view all

शिवानंद तिवारी का बयान खोई हुई सियासी जमीन पाने का प्रयास है!

हाशिए पर खड़े शिवानंद तिवारी कोशिश कर रहे हैं कि राज्य की राजनीति में अपनी जमीन फिर से पाएं

Amitesh

समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी इन दिनों लालू के सबसे बड़े ढाल बनकर सामने आ गए हैं. लालू का पूरा कुनबा इस वक्त घपले-घोटालों के घनचक्कर में फंसा हुआ है. खुद लालू, पत्नी राबड़ी देवी, दोनों बेटे और बेटी-दामाद सब पर अलग-अलग मामलों में भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. जांच एजेंसियों की सख्ती ने पूरे परिवार को परेशान कर दिया है तो ढाल बनकर इस वक्त सबसे पहले आए हैं ‘बिहार के बाबा’.

जी हां, बिहार के बाबा मतलब शिवानंद तिवारी. पुराने सियासी दिग्गज और समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी को बिहार में बाबा के नाम से ही जाना जाता है. बाबा लालू और नीतीश दोनों के साथ काम कर चुके हैं. एक जमाने में इन्हें लालू का हनुमान कहा जाता था. अब एक बार फिर से हनुमान की भूमिका में आकर लालू के वारिस का बचाव कर रहे हैं.


शिवानंद तिवारी का समाजवादी बैकग्राउंड रहा है. बिहार के भोजपुर क्षेत्र के शिवानंद तिवारी आपातकाल के दौरान जेल में भी बंद रहे. फिर जनता दल और राष्ट्रीय जनता दल में लालू के साथ लगातार जुड़े रहे. लालू यादव की पार्टी में रहते हुए 1996 और 2000 में लगातार दो बार विधायक भी रहे.

उस दौर में जब लालू यादव के खिलाफ माहौल था. लालू-राबड़ी शासन काल में हर तरफ से जब लालू घिरे थे तो शिवानंद तिवारी लालू के पक्ष में लगातार अपनी आवाज बुलंद करते रहे.

भ्रष्टाचार के आरोप हों या फिर कानून-व्यवस्था का मसला लालू हर तरफ से विपक्ष के हमलों से असहज हो रहे थे तो उस वक्त भी शिवानंद तिवारी ने लालू को ढाल बनकर बचाने की पूरी कोशिश की थी. विपक्ष के आरोपों से लड़ते रहे. अपने बड़बोलेपन के लिए मशहूर शिवानंद तिवारी की लालू भक्ति ने ही उन्हें लालू का ‘हनुमान’ बना दिया.

लेकिन, धीरे-धीरे उनका मोहभंग होता चला गया. दोनों के बीच दूरी बढ़ने लगी. लालू से अलग होकर अपनी अलग सियासी जमीन बना चुके नीतीश कुमार के साथ शिवानंद तिवारी की दोस्ती बढ़ने लगी. आखिरकार लालू के हनुमान ने लालू का दामन छोड़कर नीतीश के साथ होने का फैसला कर लिया.

नीतीश कुमार के साथ जेडीयू में शिवानंद तिवारी को महासचिव के साथ-साथ प्रवक्ता की बड़ी जिम्मेदारी दी गई. फिर 2008 में शिवानंद तिवारी राज्यसभा सांसद बन गए.

इस दौरान अपने बड़बोलेपन से उन्होंने लालू से लेकर अपने दूसरे राजनीतिक विरोधियों तक जमकर वार किया. पटलवार लालू ने भी किया. तू-तू मैं-मैं के इस सियासी खेल में दोनों के बीच दूरी काफी बढ़ गई.

लेकिन, वक्त का पहिया फिर घूमा और शिवानंद तिवारी नीतीश कुमार के भी चहेतों की लिस्ट से गायब होने लगे. इस दौरान 2013 में जब जेडीयू की बीजेपी से दूरी बढ़ने लगी. मोदी विरोध के नाम पर नीतीश ने अलग राह पकड़नी शुरू कर दी तो शिवानंद तिवारी का बड़बोलापन इस दरार को और बढ़ाने वाला था.

हालांकि, उस वक्त भी शिवानंद तिवारी से नीतीश कुमार का भरोसा उठ चुका था. पटना में जेडीयू –आरजेडी की दोस्ती और उस दौरान बन रही रणनीति से नदारद शिवानंद तिवारी महज अपनी बयानबाजी से ही ‘लाइमलाइट’ में रहने की कोशिश करते रहे.

नीतीश कुमार की कोर टीम से वो धीरे-धीरे बाहर हुए. फिर, 2014 में राज्यसभा का टर्म पूरा हुआ तो उन्हें दोबारा मौका नहीं मिल पाया. यहीं से उनकी नाराजगी खुलकर सामने आने लगी. नाराज बाबा ने नीतीश कुमार पर अहंकारी तक कह डाला.

जेडीयू के बिहार अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह को लिखे अपने पत्र के जरिए उन्होंने कहा कि ‘जो नीतीश कुमार के सुर में सुर नहीं मिलाएगा, उसकी कोई भी जगह जेडीयू में नहीं होगी.’ इसके बाद जेडीयू ने शिवानंद तिवारी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

सियासत में हाशिए पर गए शिवानंद तिवारी ने एक बार फिर से लालू का गुणगान शुरू कर दिया. खुद लालू अपने पुराने भगवान की खातिर हनुमान ने एक बार फिर से कमर कस ली है.

रेलवे टेंडर घोटाले में तेजस्वी यादव के खिलाफ जैसे ही सीबीआई ने केस दर्ज किया, सबसे पहले शिवानंद तिवारी सामने आ गए. उदाहरण दिया जब उमा भारती सीबीआई की चार्जशीट के बावजूद केंद्र सरकार में मंत्री नहीं हैं तो तेजस्वी क्यों नहीं.

लेकिन, इन सबके बावजूद नीतीश कुमार तेजस्वी को बख्शने के मूड में नहीं दिख रहे. भ्रष्टाचार के मामले में सफाई मांगी जा रही है तो एक बार फिर इस मुद्दे पर शिवानंद तिवारी ने नीतीश को निशाने पर ले लिया. उनकी तरफ से बयान आया कि क्या नीतीश के अगल-बगल बैठे लोग हरिश्चंद्र की औलाद हैं ?

नीतीश के आस-पास के लोगों के साथ-साथ उन्होंने अपने बयान से नीतीश कुमार की ईमानदारी पर सवाल खड़े किए. लेकिन, यहां भी लालू के गुड बुक में आने के चक्कर में उन्होंने मर्यादा की सारी हदें तोड़ दीं. लेकिन, अपने बड़बोलेपन के पुराने अंदाज से पीछे नहीं दिख रहे.

आज बाबा ना ही आरजेडी में हैं और ना ही जेडीयू में. लेकिन, लालू के करीब दिख रहे हैं. लालू परिवार का बचाव कर रहे हैं. कोशिश है अपने-आप को फिर से जीवंत रखने की. लेकिन, हाशिए पर खड़े शिवानंद तिवारी शायद ही अब फिर से अपने-आप को फिर से सियासी तौर पर खड़ा कर सकें.