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लालू यादव से साथ निभाने के लिए नीतीश क्या 'गांधी' बन पाएंगे

अगर लालू और उनके बेटों के घोटालों पर नीतीश चुप रहते हैं, तो उनकी साफ-सुथरी इमेज भी दागदार होगी

Ajay Singh

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ऐसे नेता हैं, जिनका सियासी करियर विरोधाभासों से भरा पड़ा है. ठीक उसी तरह जैसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सियासी सफर रहा था.

करीब एक सदी पहले महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह किया था. वहीं से उन्हें साबरमती के संत की उपाधि मिली. गांधी का जीवन भी विरोधाभासों से भरा था. मगर वो कहते थे कि वो अंतरआत्मा की आवाज सुनकर उसके हिसाब से फैसला लेते हैं.


शायद अपने रूह की आवाज छूने की वजह से ही उनका दामन विरोधाभासों के बावजूद बेदाग रहा. इन दिनों चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी समारोह का आयोजन हो रहा है. इसमें नीतीश कुमार भी शामिल हैं.

सत्याग्रह की सौवीं सालगिरह मना रहे नीतीश कुमार मौन हैं. वो मौन हैं सत्ता में अपने साझीदार लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देबी के भ्रष्टाचार पर. उनका ये मौन परेशान करने वाला है. हाल तो ये है कि खुले भ्रष्टाचार के इस मामले पर केंद्र सरकार भी खामोश है.

पिछले दिनों जो बातें सामने आई हैं, उससे लालू-राबड़ी और उनके बेटे सीधे तौर पर कठघरे में खड़े होते हैं. लालू-राबड़ी के बेटे तेजस्वी और तेज प्रताप, नीतीश सरकार में उप-मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्री हैं.

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लालू यादव का चारा से लारा तक का सफर

लारा यानी लालू-राबड़ी का नाम प्रोजेक्ट्स एलएलपी नाम की कंपनी से जुड़ा है. इस कंपनी में राबड़ी देवी और उनके दो मंत्री पुत्र साझीदार हैं. निदेशक हैं. ये कंपनी बिहार की राजधानी पटना के करीब दानापुर में बेशकीमती जमीन की मालिक है. दानापुर में ही बिहार का सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल बन रहा है. इसकी लागत पांच सौ करोड़ रुपए बताई जा रही है.

इस कंपनी से जुड़ी एक सेल डीड कहती है कि खेती लायक 105 डेसिमल जमीन डिलाइट मार्केटिंग कंपनी को बेची गई. इसकी सेल डीड नंबर 1490, खाता नंर 94, प्लॉट नंबर 55 दानापुर की है. ये जमीन पटना के रहने वाले हर्ष और विनय कोचर ने 25 फरवरी 2005 को 15 लाख 85 हजार रुपए में बेची थी.

लालू का परिवार 2010-11 में इस कंपनी में साझीदार बना. कंपनी के शेयर राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव के नाम ट्रांसफर किए गए. ये शेयर मनमोहन सरकार में मंत्री रहे प्रेमचंद गुप्ता की पत्नी सरला गुप्ता ने लालू के परिवार को ट्रांसफर किए.

सरला गुप्ता भी इस कंपनी में साझीदार थीं. बाद में इस कंपनी के सारे शेयर राबड़ी और तेजस्वी के नाम कर दिए गए. कागज पर कंपनी की कीमत 2.3 करोड़ रुपए थी. मगर लालू के परिवार ने इसे केवल चार लाख रुपए में हासिल कर लिया.

मालिकाना हक में बदलाव

2014 में लालू के परिवार का कंपनी पर मालिकाना हक हो गया. कंपनी का दफ्तर नई दिल्ली की न्यू फ्रेंड्स कालोनी के पते पर दर्ज था. कंपनी के उस वक्त के निदेशकों देवकी नंदन तुलसियान और गौरव गुप्ता ने 11 फरवरी 2014 को इस्तीफा दे दिया.

गौरव गुप्ता, प्रेमचंद गुप्ता के बेटे हैं. कंपनी के एक और निदेशक विजय पाल त्रिपाठी ने 26 जून 2014 को इस्तीफा दे दिया. इससे पहले 6 जनवरी 2014 को लालू के दोनों बेटों तेज प्रताप और तेजस्वी को कंपनी में निदेशक बनाया गया था.

बाद में लालू की बेटियों चंदा और रागिनी को भी कंपनी में 26 जून और 5 अगस्त को निदेशक नियुक्त किया गया.

लालू की बेटियों के अधिकार छिने

14 फरवरी 2017 को डिलाइट कंपनी का नाम बदलकर लारा प्रोजेक्ट्स एलएलपी कर दिया गया. उस वक्त लालू की बेटियों को कंपनी से बाहर कर दिया गया. उनकी जगह राबड़ी देवी कंपनी में साझीदार बनाई गईं. उनके दोनों बेटे पहले से ही कंपनी के निदेशक थे.

डिलाइट कंपनी जहां एक्सपोर्ट-इंपोर्ट का काम करती थी, वहीं नई कंपनी ने खुद को बुनियादी ढांचे के विकास के काम में लगा हुआ बताया. यही कंपनी दानापुर में बिहार का सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल बना रही है.

कैसे हुआ घोटाले का खुलासा

हर्ष कोचर पटना के चाणक्य होटल के मालिक हैं. उन्होंने ही 2005 में अपनी जमीन डिलाइट मार्केटिंग कंपनी को बेची थी. इस सौदे के साल भर बाद ही कोचर को रांची और पुरी में रेलवे की बेहद कीमती जमीनें लीज पर दे दी गईं.

उस वक्त लालू यादव रेल मंत्री थे और प्रेमचंद गुप्ता कंपनी मामलों के मंत्री. उस वक्त जो जमीनें हर्ष कोचर को लीज पर दी गईं, उन पर होटल बनाए जाने थे.

इस लेन-देन की पूरी पड़ताल जरूरी है

आरोप ये है कि तेज प्रताप और तेजस्वी जो नीतीश सरकार में मंत्री हैं, उन्होंने दानापुर की जमीन पर अपने मालिकाना हक की जानकारी छुपाकर रखी. चुनाव आयोग को दिए अपनी संपत्ति के हलफनामे में उन्होंने इसका जिक्र तक नहीं किया. यानी लालू-राबड़ी ने चारा घोटाले से लेकर लारा घोटाले तक का लंबा सफर तय कर लिया है.

नीतीश सरकार के सूत्र बताते हैं कि ये तो लालू के बेटों के घोटालों की लंबी फेहरिस्त की शुरुआत भर है. लालू के परिवार के एक शराब कारोबारी से अवैध लेन-देन की बात भी सामने आ रही है. बिहार के एक सीनियर नेता कहते हैं कि अगर ईमानदारी से जांच की जाए, तो सैकड़ों बेनामी संपत्तियां पकड़ी जाएंगी जिस पर लालू के परिवार का कब्जा है.

इधर लालू और उनका परिवार घोटाले के आरोप झेल रहा है. उधर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चंपारण सत्याग्रह का संदेश लोगों तक पहुंचा रहे हैं. अच्छा होता कि वो महात्मा गांधी के पड़पोते गोपालकृष्ण गांधी के सुनाए एक किस्से से सबक लेते.

दक्षिण अफ्रीका में अपने प्रवास (1895) के दौरान गांधी सियासी कामों में ऐसे उलझे थे कि घरेलू काम के लिए वक्त ही नहीं निकाल पाते थे. इससे निपटने के लिए उन्होंने अपने दोस्त शेख महताब को बुलाया. गांधी को लगा कि महताब घर के काम निपटाने में उनकी मदद कर सकते हैं.

एक दिन जब गांधी घर लौटे, तो देखा कि महताब एक वेश्या के साथ बैठे थे. गांधी ने महताब को कहा कि वो फौरन उनके घर से निकल जाएं, वरना वो पुलिस बुला लेंगे.

गोपालकृष्ण गांधी ने चंपारण सत्याग्रह की सौवीं सालगिरह के कार्यक्रम में नीतीश के साथ शिरकत की थी. ये किस्सा सुनाते हुए गोपालकृष्ण गांधी ने कहा कि, बहुत कम ही ऐसे दोस्त होते हैं, जो आपकी दोस्ती के काबिल हों और जिनसे पक्का रिश्ता बनता है. शायद गोपालकृष्ण गांधी, नीतीश कुमार को ये सलाह देना भूल गए.

गांधी के दोस्तों की लंबी फेहरिस्त थी. उनमें गरीब भी थे और अमीर थी. ताकतवर लोग भी थे और मजलूम भी. सात्विक लोग भी थे और दुष्ट भी थे. इसके बावजूद गांधी के दामन पर कोई दाग नहीं लगा. इसकी एक बड़ी वजह ये थी कि महताब जैसे नाकाबिल दोस्तों से फौरन खुद को अलग कर लेते थे.

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नीतीश को गांधी से सबक लेना चाहिए

नीतीश कुमार उन गिने चुने नेताओं में से हैं जो महात्मा गांधी के बताए कुछ आदर्शों पर चलने की कोशिश कर रहे हैं. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश ने लालू से समझौता करके लालू की राजनीति को नई जिंदगी दी.

नीतीश को ये उम्मीद थी कि लालू बदल गए हैं. लेकिन हाल में जिस तरह लालू और उनके बेटों के बारे में खुलासे हो रहे हैं, उससे साफ है कि लालू यादव जरा भी नहीं बदले हैं. उन्हें अपने किए पर न पछतावा है और न ही शर्मिंदगी. उल्टे लालू चाहते हैं कि नीतीश उनका साथ दें. उनका बचाव करें.

अब अगर नीतीश कुमार, गांधी के दिखाए रास्ते पर चलते हैं, तो उनकी सरकार खतरे में पड़ सकती है. वो सियासी तौर पर अलग-थलग पड़ सकते हैं.

लेकिन अगर लालू और उनके बेटों के घोटालों पर नीतीश कुमार चुप रहते हैं, तो उनकी साफ-सुथरी इमेज हमेशा के लिए दागदार हो जाएगी.

अब ये नीतीश को तय करना है कि वो किसे चुनें. वो अपनी सरकार को बचाएं या फिर इमेज को?