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सेक्रेटरी विवाद पर बोलीं शीला- सीएम की तरह बर्ताव करें केजरीवाल

शीला दीक्षित ने कहा कि केजरीवाल को समझना होगा कि दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है ऐसे में उन्हें केंद्र के पास जाना ही होगा, केंद्र को भी दिल्ली की जरुरतें समझनी होंगी

FP Staff

दिल्ली में मंगलवार को अजीबोगरीब हालात देखने को मिले. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के चीफ सेक्रेटरी अंशु प्रकाश ने आम आदमी पार्टी के एमएलए पर मारपीट करने का आरोप लगाया. प्रकाश का आरोप है कि सोमवार देर रात जब सीएम आवास पर बैठक हो रही थी तब आम आदमी पार्टी के एमएलए ने उनके साथ कथित तौर पर हाथापाई की. इस वक्त दिल्ली में ब्यूरोक्रेसी और सरकार के बीच माहौल ठीक नहीं चल रहा है. आखिर कैसे इस टकराव को रोका जाए इस बारे में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से खास बातचीत.

सवाल: मंगलवार को, दिल्ली के मुख्य सचिव ने दावा किया कि उन पर हमला किया गया. बाद में आम आदमी पार्टी के दो नेताओं पर भी हमले किए गए. पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते इस अभूतपूर्व घटना पर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी ?


जवाब: मैं इस घटना के बाद बहुत परेशान हूं. ब्यूरोक्रेट्स और राजनेता दोनों को साथ मिलकर काम करना होता है. एक के सहयोग के बिना दूसरा काम नहीं कर सकता, दोनों को एक दूसरे की जरुरत होती है. अगर आप कोई नीतिगत निर्णय लेते हैं तो उसे लागू करने का काम ब्यूरोक्रेट्स का होता है. अगर आप कोई निर्णय लेते हैं और इसे लागू करने के लिए कोई नहीं है, तो आप कैसे काम कर सकते हैं?

सवाल: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच रिश्ते अच्छे नहीं हैं. आपके मुख्यमंत्री होते हुए शुरुआती दिनों में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. उनके साथ आपके संबंध कैसे थे?

जवाब: हमारे संबंध बड़े ही बेहतरीन थे. याद रखें, दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है. कुछ करने के लिए आपको केंद्र सरकार के पास जाना होगा. लेकिन यहां के लोगों के लिए मुख्यमंत्री दिल्ली सरकार का चेहरा हैं. उन्हें ये नहीं पता है कि आपको हर काम के लिए केंद्र सरकार के पास जाना होता है. उनकी नजर में हर चीज के लिए मुख्यमंत्री उत्तरदायी हैं. लेकिन हमने और वाजपेयी जी ने बहुत सारे काम किए. हम लोग दिल्ली मेट्रो भी ले कर आए. वो ये कभी नहीं कहते थे कि ये 'शीला का काम है' बल्कि वो हमेशा ये कहते थे कि ये 'दिल्ली का काम है'. वो इसके बाद ब्यूरोक्रेट्स से भी काम को पूरा करने के लिए कहते थे. मेरे सारे काम वो नहीं करते थे, लेकिन मैं दस मांगों के साथ जाती थी तो कम से कम आठ चीजें वो जरूर कर देते थे. लेकिन हमारे रिश्तों में कभी खटास नहीं आई जैसा कि इस वक्त यहां प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के बीच हो रहा है.

सवाल : तो क्या आपके और प्रधानमंत्री वाजपेयी के बीच रिश्तों में कभी कोई खटास नहीं आई?

जवाब: नहीं... नहीं, कभी नहीं. वो उदार और बड़े दिल वाले थे. केंद्र सरकार को भी ये देखना चाहिए कि दिल्ली को किस चीज की जरुरत है. आप देश की राजधानी को बर्बाद नहीं कर सकते. दुनियाभर से लोग यहां आते हैं. दूसरे देशों के डिप्लोमेट्स भी यहां रहते हैं.

सवाल : आपके यहां ब्यूरोक्रेसी के साथ कैसे रिश्ते थे?

जवाब: ब्यूरोक्रेसी के साथ मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई. वास्तव में, 1998 में मेरे पहले मुख्य सचिव की नियुक्ति पिछले बीजेपी सरकार ने की थी. मुझे तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने पूछा था कि क्या मैं मुख्य सचिव को बदलना चाहती हूं? मैंने उन्हें बताया कि उनके साथ काम करने में मुझे कोई दिक्कत नहीं है. ब्यूरोक्रेट्स को राजनीति नहीं करनी चाहिए उन्हें सिर्फ वो करना चाहिए जो मुख्यमंत्री कहे.

सवाल : इस मौके पर मुख्यमंत्री को आपकी क्या सलाह होगी?

जवाब: (हंसते हुए) मैं उसे मुख्यमंत्री की तरह व्यवहार करने के लिए कहूंगी.

(न्यूज-18 के उदय सिंह राणा की दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से खास बातचीत )