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दांव पर CBI की साख: अपनी गरिमा बचा पाएगी देश की सुप्रीम जांच एजेंसी?

इस वाकये के बाद सीबीआई में अफसरों के चयन को लेकर भी आवाज उठने लगी है. और ऐसी आवाजें आना लाजिमी भी है क्योंकि अब शीर्ष पदों पर बैठे दो अधिकारियों की अदावत बेहद बुरे रूप में बाहर आ चुकी है.

Pankaj Kumar

सीबीआई के अंदर मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है. डिप्टी एसपी देवेंद्र कुमार सात दिनों की रिमांड पर भेज दिए गए हैं, जबकि स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ 29 अक्टूबर तक कोई भी कार्रवाई नहीं करने का कोर्ट ने आदेश दिया है. ज़ाहिर है सीबीआई के अंदर सीबीआई द्वारा छापा और शीर्ष दो अधिकारियों द्वारा एक-दूसरे पर रिश्वत के आरोप से सीबीआई में उठा तूफान ऊफान पर है और सीबीआई जैसी संस्था की विश्वसनियता बेहद डगमगा चुकी है.

कई सीनियर अधिकारी इस पूरे प्रकरण को लेकर अचंभित हैं. उन्हें इस बात का मलाल है कि सालों की मेहनत से तैयार हुई संस्था इस तरह के उपजे विवाद के बाद विश्वसनियता खोने की कगार पर है.


वैसे भी सीबीआई के दो सेवानिवृत महानिदेशक ए.पी. सिंह और रंजीत सिन्हा पर जांच चल रही है लेकिन दो शीर्ष कार्यरत अधिकारी के बीच चल रही नूरा-कुश्ती इस कदर लोगों के बीच जा पहुंचेगी, इसकी उम्मीद शायद किसी को नहीं थी.

सीबीआई समय-समय पर सवालों के घेरे में रही है और राजनीतिक दखलंदाजी की वजह से सीबीआई को केज्ड पैरट यानी पालतू तोता के नाम से भी पुकारा गया है लेकिन इस सबके बावजूद मामला संगीन होने पर या ज्यादा विवाद होने पर विभिन्न राजनीतिक दल या फिर पीड़ित पक्ष सीबीआई जांच की मांग करता रहे हैं. सामान्य तौर पर किसी भी मामले के तूल पकड़ने पर हम लोग देखते हैं कि सीबीआई जांच की मांग की जाती है. जाहिर है ऐसी विश्सनियता बनाने में सालों लग जाते हैं. सीबीआई द्वारा कई पेचीदा मामलों में की गई तफ्तीश उस पर विश्वास बनाए रखने का आधार रही है.

सत्येंद्र दुबे मर्डर केस हो या सिस्टर अभया केस, भंवरी देवी मर्डर केस हो या फिर सत्यम घोटाला या फिर नोएडा डबल मर्डर केस, इन सभी मामलों में सीबीआई ने एक बेहतरीन जांच एजेंसी होने का सबूत दिया है. वहीं कोल ब्लॉक, टूजी, बोफोर्स जैसे मामलों में सीबीआई की खूब किरकिरी भी हुई है. हाल ही में उत्तर प्रदेश में एक विधायक द्वारा अपने ही गांव की लड़की का बलात्कार जब जोर पकड़ने लगा तो सरकार ने इसे सीबीआई को जांच सौंप कर अपना इरादा साफ कर दिया.

जाहिर है जटिल और संवेदनशील मुद्दे की जांच को सीबीआई को सौंपा जाना इस बात की तस्दीक करता है कि सीबीआई जांच एजेंसी के तौर पर देश की अग्रणी संस्था है. 1941 में स्पेशल पुलिस एक्ट के तहत प्रभाव में आई सीबीआई देश की वो नोडल एजेंसी है जो विदेश से जानकारी जुटाने के लिए इंटरपोल का सहारा लेती है. ऐसे में कई महत्वपूर्ण मामले हैं जिनकी जांच सीबीआई के पास है. लेकिन हाल के उपजे विवाद ने उसकी विश्वसनियता को झकझोर दिया है.

यूपी के पूर्व डीजी प्रकाश सिंह के मुताबिक, 'ताजा प्रकरण से सीबीआई की छवि धूमिल हुई है. जनता जिसे देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी समझती आई है. उसके दो शीर्ष अधिकारी अगर एक दूसरे के खिलाफ इस कदर लड़ने लगें तो जाहिर तौर पर सालों की अर्जित विश्वसनियता हिल ही जाती है.'

प्रकाश सिंह के मुताबिक, 'ऐसा कहा जा रहा है कि दो शीर्ष अधिकारियों की लड़ाई के पीछे राजनीतिक शक्तियां हैं तो सवाल फिर उठता है कि दो शीर्ष अधिकारी राजनीतिक हस्तियों के हाथों खेलने को क्यूं मजबूर हैं?'

इतना ही नहीं प्रकाश सिंह मानते हैं कि समय रहते डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल को इसे भांप कर वहीं पर खत्म कराना चाहिए था लेकिन ऐसा हो नहीं सका. इस तकरार के पीछे जो भी राजनीतिक मंशा हो वो कालांतर में सामने आ ही जाएगी. लेकिन पूरे वाकये से सीबीआई जैसी संस्था की मर्यादा धुमिल हुई है.

वहीं सीबीआई में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल चुके सीनियर आईपीएस अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, 'पूरे वाकये से सीबीआई कम से कम 30 साल पीछे गई है. पहले भले ही राजनीतिक वजहों से आरोप लगते रहे हों लेकिन अब दो अधिकारियों के बीच का घमासान इतना वीभत्स होगा, इसकी शायद ही किसी को आशंका रही होगी. संस्थान बनाने में वक्त लगता है लेकिन उसकी साख को बट्टा लगाने में देर नहीं लगता.'

बिहार के पुलिस महानिदेशक रह चुके अभयानंद, जो शिक्षाविद् के रूप में भी जाने जाते हैं, ने इस पूरे मामले पर हैरानी के साथ साथ निराशा भी जताई है. अभयानंद फ़र्स्टपोस्ट से कहते हैं, 'इस पूरे वाकये से सीबीआई के ऊपर लोगों के विश्वास में जाहिर तौर पर कमी आई है और संस्थान की छवि धूमिल हुई है.'

जाहिर तौर पर बेदाग छवि और बिहार पुलिस में रिफॉर्म्स के लिए पहचान बनाने वाले अभयानंद के लिए संस्थान की महत्ता सर्वोपरि रही है और देश की अग्रणी संस्था में घटित हो रही घटना से परेशान बिहार के पूर्व महानिदेशक अभयानंद ने मामले की तह तक जाने की मांग की है जिससे संस्था की गरिमा को बचाए रखने में मदद मिल सके.

वहीं पुलिस सेवा छोड़ चुके एक पूर्व आईपीएस अधिकारी के मुताबिक, 'हाल के वाकये से सीबीआई की विश्वसनीयता को गहरा आघात पहुंचा है. इस वाकये से लोगों की धारणा को बल मिलेगा कि संस्थान में ऊपर बैठे लोग भी पैसे लेकर मामले का निपटारा करते हैं और ऐसी धारणा को खत्म करना आसान नहीं होगा. जाहिर तौर पर खोई विश्वसनीयता को हासिल करने में काफी वक्त लगता है.'

इस वाकये के बाद सीबीआई में अफसरों के चयन को लेकर भी आवाज उठने लगी है. और ऐसी आवाजें आना लाजिमी भी है क्योंकि अब शीर्ष पदों पर बैठे दो अधिकारियों की अदावत बेहद बुरे रूप में बाहर आ चुकी है.