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बजट 2017: कृषि क्षेत्र में बुनियादी ढांचा मजबूत करने पर होगा फोकस

2017-18 का बजट कृषि केंद्रित साबित हो सकता है.

Bhuwan Bhaskar

नरेंद्र मोदी सरकार का दूसरा यानी 2016-17 का बजट खेती-किसानी के लिहाज से एक ऐतिहासिक बजट माना गया क्योंकि उस बजट में ग्रामीण भारत केंद्र सरकार की विकास योजनाओं के केंद्र में था.

सरकार ने एक के बाद एक, दर्जनों ऐसी योजनाओं की घोषणा की जिनका उद्देश्य कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर को तेज करना और किसानों की आर्थिक स्थिति को बेहतर करना था.


किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य

उसके बाद साल के दौरान सरकार ने किसानों की आमदनी को 2022 तक दोगुना करने के अत्यंत महत्वाकांक्षी लक्ष्य की घोषणा की.

इस पृष्ठभूमि में 15 दिन बाद पेश होने वाले आम बजट को एक बार कृषि क्षेत्र के लिए बहुत अहम माना जा रहा है और इसमें पिछले बजट की ही तरह कृषि को विशेष महत्व मिलने की पूरी संभावना है.

खास तौर पर यह बजट कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर केंद्रित होगा. सरकार ने अंबेडकर जयंती यानी 14 अप्रैल 2016 को इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार यानि ई-नाम की शुरुआत की थी, जिसे आजादी के बाद कृषि क्षेत्र के सबसे बड़े सुधारों में से एक माना जा सकता है.

ई-प्लेटफॉर्म का होगा विस्तार  

इसके तहत सरकार की योजना मार्च 2017 तक देश की 450 मंडियों को आपस में एक ई-प्लेटफॉर्म से जोड़ने की है.

लगभग 300 मंडियां पहले ही इससे जुड़े चुकी हैं, लेकिन तमाम रिपोर्ट्स के मुताबिक ई-नाम से होने वाले कारोबार की गुणवत्ता, किसानों को मिलने वाले विकल्प और लेन-देन की लागत के लिहाज से ई-नाम पर हो रहा कारोबार अब भी अपनी पूरी क्षमता से कहीं दूर है.

आम बजट 2017-18 में ई-नाम को लेकर कुछ अहम घोषणाएं की जा सकती हैं. इनमें सरकारी और निजी क्षेत्र की 50-50 प्रतिशत की हिस्सेदारी वाली ऐसी कंपनियों के गठन का प्रस्ताव हो सकता है, जिन्हें ई-नाम की सारी जिम्मेदारी दी जाए.

ई-नाम की सफलता क्योंकि एक राज्य से कृषि कमोडिटी के दूसरे राज्य में लाने-ले जाने की सहूलियत पर निर्भर करेगा.

इसलिए सरकार बजट में एपीएमसी अधिनियम के तहत काम कर रहे मौजूदा अवरोधों को दूर करने के लिए कोई कदम उठाने की घोषणा भी कर सकती है.

फिक्की ने ई-नाम प्लेटफॉर्म पर होने वाले अंतरराज्यीय कारोबार पर लगने वाले शुल्क पर 1 प्रतिशत की अधिकतम सीमा की मांग की है.

प्रधानमंत्री की कई अहम योजनाएं 

कृषि क्षेत्र की सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शामिल है. सरकार को इस योजना से काफी उम्मीदें हैं.

लेकिन इन योजना की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि राज्य और केंद्र सरकारें बीमा कंपनियों को समय से सब्सिडी का भुगतान कर पाती हैं या नहीं.

कृषि बीमा कंपनियां बजट में इस बारे में कुछ स्पष्ट घोषणाओं की उम्मीद कर रही हैं, जिन्हें बाद में कानून के तहत सुनिश्चित किया जा सके.

इसके साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अहमियत रखने वाले कुछ अन्य संबंधित उद्योगों, जैसे मुर्गी पालन, दुग्ध व्यवसाय, मछली पालन इत्यादि को भी कृषि बीमा के दायरे में लाने की मांग कृषि क्षेत्र की ओर से की जा रही है, जिस पर बजट में कुछ ठोस सुनने को मिल सकता है.

बीमा उद्योग की मुश्किल

कृषि बीमा के सफल निपटारे के लिए दावों की पुष्टि सरकार और बीमा उद्योग के लिए एक बड़ा सिरदर्द है.

इस संदर्भ में ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन (एडब्ल्यूएस) और रेन गेजेज (एआरजी) महत्वपूर्ण उपकरण साबित हो सकते हैं.

एक अध्ययन के मुताबिक भारत में हर गांव में हर 5 किलोमीटर पर एक एडब्ल्यूएस और हर 2 किलोमीटर पर एक एआरजी की आवश्यकता है.

जाहिर है कि इसके लिए बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत होगी, जिसके लिए निजी क्षेत्र को जोड़ने की आवश्यकता होगी. आम बजट 2017-18 में कृषि बीमा को सफल बनाने के लिए ऐसी कई घोषणाएं सामने आ सकती हैं.

क्रॉप डायवर्सिफिकेशन या बहुफसलीकरण की सरकारी नीति को बल देने के लिए सरकार सब्जियों और फलों के किसानों को बढ़ावा देना चाह रही है.

लेकिन इस राह में सबसे बड़ी बाधा बागवानी (हार्टिकल्चर) उत्पादों की कीमत को लेकर मौजूद अनिश्चितता है. गैर अनाज फसलों के लिए अधिक से अधिक मूल्य मिले, इसके लिए इन फसलों का निर्यात खोलने की मांग पुरानी है.

अहम घोषणा की उम्मीद 

सरकार की मौजूदा नीति के लिहाज से देखा जाए तो इस बार इस पर कोई घोषणा हो सकती है. कृषि क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण मसला उत्पादकता का है.

भारत कृषि उत्पादों के लिहाज से भले ही दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल हो, लेकिन प्रति एकड़ यील्ड के लिहाज से वह अमेरिकी, यूरोपीय या चीन के मुकाबले आधे से भी कम पर है.

इसे बढ़ाने के लिए कृषि कार्यों में मशीनों और तकनीक का इस्तेमाल बहुत जरूरी है.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कृषि क्षेत्र के प्रतिनिधियों से बजट पूर्व मशविरे के दौरान अपनी प्राथमिकताओं को रेखांकित करते हुए भी साफ किया कि सरकार अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से उत्पादकता बढ़ाना चाहती है.

फिक्की की ओर से सरकार को दिए गए प्रतिवेदन में इस लिहाज से पशुचारे और मक्के की कटाई के लिए इस्तेमाल होने वाली मशीन, धान की बुवाई और 80 एचपी से ज्यादा पावर वाले ट्रैक्टर पर से बेसिक आयात शुल्क, काउंटरवेलिंग ड्यूटी और सेस हटाने की मांग की गई है.

भारी और महंगी मशीनों को छोटे और मझोले किसानों को सुलभ करने के लिए किराये पर और इस्तेमाल के आधार पर भुगतान कर इनका इस्तेमाल करने का प्रचलन बढ़ रहा है.

स्टार्ट-अप कंपनियों के लिए कई मौके 

इस क्षेत्र में कई स्टार्ट-अप कंपनियां भी उभरी हैं. उन्हें बढ़ावा देने के लिए निवेश पर सब्सिडी की शुरुआत की जा सकती है.

साथ ही तकनीक के इस्तेमाल के लिए किसानों को प्रशिक्षण देने के लिए भी बजट में विशेष ध्यान देने की जरूरत है, जिसे स्किल इंडिया के तहत लाया जा सकता है.

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ग्राहकों को कृषि उत्पादों की सही मूल्य पर आपूर्ति सुनिश्चित करते हुए भी किसानों की आमदनी में दोगुनी तक की बढ़ोतरी करने का सरकारी लक्ष्य तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक सप्लाई चेन को दुरुस्त न किया जाए.

खेतों से लेकर रीटेल ग्राहकों तक पहुंचते-पहुंचते 10 प्रतिशत तक अनाज बरबाद हो जाता है, जबकि सब्जियों में यह दर 40 प्रतिशत तक है.

इसे रोकने के लिए कृषि उत्पादों के रख-रखाव और परिवाहन पर खास ध्यान देने की जरूरत है.

एग्री वेयरहाउसिंग इसमें महत्वपूर्ण भूमिक निभा सकते हैं. ग्रामीण भंडारण योजना के तहत पूंजीगत सब्सिडी को सरकार ने खत्म कर दिया है, जिसे फिर से शुरू करने की मांग की जा रही है.

भारत सरकार ने दालों का 20 लाख टन बफर स्टॉक रखने की भी घोषणा की है. अनाज भंडारण में एफसीआई के रिकॉर्ड को देखते हुए दालों के स्टॉक मैनेजमेंट में निजी क्षेत्र की भागीदारी हासिल करना जरूरी है.

और साथ ही सरकार के लिए यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि दालों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर हो.

प्रीमियर इंस्टीट्यूट खोलने का हो सकता है ऐलान

इन उपायों के अलावा सरकार आगामी बजट में आईआईएम और आईआईटी की तर्ज पर कृषि क्षेत्र के लिए देश भर में कुछ प्रीमियर इंस्टीट्यूट खोलने की घोषणा कर सकती है.

नोटबंदी के बाद एग्री इनपुट हासिल करने में किसानों को हुई दिकक्तों का संज्ञान लेते हुए सरकार डिजिटल इकनॉमी में कृषि और किसानी को शामिल करने के लिहाज से कुछ बड़ी घोषणाएं कर सकती है.

इसके अलावा कीटनाशकों पर एक्साइज ड्यूटी कम करने और उनके कच्चे माल पर आयात शुल्क हटाने की उद्योग जगत की मांग पर भी बजट में कुछ घोषणाएं देखने को मिल सकती हैं.

एक और अहम घोषणा ऑर्गेनिक खादों की श्रेणी को लेकर हो सकती है, जिस पर सरकार ने पिछले ढाई वर्षों में खास जोर दिया है.

करीब डेढ़ दशक पहले बायो प्रोडक्ट्स यानी ऑर्गेनिक खाद, एंटेगोनिस्टक माइक्रोब्स, ऑर्गेनिक एक्सट्रैक्ट इत्यादि के आगमन के बाद से ही इन्हें केंद्रीय उत्पाद शुल्क की उसी श्रेणी में रखा गया है, जिसमें रासायनिक या कृत्रिम उत्पादों को रखा गया है.

उद्योग जगत की मांग है कि बायो प्रोडक्ट के लिए एक अलग श्रेणी तैयार की जाए.

लब्बोलुआब यह है कि 2016-17 के बजट में कृषि क्षेत्र के लिए आवंटन में 36000 रुपये की बढ़ोतरी की गई थी, 2017-18 का बजट लगातार दूसरे साल कृषि केंद्रित और ग्रामीण भारत के लिहाज से महत्वपूर्ण घोषणाओं का बजट साबित हो सकता है.

(लेखक भारतीय अर्थव्यवस्था और कृषि मामलों के जानकार हैं)

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