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पी चिदंबरम पर छापेः कांग्रेस के लिए यह कानूनी कम राजनीतिक जंग ज्यादा है

कांग्रेस को यह लड़ाई कानूनी की बजाय राजनीतिक तौर पर ज्यादा लड़नी होगी

Akshaya Mishra

बदले की राजनीति, राजनीतिक प्रतिशोध, विरोधियों को झूठे मामलों में फंसाना, ये वे शब्द हैं जिनका इस्तेमाल कांग्रेस अपने नेता पी चिदंबरम की संपत्तियों पर पड़े छापों के लिए कर सकती है.

कांग्रेस के लिए ऐसा करना गलत भी नहीं है. और यह इस वजह से नहीं है क्योंकि पार्टी मानती है कि वह अपने दफ्तर का गलत इस्तेमाल करने और अपने बेटे को करोड़ों रुपये कमाने में मदद करने के लिए दोषी नहीं हैं. इसकी वजह यह है कि चारों तरफ इस वक्त जो शोर और होहल्ला मचा हुआ है उसके आगे इस केस में कुछ निकलेगा नहीं.


 बिना जांच-परख शुरू हो जाता है मीडिया ट्रायल 

पिछले तीन साल में हमने ऐसी चीजें कई बार देखी हैं. छापे मारे जाते हैं, कमीशन बनते हैं, चुनिंदा जानकारियां आधिकारिक सूत्रों के जरिए फैलाई जाती हैं. ये जानकारियां ऐसे लोगों को दी जाती हैं जो इन्हें बिना सवाल उठाए स्वीकार कर लेते हैं.

इसके बाद मीडिया एक भीड़ की शक्ल अख्तियार कर लेती है, जिसमें हर संगठन कहता है कि उसके पास एक्सक्लूसिव, एक्सप्लोसिव मैटेरियल है और हर कोई एक ही टारगेट की ओर दौड़ पड़ता है.

अब तक कोई मामला नतीजे तक नहीं पहुंचा

इस पूरे रुटीन तमाशे के बाद आखिर कितने बड़े लीडर्स या हाई-प्रोफाइल दोषी अब तक सलाखों के पीछे पहुंचे हैं? इनमें से कितने मामले अब तक कानूनी नतीजे तक पहुंचे हैं?

बेटे कीर्ति के मुकाबले चिदंबरम की इमेज को ज्यादा नुकसान होगा

यह निराशाजनक है. हमें इस बात को समझना होगा कि जब भी मीडिया में किसी एफआईआर फाइल होने या छापा पड़ने को सुर्खियां बनाया जाता है और उसे इस तरह से दिखाया जाता है मामला अपने नतीजे पर पहुंच गया है, तब वह दरअसल उस मामले की शुरुआत होती है. इसके बाद चलने वाली कानूनी प्रक्रियाएं काफी लंबी होती हैं.

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असलियत में टीवी स्टूडियो में एंकर जिन दस्तावेजों को पुख्ता सबूत के तौर पर लहराते हैं, वे कोर्ट में पेश किए जाने के लिहाज से शायद उतने भरोसेमंद साक्ष्य न हों. ऐसे में इससे क्या हासिल होता है?

दरअसल, यह दूसरे जरियों से होने वाली राजनीति है, जिसमें पार्टियां, सरकार, जांच एजेंसियां और मीडिया सब शामिल होते हैं.

 चिदंबरम के लिए इमेज पर धब्बा बड़ा मसला

जैसा कि पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम जानते होंगे इन छापों का उनके लिए कोई ज्यादा मतलब नहीं है. जांच एजेंसियों को जिन आरोपों के चलते छापे मारे गए उन्हें कानूनी अंजाम तक पहुंचाने के लिए काफी लंबी दूरी तय करनी होगी.

उनके लिए सबसे चिंता की बात इस मामले पर होने वाली राजनीति है जो कि वक्त के साथ धीरे-धीरे खत्म होगी. हम मौजूदा वक्त में जिस तरह के राजनीतिक दौर से गुजर रहे हैं उसमें चिदंबरम को तब तक दोषी माना जाएगा जब तक कि वह इससे दोषमुक्त होकर नहीं निकल आते.

दोषमुक्त होने तक चिदंबरम को दोषी माना जाएगा

इससे न सिर्फ उनकी इमेज पर बुरा असर पड़ेगा बल्कि इससे मुश्किलों में घिरी हुई उनकी पार्टी की भी हालत और खराब हो जाएगी. एक वरिष्ठ राजनेता के तौर पर उनको अपने बेटे कार्ति के मुकाबले ज्यादा नुकसान होगा.

 विक्टिम कार्ड की मजबूरी

इसी वजह से उन्हें विक्टिम कार्ड खेलना पड़ रहा है और अपने बेटे की बजाय खुद को असली टारगेट के तौर पर दिखाना पड़ रहा है. उन्होंने मीडिया से कहा, सरकार सीबीआई और अन्य एजेंसियों को मेरे बेटे और उसके दोस्तों को टारगेट करने के लिए इस्तेमाल कर रही है. इसका मकसद मुझे लिखने से रोकना और मेरा मुंह बंद कराना है, जैसा कि विपक्षी पार्टियों के नेताओं, पत्रकारों, स्तंभकारों और सिविल सोसाइटी के लोगों के साथ किया गया है.

उन्होंने कहा कि वह लिखना और बोलना नहीं छोड़ेंगे. दरअसल उनके पास इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प है भी नहीं. वह सरकार के खिलाफ अखबारों में जो लिखते हैं वह ठीक है, लेकिन इससे सरकार को कोई नुकसान नहीं होता. हर तरफ से हमले की जद में आ चुके चिदंबरम को अब इसी मोर्चे पर और जोरशोर से काम करना होगा.

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राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ जांच एजेंसियों को इस्तेमाल करने का लंबा अनुभव रखने वाली कांग्रेस को पता है कि बीजेपी का इन तौर-तरीकों को इस्तेमाल करने का कोई पवित्र मकसद नहीं है.

बीजेपी भले ही यह दावा करे कि ऐसा केवल भ्रष्टाचारियों को दंडित करने के लिए किया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि हालिया वक्त में सरकारी एजेंसियों का टारगेट कांग्रेस के नेता या बीजेपी से दोस्ताना रिश्ते नहीं रखने वाली पार्टियों के नेता ही रहे हैं.

ऐसे में चिदंबरम के पास सिर्फ साहस भरे शब्दों का सहारा है

कांग्रेस को धराशायी करने की मंशा

इस सबका असली मकसद पहले से मुश्किलों में घिरी पार्टी को और हताशा में धकेलना है. ऐसे में कांग्रेस को यह लड़ाई कानूनी की बजाय राजनीतिक तौर पर ज्यादा लड़नी होगी. मीडिया का पूरा खेल साफतौर पर सरकार के पक्ष में है. इससे कांग्रेस के लिए यह लड़ाई और मुश्किल हो जाएगी. ऐसे में चिदंबरम के पास केवल साहस भरे शब्दों का ही सहारा है.

ऐसे ही शब्द हमें पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला से सुनाई दिए हैं, ना पी चिदंबरम न ही कांग्रेस को बदले की राजनीति से धमकाया जा सकता है. उन्होंने इशारा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई बीजेपी नेता और मंत्री संदिग्ध सौदों के आरोपी हैं, लेकिन इनके खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.

 पॉलिटिकल रेस्पॉन्स जरूरी  

उनके आरोप भले ही सच हों, लेकिन उनकी पार्टी इस पर कुछ भी करने की स्थिति में नहीं है. इसे एक मजबूत राजनीतिक प्रतिक्रिया देनी होगी. आखिरकार यह राजनीति का मामला है और इसका भ्रष्टाचार के किसी मामले से कुछ खास लेना-देना नहीं है.