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खुद इस्तीफा नहीं देतीं तो भी बाहर हो जातीं मायावती!

मायावती ने भले ही इस्तीफा दे दिया हो लेकिन वो जानती हैं राज्यसभा में उनकी दोबारा इंट्री मुश्किल है

Amitesh

बीएसपी सुप्रीमो मायावती राज्यसभा ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया है. दलितों के खिलाफ जारी हिंसा के मामले में अपनी बात ना रख पाने की वजह से मायावती ने राज्यसभा की सदस्यता छोड़ने की बात कही थी. लेकिन, हकीकत तो कुछ और है. मायावती इस्तीफा देतीं या ना देतीं, उनकी सदस्यता तो ऐसे ही जाने वाली थी.

बतौर राज्यसभा सांसद मायावती का कार्यकाल अगले साल अप्रैल में खत्म हो रहा है. लेकिन, सदन में दोबारा चुन कर आने लायक उनकी पार्टी के पास विधायक ही नहीं हैं. बीएसपी की विधानसभा के भीतर ताकत महज 19 विधायकों की रह गई है.


अब इतने कम विधायकों के नाम पर उनकी सदन के भीतर दोबारा इंट्री तो नामुमकिन ही थी. अगर किसी दूसरे के भरोसे वो दोबारा राज्यसभा में न आ पातीं तो मायावती अप्रैल 2018 के बाद अपनेआप राज्यसभा की पूर्व सांसद हो जातीं.

मायावती के लिए त्रासदी है कि उनकी पार्टी बीएसपी का लोकसभा में तो खाता ही नहीं खुल पाया था. मतलब लोकसभा के भीतर पार्टी की नुमाइंदगी करने वाला कोई नहीं है. उनके खुद के राज्यसभा में नहीं आने की सूरत में उनकी पार्टी की तरफ से राज्यसभा में खुलकर बोलने वाला कोई नहीं बचेगा. लिहाजा वो पहले से ही ऐसा माहौल बनाती दिख रही हैं जिनके दम पर वो एक बार फिर से यूपी के भीतर अपनी सियासी जमीन को फिर से हासिल कर सकें.

मायावती एक बार फिर से दलित समुदाय के लोगों को अपने पास जोड़ने की कवायद में हैं. उनकी कोशिश है कि फिर से बहुजन समाज को अपने पाले में  लाया जाए लिहाजा दलित उत्पीड़न के मुद्दे को सदन के भीतर उठाकर उसी नाम पर राज्यसभा से इस्तीफा दिया है.

उनको लगता है कि दलित हिंसा के मुद्दे पर इस्तीफे के बाद उनको एक बार फिर से बहुजन समाज में वो स्वीकार्यता मिल जाएगी जो कुछ साल पहले तक थी.

राज्यसभा के भीतर दी थी इस्तीफे की धमकी

मायावती की नाराजगी इस बात को लेकर है कि सदन के भीतर उनको बोलने का मौका नहीं मिल पा रहा है. खासतौर से दलित उत्पीड़न के मुद्दे पर अपनी बात रख रही मायावती को जब तय वक्त से ज्यादा वक्त तक बोलने से रोका गया तो वो इस कदर नाराज हो गईं कि गुस्से में आकर सदन से बाहर चली गईं.

मॉनसून सत्र के दूसरे दिन राज्यसभा की कार्यवाही जैसे ही शुरू हुई सदन के भीतर सभी विपक्षी दलों की तरफ से हंगामा शुरू हो गया.

बीएसपी की तरफ से यूपी में सहारनपुर की घटना पर चर्चा के लिए स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया गया था. कार्यवाही की शुरुआत होते ही हंगामा कर रहे सदस्यों को उपसभापति की तरफ से  ये भरोसा दिया गया कि सबको बोलने का मौका मिलेगा.

लेकिन, उसके बावजूद अपनी सीट पर उठ कर खड़ी हो गईं और बोलने लगीं. फिर उपसभापति ने उन्हें तीन मिनट में अपनी बात पूरी करने को कहा. लेकिन, मायावती लगातार बोलती रहीं. जब तीन मिनट का वक्त पूरा हो गया तो फिर उपसभापति ने उन्हें बैठने के लिए कहा जिसके बाद टोका-टोकी शुरू हुई और अंत में मायावती नाराज हो गईं.

मायावती ने अपनी बात पूरी नहीं होने देने का आरोप लगाते हुए नाराज होकर सदन के बाहर चली गईं.

राज्यसभा से बाहर आ कर मायावती ने कहा कि देश में दलितों के साथ अत्याचार हो रहा है. उन्होंने कहा, 'यूपी में महाजंगलराज है. दलितों, अल्पसंख्यकों, मजदूरों, कमजोर वर्ग के खिलाफ अन्याय हो रहा है.'

मायावती ने कहा कि अगर उन्हें सदन में कमजोर वर्गों के पक्ष में बोलने की इजाजत नहीं दी जा रही है तो वह इस्तीफा दे देंगी.

दरअसल, मायावती दलित राजनीति में बीजेपी की इंट्री से परेशान है. गैर-जाटव दलित समुदाय के रामनाथ कोविंद को देश के सर्वोच्च पद के लिए आगे कर बीजेपी यूपी समेत बाकी राज्यों में भी अपनी साख बढ़ा रही है. बीजेपी दलित राजनीति के इस सियासी खेल में फिलहाल बाजी मारती दिख रही है.

यही वजह है कि सहारनपुर की घटना और दलित उत्पीड़न के नाम पर इस्तीफा देकर मायावती दलित राजनीति के केंद्र में अपने-आप को लाना चाहती हैं. लेकिन, उनके लिए ऐसा कर पाना मौजूदा हालात में आसान नहीं रहने वाला है.