्तार को दर्शाता है.


अरुण जेटली ने इस महत्वाकांक्षी पहल पर जताई आपत्ति

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव चीन की विदेशी नीति का केंद्र बिंदु बन गया है.

चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में भारत को शामिल के लिए उत्सुक है. लेकिन वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने चीन की बुनियादी ढांचे की इस महत्वाकांक्षी पहल पर भारत की पहली आधिकारिक टिप्पणी में आपत्ति जताई है.

जेटली ने जापान के याकोहामा में एशियन डवलेपटेंट बैंक की बैठक में कहा कि भारत क्षेत्रीय संपर्क की अवधारणा का समर्थन करता है, लेकिन संप्रभुता के मुद्दे के चलते उसे चीन की वन बेल्ट, वन रोड परियोजना पर 'गंभीर आपत्ति' है.

भारत ने बेल्ट-रोड इनिशिएटिव परियोजनाओं में से एक चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का विरोध किया है, क्योंकि वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से गुजरती है. सीपीईसी, वन बेल्ट, वन रोड पहल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो चीन के ज़िंगजियान प्रांत को पाकिस्तान के अरब सागर तट पर स्थित चीन निर्मित ग्वादर बंदरगाह से जोड़ता है.

चीन इस बैठक में दुनिया के ज्यादा से ज्यादा नेताओं की उपस्थिति सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है, जो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आर्थिक दृष्टि का एक बड़ा समर्थन होगा. एक वरिष्ठ चीनी अधिकारी ने चेतावनी दी है कि यदि भारत बेल्ट-रोड फोरम में भाग न लेने का फैसला करता है तो भारत के लिए अलग-थलग होने का खतरा है.

भारत ने अभी तक चीन के निमंत्रण पर प्रतिक्रिया नहीं दी है. इस बैठक से दूर रहने से विवादित क्षेत्र में चीन के कॉरिडोर पर भारत की आपत्तियों को मजबूती मिलेगी. इस मुद्दे पर चीन ने भारत के साथ कोई गंभीर चर्चा नहीं की है.

अगर फोरम की बैठक से पहले बीजिंग नई दिल्ली के साथ कोई चर्चा नहीं करता हो तो भारत के लिए इस बैठक में किसी मंत्री को भेजने का कोई तुक नहीं है.

चीन ने बंग्लादेश में बंदरगाहों, हवाई अड्डों और विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने और मालदीव में एयरपोर्ट लिंक ब्रिज, टापुओं के बीच रोड लिंक बनाने और अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के आधुनिकीकरण का प्रस्ताव दिया है.

अक्टूबर 2016 में बांग्लादेश ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यात्रा के दौरान 20 अरब डॉलर से अधिक की 25 परियोजनाओं के समझौतों पर हस्ताक्षर किए.

नेपाल में बुनियादी ढांचे पर फंडिंग कर रहा चीन

प्रतीकात्मक तस्वीर

चीन नेपाल में बुनियादी ढांचे और ऊर्जा परियोजनाओं की फंडिंग कर रहा है. इनमें पोखरा में एयरपोर्ट, एक पनबिजली परियोजना और काठमांडू होते हुए सीमा से पोखरा तक रेल लिंक बनाने जैसी परियोजनाएं शामिल हैं.

दक्षिण-पूर्व एशिया में भी चीन की आर्थिक गतिविधियां बढ़ी हैं. वह म्यांमार में बंदरगाह और पाइपलाइन परियोजनाएं, थाईलैंड में हाई-स्पीड रेल परियोजना, मलेशिया में ईस्ट कोस्ट रेल लिंक और इंडोनेशिया में जकार्ता से बांडुंग तक हाईस्पीड रेल का निर्माण कर रहा है.

जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 के अंत में महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की पहली बार घोषणा की थी तो चीन के प्रस्ताव को लेकर कुछ संदेह पैदा हुए थे. लेकिन बाद में प्रस्ताव में कुछ बदलाव किए गए और चार साल बाद तमाम देशों के नेताओं के बैठक में हिस्सा लेने के साथ ‘बेल्ट एंड रोड फोरम फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन’ आकार ले रहा है.

इस दो दिवसीय आयोजन में करीब 110 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे, जिनमें से 28 देशों के शीर्ष स्तरीय नेता होंगे. इनमें रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोगन, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो, मलेशियाई प्रधान मंत्री डातुक सेरी नजीब तुन रजाक, म्यांमार की नेता आंग सान सू की के साथ-साथ अफ्रीका और युरोप समेत वियतनाम, कजाकिस्तान, पाकिस्तान और फिलीपींस के राष्ट्रीय नेता शामिल होंगे.

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो ग्यूतेरस, विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम और इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड के प्रबंध निदेशक क्रिस्टीन लैगार्ड और लगभग 100 मंत्री स्तर के प्रतिनिधि फोरम की बैठक में हिस्सा लेंगे.

वांग के मुताबिक, चीन को उम्मीद है कि फोरम की बैठक में लगभग 20 देशों और 20 संगठनों के साथ समझौते होंगे और उन परियोजनाओं को बल मिलेगा जिनके लिए पहले ही एमओयू पर दस्तखत हो चुके हैं.

पिछले दो सालों में चीन की कंस्ट्रक्शन कंपनियों ने कई देशों में बुनियादी ढांचे से जुड़ी कई बड़ी परियोजनाओं के लिए समझौते किए हैं. न्यूजीलैंड जैसे दूर-दराज के देशों ने भी वन बेल्ट, वन रोड की परियोजनाओं में सहयोग के लिए हस्ताक्षर किए हैं.

बेल्ट-रोड परियोजनाओं से कंस्ट्रक्शन और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में चीन की अतिरिक्त क्षमता का का उपयोग होने की उम्मीद है और दुनिया में चीन के उद्यमों का फुटप्रिंट बढ़ेगा. इससे चीन के अपेक्षाकृत पिछड़े सीमावर्ती प्रांतों में विकास की गतिविधियां भी बढ़ेंगी.

यह एशिया, यूरोप और अफ्रीका की अर्थव्यवस्थाओं को जोड़ने और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क बनाने में चीन की केंद्रीय भूमिका को स्थापित करेगी. खासकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका के पास कोई वैश्विक आर्थिक दृष्टि नहीं है जो चीन के बीएमआई विजन का मुकाबला कर सके और विकासशील देशों को कोई खास लाभ मुहैया करा सके.