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छत्तीसगढ़ः BJP को भी तगड़ी चोट पहुंचा सकती है माया-जोगी का जोड़ी

आम धारणाओं के उलट छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी और मायावती का गठबंधन शायद बीजेपी और कांग्रेस दोनों को नुकसान पहुंचा रहा है.

Parth MN

आम धारणाओं के उलट छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी और मायावती का गठबंधन शायद बीजेपी और कांग्रेस दोनों को नुकसान पहुंचा रहा है. हालांकि, मुमकिन है कि दोनों पार्टियों के लिए यह नुकसान कम-ज्यादा हो या फिर बराबर का मामला भी हो सकता है. इस राज्य में कांग्रेस पार्टी को प्रमुख तौर पर सतनामी समुदाय और अनुसूचित जनजाति का वोट मिलता है. इस पार्टी को तकरीबन 65 फीसदी वोट इन्हीं सब समुदायों से मिलता है. सतनामी समुदाय के लोग अनुसूचित जाति के तहत आते हैं और इस कैटेगरी में इसे एक प्रभावशाली समुदाय माना जाता है. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी सतनामी समुदाय के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं और मायावती भारत में प्रमुख दलित नेता के रूप में जानी जाती हैं. इस बात को मान लेना आसान है कि इन दोनों नेताओं की अपनी-अपनी पार्टियों के साथ एकजुट होने से सिर्फ कांग्रेस के वोट शेयर में सेंध लगेगी.

पिछले विधानसभा चुनाव में सफल रहा था BJP का 'सतनामी दांव'


हालांकि, अगर इस पूरे मामले की गहरे स्तर पर पड़ताल की जाए तो कुछ दिलचस्प चीजों के बारे में पता चलता है. छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति के लिए 10 आरक्षित सीटें हैं. इन सीटों पर सतनामी समुदाय के वोटरों का काफी जबरदस्त प्रभाव है. 2013 में राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी राज्य में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इन सीटों में से सिर्फ 1 सीट ही जीत पाई थी, जबकि भारतीय जनता पार्टी अपनी सीटों की संख्या बढ़ाकर 9 करने में सफल रही थी. इससे पहले यानी 2008 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने ऐसी 5 सीटों पर जीत हासिल की थी.

राज्य में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों के अलावा सामान्य श्रेणी की सीटों की बात करें तो इस मामले में भी 19 वैसी सीटें हैं, जहां बड़ी संख्या में सतनामी वोटर मौजूद हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने इन सीटों में से कम से कम आधी पर जीत हासिल की थी और इस तरह से वह राज्य की 90 सदस्यों वाली विधानसभा में आधे से ज्यादा का आंकड़ा पार करने में सफल रही थी. इस तरह से राज्य में 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 49 और कांग्रेस को 39 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.

इस बात की भी दिलचस्प कहानी है कि किस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने सतनामी बहुल विधानसभा सीटों में अपना प्रभाव कायम कर बेहतर प्रदर्शन किया. 2008 में सतनामी समुदाय के 70 लोगों पर बिलासपुर के बोडसरा में आयोजित एक मेले में पुलिस टीम पर हमला करने के मामले में मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया था. इन 70 लोगों में सतनामी समाज के पुजारी बाल दास भी शामिल थे. दरअसल, इस मेले का आयोजन जिस जगह पर किया गया था, वहां पर सतनामी समुदाय का कुछ और ही दावा था. सतनामी समाज की मान्यता के अनुसार उनके गुरु का जन्म उसी जगह पर हुआ था, जहां मेले का आयोजन किया गया था.

हालांकि, इस घटना के बाद बाल दास ने बिना शर्त रिहाई की मांग की और जमानत की खातिर आवेदन करने के लिए मना कर दिया. इसके बाद राज्य सरकार को दास के साथ बातचीत करने के लिए मजबूर होना पड़ा. तकरीबन 5 साल बाद दास ने सतनाम सेना का गठन किया और उन्होंने 21 विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे. दास के संगठन ने जिन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, उनमें से सिर्फ 2 सीटें ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थीं. इस संगठन ने अन्य सामान्य सीटों पर ही अपने उम्मीदवार खड़े किए थे. दास ने इन तमाम विधानसभा क्षेत्रों में जोरदार ढंग से चुनाव प्रचार किया और इस दौरान एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए उन्होंने हेलिकॉप्टर का भी जमकर इस्तेमाल किया. हेलिकॉप्टर के मामले में बड़े पैमाने पर यह भी अफवाह उड़ी कि दास को इस तरह की सुविधा भारतीय जनता पार्टी के राज्य नेतृत्व की तरफ से मुहैया कराई गई. हालांकि, जाहिर तौर पर दास ने इस तरह के आरोपों से पूरी तरह इनकार किया था. उन्होंने तो यहां तक कहा दिया कि उनकी पार्टी का भारतीय जनता पार्टी की जीत से किसी तरह का लेना-देना नहीं है.

यह बात अलग है कि सतनाम सेना विधानसभा चुनाव में एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही, लेकिन वह कांग्रेस वोट का बंटवारा करने में सफल रही और इससे भारतीय जनता पार्टी को 2013 के विधानसभा चुनाव की वैतरणी पार करने में काफी हद तक मदद मिली. मिसाल के तौर पर छत्तीसगढ़ के लोरमी विधानसभा क्षेत्र की बात करते हैं. यह राज्य के बिलासपुर डिवीजन के मुंगेली जिले की सामान्य कैटेगरी की एक सीट है. यहां से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर धरमजीत सिंह 1998 से ही जीतते रहे थे. हालांकि, वह पिछले चुनाव में बीजेपी के लोकेश साहू से 6,000 से भी ज्यादा वोटों के अंतर से हार गए. इस सीट पर सतनाम सेना के सोमेश बाबा को 16,000 से ज्यादा वोट हासिल हुए. सोमेश बाबा दरअसल बाल दास के पुत्र हैं. भारतीय जनता पार्टी ने ऐसी 21 में से 10 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि सतनाम सेना ने ऐसी तकरीबन सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे.

अजीत जोगी ने भी सतनामी वोटों को प्रभावित किया था

माना जाता है कि अनुसूचित जाति समुदाय के लिए आरक्षित 10 विधानसभा क्षेत्रों में से 9 पर भारतीय जनता पार्टी को इसलिए जीत हासिल हुई, क्योंकि अजीत जोगी ने बड़े पैमाने पर कांग्रेस के खिलाफ सतनामी वोट को प्रभावित किया. अजीत जोगी को पार्टी विरोधी गतिविधियों का हवाला देते हुए 2015 में कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया था. इसके बाद उन्होंने 2016 में अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई, जिसका नाम जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ रखा.

रायपुर के अखबार 'द छत्तीसगढ़' के संपादक सुनील कुमार ने बताया, 'यहां तक कि उस वक्त भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को भी इतनी ज्यादा सीटें जीतने की उम्मीद नहीं थी.' कुमार के मुताबिक, माना जा रहा था कि जोगी की सक्रियता के कारण राज्य विधानसभा चुनावों में इस तरह के हैरान करने वाले नतीजे देखने को मिले. उन्होंने कहा, '2013 में यह बात तकरीबन सबको पता थी कि अजीत जोगी ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों का समर्थन किया था. सतनामी समुदाय के बीच वह सबसे लोकप्रिय शख्स हैं. उन्होंने कांग्रेस पार्टी से वोटों को छीनकर रमन सिंह के लिए जीत का मार्ग प्रशस्त किया.'

इस बार काफी हद तक बदल चुके हैं हालात

इन तमाम घटनाक्रम के पांच साल बाद इस समीकरण में दो पहलू ऐसे हैं, जो भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जाते हैं. सतनाम सेना भंग की जा चुकी है और उसके कर्ता-धर्ता रहे बाल दास कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं. लोरमी विधानसभा क्षेत्र में दास के लिए रैली आयोजित करने वाले अशोक सोनवानी का कहना था, 'भारतीय जनता पार्टी सतनामी समुदाय की विरोधी पार्टी है. हमने करीबी तौर पर उनके काम पर नजर रखी और इस बार यह फैसला किया कि अब बदलाव का वक्त है. हम अब कांग्रेस पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरी मेहनत से काम कर रहे हैं.'

हालांकि, बाल दास से संबंधित कुनबे के प्रचार अभियान में जमीनी स्तर पर पिछली बार यानी 2013 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले आधी रौनक भी नजर नहीं आ रही है. लोरमी में आयोजित दास की रैली में बहुत ज्यादा रौनक नहीं नजर आया और लोगों में उत्साह की कमी भी दिखी. इस रैली में ज्यादा से ज्यादा भीड़ इकट्ठा करने के मकसद से इसका आयोजन उस दिन किया गया था, जिस दिन साप्ताहिक बाजार लगता है. इसके बावजूद कुल मिलाकर रैली के आयोजन में बहुत ज्यादा भीड़ नहीं इकट्ठा नहीं हो सकी. बहरहाल, मंडप के आसपास लोगों को इस बात का तनिक भी अंदाजा नहीं था कि क्या चल रहा है. राजनीतिक कार्यकर्ता राजू सिंह ने 2013 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में सतनाम सेना के लिए चुनाव प्रचार किया था. हालांकि, अब वह कांग्रेस पार्टी के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं. उनका कहना था कि अपने उम्मीदवार के लिए वोट मांगना एक बात है और किसी राजनीतिक पार्टी के लिए काम करना दूसरी बात. उन्होंने कहा, 'कई अन्य विधानसभा क्षेत्रों में हमारे कई कार्यकर्ता चुनाव प्रचार भी नहीं कर रहे हैं.'

रमन सिंह सरकार से काफी नाराज है सतनामी समुदाय

पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2013 में सतनाम सेना को जितने वोट मिले थे (जाहिर तौर पर इन वोटों से भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंचा था), वे वोट इस बार कांग्रेस और जोगी और मायावती के गठबंधन के लिए बीच बंट जाएंगे. दरअसल, सतनामी समुदाय इस बार राज्य की मौजूदा रमन सिंह सरकार से पूरी तरह नाराज है. यह समुदाय रमन सिंह सरकार के उस फैसले को लेकर नाराज है, जिसके तहत अनूसूचित जातियों के लिए आरक्षित कोटे को 2013 में 16 फीसदी से घटाकर 12 फीसदी कर दिया गया. इन तमाम परिस्थितियों के कारण बाल दास के समर्पित समर्थक कांग्रेस की तरफ चले गए, लेकिन कुछ जोगी के पाले में भी जा सकते हैं.

इन परिस्थितियों के मद्देनजर समीकरण में दूसरा पहलू आता है. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों की यात्रा करने के दौरान यह जान पड़ता है कि अजीत जोगी उन वोटों को वापस हासिल कर ले सकते हैं, जो उन्होंने 2013 में बीजेपी के पक्ष में प्रभावित किए थे. इस तरह से जोगी राज्य की सत्ताधारी पार्टी के लिए अपनी जमीन को बनाए रखना मुश्किल बना सकते हैं. सामान्य इलाकों में उनका (अजीत जोगी) प्रभाव नहीं के बराबर है और मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रप के रूप में खुद को स्थापित करने के लिए उन्हें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर निर्भर होकर कड़ी मशक्कत करनी होगी.

'द छत्तीसगढ़' के संपादक सुनील कुमार ने बताया, 'जोगी को दो बिंदुओं पर खुद को साबित करना है- एक मायावती के मामले में और दूसरे छत्तीसगढ़ को लेकर. भारतीय जनता पार्टी को पूरे छत्तीसगढ़ में कुछ हद तक वोटों के लिहाज से फायदा हो सकता है. हालांकि, अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 10 सीटों में से 9 सीटें पहले ही भारतीय जनता पार्टी की जेब में हैं और जोगी के कारण पार्टी को इन सीटों पर नुकसान झेलना पड़ सकता है. हालांकि, काफी कम लोग इसे इस तरह से देख रहे हैं. वे जोगी के असर का एक तरह से सरलीकरण कर रहे हैं. अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित राज्य की ये 10 विधानसभा सीटें जोगी का भविष्य तय करेंगी. अगर वह अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित इन सीटों पर अपनी बढ़त नहीं बना पाते हैं, तो वह राजनीति से बाहर हो जाएंगे. वह जीतने के लिए वह सब कुछ करने का प्रयास करेंगे, जो वह कर सकते हैं. इस बार खरीद-फरोख्त जैसा मामला नहीं दिख रहा है. इस बार ऐसी बात के लिए किसी तरह की गुंजाइश नहीं है कि अजीत जोगी इन विधानसभा क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी को अपना प्रदर्शन दोहराने की इजाजत दें.' पूर्व पत्रकार और अक्टूबर में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए रुचिर गर्ग ने बताया कि सतनामी समुदाय को लंबे समय तक कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता था, लेकिन पिछले कुछ साल में भारतीय जनता पार्टी ने इस समुदाय के बीच अपनी छाप छोड़ी है. उन्होंने बताया, 'एक तरह से यह अब तीन हिस्सों में बंट गया है. इसके अलावा, जहां भी जोगी की अपनी मौजूदगी थी, उन्होंने उन जगहों पर सिर्फ भारतीय जनता पार्टी की मदद करने की दिशा में काम किया है. उन्होंने उस दौर में कांग्रेस को ज्यादा चोट पहुंचाई, जब वह खुद भी कांग्रेस पार्टी में शामिल थे.'

अजीत जोगी के लिए भी राजनीति अस्तित्व बचाने की चुनौती

अजीत जोगी पिछले 15 साल से सत्ता से बाहर हैं. इसके बावजूद 72 साल के जोगी के चुनाव प्रचार में किसी तरह की बाधा नजर नहीं देखने को मिलती है. वह अपने हेलिकॉप्टर में एक विधानसभा क्षेत्र से दूसरे विधानसभा क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं. ऐसे में इस तरह के सवाल भी उठ रहे हैं कि उनके हेलिकॉप्टर में उड़ने का खर्च कौन लोग वहन कर रहे हैं.

कुमार ने बताया कि छत्तीसगढ़ में खनन और उद्योग जगत की बड़े पैमाने पर दिलचस्पी है. उन्होंने बताया, 'ये लोग न सिर्फ सरकार का समर्थन करना चाहते हैं, बल्कि विपक्ष से भी जुड़े रहना चाहते थें. जो लोग खनन से संबंधित काम कर रहे हैं, वे एक तरह से हर उस शख्स को पैसे देते हैं, जिसके बारे में उन्हें लगता कि वह भविष्य में परेशानी का सबब बन सकता है. जोगी किंगमेकर हो सकते हैं या विधानसभा में अपने 3 विधायकों के साथ विधानसभा में वह ऐसे मुद्दों को भी उठा सकते हैं, जो किसी इंडस्ट्री या कारोबारी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. वे अपने डर और अपेक्षाओं के आधार पर राजनीतिक पार्टियों को फंड मुहैया कराते हैं.'

रायपुर के एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम जाहिर नहीं किए जाने की शर्त पर बताया कि राजनीतिक हलकों में आमतौर पर यह माना जाता है कि जोगी-मायावती के चुनाव प्रचार को भारतीय जनता पार्टी की तरफ से फंडिंग मिल रही है. उनका कहना था, 'इस गठबंधन का ढांचा कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के इरादे से ही तैयार किया गया है. एक हद तक ऐसा हो भी सकता है. हालांकि, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों के मामले में यह दांव उल्टा पड़ सकता है.'

बहरहाल, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ नेता रामनिवास तिवारी इन दावों को सिरे से खारिज कर देते हैं. उन्होंने कहा, 'हम भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं और उन्हें हराकर हम अपनी सरकार बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.' उन्होंने आगे बताया, 'जोगी जी पूरे राज्य में लोकप्रिय नेता हैं. उनके पास हर इलाके में शुभचिंतक हैं और जाहिर तौर पर लोगों का समर्थन भी हासिल है.' भारतीय जनता पार्टी इस गठबंधन की फंडिंग कर रही हो या नहीं कर रही हो, लेकिन इसके जरिए बीजेपी को निश्चित तौर पर फायदा होने की उम्मीद नजर आ रही है. हालांकि,जमीनी स्तर पर हालात से ही सत्ताधारी पार्टी इस बात का अंदाजा लगा सकेगी उसने गठबंधन और उसके असर को गलत तरह से समझा या ऐसा नहीं हुआ.