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कार्ति चिदंबरम पर सीबीआई छापा: नेताओं और नौकरशाहों के गठजोड़ पर हमला

क्यूबा में जैसा फिदेल कास्त्रो ने किया वैसा ही हमें हिंदुस्तान में करना होगा

Shantanu Guha Ray

मोदी सरकार काले धन और अवैध तरीके से लेन-देन को रोकने को लेकर बेहद गंभीर है. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम और उनके बेटे के ठिकानों पर छापेमारी, असल में केंद्र सरकार की नीयत को दिखाते हैं. सरकार चाहती है कि बरसों से चला आ रहा अवैध लेन-देन और सूटकेस की अदला-बदली का दौर अब देश में खत्म हो.

कोलकाता पर क्यों है फाइनेंस मिनिस्ट्री का जोर 


यूं तो सीबीआई की ज्यादातर छापेमारी दिल्ली, चेन्नई और गुड़गांव में हुई. मगर वित्त मंत्रालय का पूरा जोर कोलकाता पर है. कोलकाता में सैकड़ों फर्जी कंपनियां चल रही हैं.

आखिर इनमें से कितनी कंपनियां कार्ति और उनके सहयोगियों की हैं? सीबीआई ने जो छापेमारी की उसका मकसद कार्ति की उन फर्जी कंपनियों का पता लगाना ही था. जिनके बारे में माना जा रहा है कि इनके जरिए कार्ति ने अवैध कमाई को ठिकाने लगाया.

इनकम टैक्स विभाग के अधिकारी का कहना है कि छापामारी लगातार जारी है. इनके निशाने पर कोलकाता के वो चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, जिन्होंने कारोबारियों को ऐसी फर्जी कंपनियां खोलने में मदद की. इन फर्जी कंपनियों के मालिक चेन्नई, अहमदाबाद और मुंबई के कारोबारी, व्यापारी और दलाल हैं.

कोलकाता में कार्ति की कई फर्जी कंपनियां

सीबीआई के एक बड़े अधिकारी ने बताया, 'हमें जानकारी मिली थी कि कार्ति की कई फर्जी कंपनियां कोलकाता में हैं. हम इसी की पड़ताल कर रहे हैं'. पी चिदंबरम ने इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

चिदबंरम ने इस सवाल के जवाब में कहा, 'मुझे नहीं लगता कि आरोपों को लेकर मीडिया में चर्चा करना ठीक होगा. मेरा इस बारे में जो बयान है, वो पर्याप्त है'. जिस वक्त छापेमारी हो रही थी, उस वक्त चिदबंरम ने इसे बदले की राजनीति करार दिया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि उन्हें बीजेपी सरकार इसलिए निशाना बना रही है कि विपक्ष के नेता के तौर पर वो लगातार सरकार पर हमले कर रहे हैं.

क्या है मोदी का मकसद?

हाल ही में अफसरों के साथ बैठक में मोदी ने कहा था कि वो भ्रष्टाचार को हर कीमत पर मिटाना चाहते हैं.

बीजेपी की आर्थिक सेल के प्रमुख गोपाल अग्रवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री ने अफसरों को दो टूक कह दिया कि वो जानना चाहते हैं कि किसके पास किस का मालिकाना हक है.

गोपाल अग्रवाल काले धन के मोर्चे पर काफी सक्रिय रहे हैं. वित्त मंत्रालय और जांच एजेंसियां धीरे-धीरे इन फर्जी कंपनियों के कारोबार की जड़ तक पहुंच रही हैं. इनमें से कई कंपनियां तो केवल कागजों में ही चल रही हैं.

इनके मालिक दलाल हैं, कारोबारी हैं. जो बड़े उद्योगपतियों और राजनेताओं के लिए काम करते हैं.

गोपाल अग्रवाल कहते हैं, 'प्रधानमंत्री का जोर भ्रष्टाचार पर था. खास तौर से वित्तीय बाजार कमोडिटी मार्केट में. वो भ्रष्ट अफसरों, मंत्रियों और कारोबारियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करना चाहते हैं. हम किसी के खिलाफ मुहिम नहीं चला रहे हैं. लोगों को याद रखना चाहिए कि कार्ति के खिलाफ ताजा छापेमारी से करीब दस साल पहले ही जांच शुरू हुई थी. लेकिन ये जांच बीच में ही रोक दी गई'. बात यहीं तक सीमित नहीं है.

दलालों के खिलाफ जुटाए ठोस सबूत

गोपाल अग्रवाल बताते हैं कि वित्त मंत्रालय ने उन दलालों के खिलाफ ठोस सबूत जुटा लिए हैं, जो ये फर्जी कंपनियां चलाते हैं. ये दलाल इन कंपनियों के जरिए भ्रष्ट अफसरों और सेबी जैसे संगठनों पर दबाव बनाते हैं, ताकि उनके खिलाफ कार्रवाई न हो.

अग्रवाल के मुताबिक पकड़े जाने के बाद ये सब इस जुगत में लग जाते हैं कि कैसे जांच से निजात पाएं. इसीलिए वो सेबी की जांच में बाधा डालते हैं.

वो सेबी के खिलाफ SAT यानी सिक्योरिटी अपीलिएट ट्राइब्यूनल में अपील करते हैं. ये भ्रष्ट कारोबारी और दलाल SAT के सदस्यों को भी प्रभावित करने की कोशिश करते हैं, ताकि सेबी की जांच से बचकर निकल सकें. कई बार वो इसमें कामयाब भी हुए हैं.

पहले भी हुआ है ऐसा

ऐसे ही एक मामले में पूर्व वित्त मंत्री के एक करीबी अफसर जब SAT के सदस्य बने तो उन्होंने ये अहम जानकारी छुपाई कि उनकी बेटी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में काम करती है.

ऐसे में सवाल ये उठता है कि एनएसई के मामले जब SAT के सामने आएंगे, तो ये सदस्य फिर कैसे निष्पक्ष होकर काम करेंगे?

पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम और उनके बेटे के ठिकानों पर हुई छापेमारी का मकसद उन फर्जी कंपनियों का पता लगाना था, जिनके जरिए अवैध कमाई को ठिकाने लगाया गया.

बीजेपी की आईटी सेल के दीपक कंठ कहते हैं, 'ये फर्जी कंपनियों का एक जाल है. कंपनी के अंदर कंपनी है. जांच एजेंसियों ने तमाम कड़ियां जोड़ी हैं. उम्मीद है कि जल्द ही अवैध कारोबार के इस नेटवर्क का पर्दाफाश होगा'.

कार्ति की कंपनियों में जमकर हुई है गड़बड़ी?

जांच के दौरान कार्ति की तमाम फर्जी कंपनियों का पता चला है जिनके जरिए उसने सरकार को धोखा दिया. कई मामलों में पूर्व मंत्री के करीबी अफसरों से जुड़े लोगों को कंपनी का निदेशक और शेयरधारक बनाया गया.

यहां तक कि चपरासी, बाबू और दूसरे कर्मचारी तक कार्ति की कंपनियों के निदेशक बना दिए गए. हाल के दिनों में सीबीआई के ज्यादातर केस इन फर्जी कंपनियों के खातों का पता लगाने से जुड़े थे, जिनके फर्जी चालान और वाउचर के जरिए बैंकों से लिए गए लोन को ठिकाने लगाया गया.

इस पूरे फर्जीवाड़े का केंद्र है कोलकाता

जांच एजेंसियां अब कोलकाता की कई फर्जी कंपनियों से कार्ति का ताल्लुक तलाश रही हैं. हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय ने कोलकाता में वासन हेल्थकेयर में छापेमारी की थी.

वासन का कार्ति से काफी गहरा नाता रहा है. आरोप है कि इसका इस्तेमाल टैक्स चोरी और मनी लॉन्डरिंग में किया गया.

फिलहाल वासन हेल्थकेयर ने कोलकाता में अपना धंधा बंद कर दिया है. लेकिन जांच से कई नई बातें पता चली हैं. सीबीआई के सूत्रों का दावा है कि उनके हाथ कई अहम सुराग लगे हैं.

सीबीआई ने आरती इंफोसिस्टम के खिलाफ 138 करोड़ की धोखाधड़ी का केस दर्ज किया है. ये कारनामा एक फर्जी कंपनी के हवाले से किया गया. इसी तरह माहेश्वरी इस्पात नाम की कंपनी पर भी 180 करोड़ के फर्जीवाड़े का आरोप है.

तमाम शेल कंपनियों में बंगाल इंडिया ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड पर 170 करोड़ की धोखाधड़ी का इल्जाम है. इसके लिए छह फर्जी कंपनियों का सहारा लिया गया. इसी तरह के लाइव स्पेस स्टाइल ऐंड इंडस्ट्रीज नाम की कंपनी ने 4 फर्जी कंपनियों की मदद से बैंकों को 100 करोड़ का चूना लगाया.

ग्लोबल सॉफ्टेक कंपनी ने 18 फर्जी कंपनियों की मदद से 126 करोड़ की धोखाधड़ी की. वहीं एसपीएस स्टील रॉलिंग मिल्स ने 9 फर्जी कंपनियों की मदद से बैंकों को 70 करोड़ का चूना लगाया.

नेताओं का ब्लैकमनी बन रहा है व्हाइट

सीबीआई की छापेमारी से प्रवर्तन निदेशालय के उस दावे को मजबूती मिली है, जिसके मुताबिक कुछ बड़े कारोबारियों और दो बड़े नेताओं के लिए फर्जी कंपनियों की मदद से मनी लॉन्डरिंग की गई.

प्रवर्तन निदेशालय ने करीब 300 ऐसी कंपनियों की पहचान की है. इनके जरिए बड़े पैमाने पर अवैध लेन-देन किए गए. इनमें से कई कंपनियों का ताल्लुक छगन भुजबल, वाई एस जगन मोहन रेड्डी, नोएडा के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह, यूपी के एनआरएचम घोटाले और हैदराबाद की एजीएस इंफोटेक और हीरे के कारोबारी राजेश्वर एक्सपोर्ट से पाया गया है.

किसने खोली 700-800 फर्जी कंपनियां 

प्रवर्तन निदेशालय के प्रवक्ता ए के रावल ने कहा कि इन कंपनियों को अवैध आमदनी को ठिकाने लगाने के लिए बनाया गया. कई मामले में तो एक ही आदमी ने सात-आठ सौ फर्जी कंपनियां खोल डाली थीं.

गोपाल अग्रवाल के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी ने अफसरों को निर्देश दिया है कि वो अफसरों और नेताओं के अवैध गठजोड़ के खिलाफ ठोस कार्रवाई करें. खास तौर से पूर्व वित्त मंत्री के करीबी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर पीएम ने सख्त निर्देश दिए हैं.

सूत्र बताते हैं कि चिदंबरम के करीबी लोगों ने सरकार के अहम पदों के लिए कुछ खास अफसरों के नाम को जोर-शोर से आगे बढ़ाया था. इनमें से एक पद आर्थिक मामलों के सचिव का भी है.

किसको मिलेगा सचिव का पद

मौजूदा सचिव शक्तिकांत दास 31 मई को रिटायर हो रहे हैं. चिदंबरम के करीबी लोग इस पद पर उनके खास अफसर को बिठाने की जुगत भिड़ा रहे थे.

दिल्ली में ऐसे संकेत भी मिले हैं कि सीबीआई तृणमूल कांग्रेस के कुछ सांसदो और विधायको को गिरफ्तार कर सकती है.

इनके नाम नारद स्टिंग में सामने आए थे. गोपाल अग्रवाल का कहना है कि मोदी सरकार काले धंधे करने वालों पर लगातार प्रहार कर रही है.

राजनैतिक मामलों के जानकार एमडी नालापत कहते हैं कि मोदी सरकार अवैध धंधे करने वालों पर कार्रवाई करके सख्त संदेश देना चाहती है. वो भ्रष्ट अफसरों और नेताओं के बीच के गठजोड़ को तोड़ने की कोशिश कर रही है.

नालापत कहते हैं कि सीबीआई की छापेमारी से ये पता चलेगा कि चिदंबरम के मंत्री रहते हुए कार्ति ने किस तरह अपने पिता के मंत्री होने का फायदा उठाया और अवैध कामों को अंजाम दिया.

सीबीआई के सवालों का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं गुरेज

कई बार खुद चिदंबरम ने सीबीआई के सवालों का जवाब देने से गुरेज किया है. 6 दिसंबर 2014 को चिदंबरम ने सीबीआई को बताया कि उन्हें नहीं पता कि मलयेशिया की कंपनी मैक्सिस ने एयरसेल में 600 करोड़ से ज्यादा का निवेश किया है.

जबकि खुद चिदंबरम ने 7 मार्च 2006 के फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोश बोर्ड की सिफारिश पर इस निवेश को मंजूरी दी थी. वित्त मंत्रालय के कुछ सीनियर अफसरों ने भी ऐसे ही बयान दिए थे.

अब चिदंबरम और कार्ति के खिलाफ जांच तेज होने से सिर्फ एयरसेल-मैक्सिस समझौता ही नहीं, ऐसे कई मामले सामने आने की उम्मीद है.

सीबीआई और इनकम टैक्स विभाग के कर्मचारी अभी ये नहीं बता रहे हैं कि ये जांच कब पूरी होगी. वो ये जरूर कहते हैं कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई की ये तो शुरुआत भर है.

क्या कार्ति अपने पिता के पद का फायदा उठा रहे हैं 

तजुर्बेकार राजनैतिक विश्लेषक मोहन गुरुस्वामी मानते हैं कि इन छापेमारियों के ठोस नतीजे निकलने चाहिए. ये साबित होना चाहिए कि कार्ति ने अपने पिता के मंत्री होने का नाजायज फायदा उठाया.

वरना इस छापेमारी का कोई फायदा नहीं. गुरुस्वामी कहते हैं कि अगर प्रधानमंत्री देश की अर्थव्यवस्था को साफ-सुथरा और भ्रष्टाचार मुक्त बनाना चाहते हैं तो किसी को जांच से रियायत नहीं मिलनी चाहि. वरना सरकार पर सिर्फ विपक्षी नेताओं को परेशान करने के आरोप लगेंगे.

गुरुस्वामी याद दिलाते हैं कि जब क्यूबा में फिदेल कास्त्रो ने कृषि का राष्ट्रीयकरण किया था, तो सबसे पहले अपने पिता के खेतों का अधिग्रहण किया था.

गुरुस्वामी के मुताबिक हमें हिंदुस्तान में भी ऐसी ही मिसालें कायम करनी होंगी. तभी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की ईमानदारी साबित होगी.