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शहीद पुलिसकर्मियों के परिवारवालों को मिले सहारा, इसके लिए सरकार कर रही है ये बदलाव

सरकार कारपोरेट सोशल रेस्पॉन्सबिलिटी की नीति में संशोधन कर सकती है ताकि ड्यूटी में जान न्यौछावर करने वाले पुलिसकर्मियों के परिवारों को भी इसका फायदा मिल सके

Yatish Yadav

केंद्र की सरकार कारपोरेट सोशल रेस्पॉन्सबिलिटी की नीति में संशोधन कर सकती है ताकि राज्यों में फर्ज को अंजाम देते हुए जान न्यौछावर करने वाले पुलिसकर्मियों के परिवारों को भी इसका फायदा मिल सके. शीर्ष स्तर के सरकारी सूत्रों ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा है कि नीति में बदलाव का प्रस्ताव पिछले साल एक चर्चा के बाद आया था. चर्चा में इस बात पर सोच-विचार हुआ था कि शहीद पुलिसकर्मियों और उनके परिवार को लाभार्थी के रूप में शामिल करने के लिए नियमों में संशोधन करना जरूरी है या नहीं.

सरकारी सूत्रों का कहना है कि 'प्रधानमंत्री के निर्देश की टेक पर इसे पुलिस की वीरता का सम्मान करने के एक पहल के रूप में सोचा गया है. मुश्किल हालात में लोहा लेने वाले पुलिसकर्मियों की वीरता और अदम्य साहस को शायद ही कभी पहचान मिल पाती है. शीर्ष स्तर से संदेश आया है कि वीरता दिखाने वाले पुलिसकर्मियों के त्याग का सम्मान किया जाए और उनके परिवार की मदद की जाए.'


प्रधानमंत्री ने दिया है निर्देश

फ़र्स्टपोस्ट को हासिल दस्तावेजों को देखने से जाहिर होता है कि गृह मंत्रालय को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बाबत निर्देश दिया है. निर्देश के मुताबिक, गृहमंत्रालय को राज्यों में फर्ज को अंजाम देते हुए जान देने वाले पुलिसकर्मियों और अर्द्धसैनिक बल के जवानों के सम्मान की एक खास योजना तैयार करनी है. प्रधानमंत्री का मानना है कि ऐसी योजना को संस्थागत रूप देना जरुरी है ताकि सुरक्षाबलों के वीरता भरे काम लोगों के जेहन में दर्ज हो सकें. प्रधानमंत्री मोदी का सुझाव है कि स्कूलों में कार्यक्रम आयोजित होने चाहिए, इन कार्यक्रमों में फर्ज को अंजाम देते हुए जान देने वाले जिले के सुरक्षाकर्मियों की सूची प्रदर्शित की जानी चाहिए ताकि छात्रों और स्थानीय लोगों को प्रेरणा मिल सके.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि 'शहीदों की याद में स्मारक बनाए जाने चाहिए. ये स्मारक उन स्कूलों में बनाए जाएं जहां शहीदों ने पढ़ाई की थी ताकि छात्रों को उनके बलिदान की जानकारी हो सके.'

कंपनी एक्ट की धारा 135 में विधान है कि एक खास निर्धारित सीमा से अधिक के कारोबार, मूल्य या शुद्ध लाभ से ऊपर हर कंपनी को बीते तीन वित्तवर्षों में हुए अपने मुनाफे का औसतन कम से कम दो प्रतिशत हिस्सा एक्ट के सातवें खंड में बताई कारपोरेट सोशल रेस्पांस्बिलिटीज( सीएसआर) संबंधी गतिविधियों पर खर्च करना होगा.

2014 में यूपीए सरकार ने सीएसआर फंड का विस्तार किया था

साल 2014 की फरवरी में मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली तत्कालीन यूपीए सरकार ने एक्ट में संशोधन करते हुए उसमें दस ऐसे नए क्षेत्रों का शामिल किया जिसमें सीएसआर के फंड का इस्तेमाल किया जा सके. सामाजिक क्षेत्र, संस्कृति और प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के अतिरिक्त संशोधन के जरिए सशस्त्र बलों, जंग के शहीदों की विधवा और उनके आश्रित लोगों पर सीएसआर के फंड की राशि खर्च करने की व्यवस्था की गई. साल 2014-15 में सीआरआर के फंड की 2.55 करोड़ रुपए की राशि सशस्त्र बलों के वीर जवानों और शहीदों की विधवाओं पर खर्च की गई.

एनडीए के सत्ता में आने पर एक उच्च स्तरीय समिति बनाने का फैसला हुआ. इस समितियों को यह देखना था कि सीएसआर की नीतियों के अमल में क्या कमियां हैं, साथ ही समिति को वह तरीका भी सुझाना था जिसके सहारे सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र की कंपनियों में सीएसआर की नीतियों के पालन में हुई प्रगति की निगरानी की जा सके. समिति ने सुझाव दिया कि एक्ट के खंड सात में एक व्यापक दायरे का संकेत करता नियम जोड़ा जाए. इस नियम में कहा जाए कि सीएसआर से जुड़ी गतिविधियों व्यापक जनहित में होनी चाहिए और ऐसी किसी भी गतिविधि को व्यापक जनहित की गतिविधि माना जा सकता है जिससे लोकहित का काम होता है, साथ ही ऐसी गतिविधियों में समाज के वंचित तबके की जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए.

221 कंपनियों पर मुकदमा चलाने के निर्देश

गौरतलब है कि कारपोरेट मामलों के मंत्रालय ने सीएसआर के नियमों के उल्लंघन को कारण बताते हुए 2014-15 में 221 कंपनियों पर मुकदमा चलाने के निर्देश दिए. पता चला है कि साल 2016-17 में सार्वजनिक क्षेत्र की कम से कम 66 कंपनियों ने सीएसआर के नियमों का उल्लंघन किया है. इन कंपनियों ने नियम में निर्धारित की गई राशि से कम खर्च किया. साल 2016-17 में राजकीय स्वामित्व वाली 15 कंपनियों और निजी क्षेत्र की 331 कंपनियों ने सीएसआर की गतिविधियों पर राशि खर्च नहीं की.

साल 2015-16 में शहीदों की विधवाओं और सशस्त्र बलों के वीर जवानों पर सीएसआर के अंतर्गत खर्च की गई राशि बढ़कर 10.45 करोड़ रुपए हो गई थी लेकिन अन्य क्षेत्रों पर खर्च की गई 13827 करोड़ रुपए की राशि की तुलना में यह बहुत कम है. गौर करने की एक बात यह भी है कि साल 2016-17 में शहीदों की विधवाओं और सशस्त्र बलों के वीर जवानों पर खर्च की जाने वाली सीएसआर की राशि घटकर 2.05 करोड़ रुपए हो गई.

फर्ज को अंजाम देते हुए शहीद होने वाले अर्धसैन्य बल के जवानों के लिए सरकार ‘होमेज एंड सपोर्ट टू इंडिया’ज ब्रेवहार्ट’ नाम की योजना चला रही है. इसके जरिए जवानों के आश्रितों को कोई अपनी निजी मदद दे सकता है. इस योजना में असम राइफल्स, सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स, इंडो तिब्बतन बार्डर पुलिस, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, नेशनल डिजॉस्टर रेस्पांस फोर्स, नेशनल सिक्योरिटी गार्ड और सशस्त्र सीमा बल को शामिल किया गया है.

उत्तर प्रदेश में 11 महीनों में 383 पुलिसकर्मी शहीद

सरकार में उच्च पदों पर मौजूद सूत्रों का कहना है कि 'सीएसआर की राशि के खर्च का दायरा बढ़ाते हुए उसमें पुलिस बल के शहीदों को शामिल करना एक अच्छा कदम है क्योंकि कानून-व्यवस्था की हिफाजत करते हुए और विद्रोहियों से लड़ते हुए बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी और अर्द्ध सैन्यबल के जवान शहीद होते हैं. अगर आप आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलेगा कि बीते 6-7 सालों में माओवादियों से लड़ते हुए सुरक्षाबलों के 900 जवान शहीद हुए हैं. अगर इसमें हम पूर्वोत्तर के राज्य, जम्मू-कश्मीर और अन्य सूबों में शहीद होने वाले जवानों को शामिल करें तो यह संख्या और ज्यादा बढ़ जाएगी.'

साल 2016 के सितंबर से 2017 के अगस्त महीने तक के उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि 11 महीनों में 383 पुलिसकर्मी मारे गए हैं. मारे गए पुलिसकर्मियों में सबसे ज्यादा तादाद उत्तर प्रदेश से है जहां 76 पुलिसकर्मियों समेत बीएसएफ के 56 तथा सीआरपीएफ के 49 जवानों ने जान गंवाई है. सरकार के मुताबिक हर साल औसतन 700 पुलिसकर्मी अपने फर्ज की राह पर जान गंवाते हैं.

सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म्स के बढ़ते इस्तेमाल को देखते हुए सरकार कुछ नई तरकीब अपनाने के बारे में भी सोच रही है ताकि देश की हिफाजत में जान गंवाने वाले सुरक्षाकर्मियों की कहानियां ज्यादा से ज्यादा लोगों को सुनाई जा सकें.