बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने बीजेपी को गरीब, मज़दूर, किसान और दलित विरोधी बताया है. उन्होंने कहा कि इस पार्टी को इन वर्गों के हित के बारे में बात करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं बचा है. मायावती ने कहा कि बीजेपी की केन्द्र और राज्य सरकारें, खासकर उत्तर प्रदेश की सरकार पूर्व की सरकारों से दो कदम आगे बढ़कर इन वर्गों का शोषण और उत्पीड़न कर रहीं हैं. साथ ही इन वर्गों को जीने के मौलिक अधिकार और आरक्षण के संवैधानिक अधिकार से भी वंचित रख रही हैं.
उन्होंने कहा कि खासकर दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के आरक्षण के मामले में बीजेपी का रवैया बेहद द्वेषपूर्ण और जातिवादी बना हुआ है. यही कारण है कि आरक्षण के आधिकार को पूरी तरह से निष्क्रिय और निष्प्रभावी बना दिया गया है. वहीं, दूसरी तरफ सरकार की बड़ी-बड़ी परियोजनाएं ज़्यादातर बड़े-बड़े पूंजीपतियों की निजी क्षेत्र की कम्पनियों को सौंपी जा रही हैं. जहाँ आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है.
आरक्षण बुरा नहीं है
बीएसपी प्रमुख ने कहा कि आरक्षण को नकारात्मक सोच के साथ देखने की बजाए देश में सामाजिक परिवर्तन के व्यापक हित के तहत एक सकारात्मक समतामूलक मानवतावादी प्रयास के रूप में देखना चाहिए. इसी के साथ उन्होंने न्यायपालिका, शिक्षण संस्थानों सहित निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की सुविधा की मांग की.
मायावती ने कहा कि बीजेपी की सरकारें देश की आमजनता के प्रति अपनी कानूनी और संवैधानिक जिम्मेदारियों से भागने के लिए ही हर दिन नए-नए शिगूफे छोड़ती रहती हैं. साथ ही लोगों की धार्मिक भावनाएं भड़काने का प्रयास करती रहती हैं ताकि उनकी सरकार की घोर विफलताओं पर से लोगों का ध्यान बंटा रहे.
पिछले चार साल से झेल रहे हैं अघोषित इमरजेंसी
उन्होंने कहा कि 42 वर्ष पहले कांग्रेस द्वारा देश पर थोपी गई राजनीतिक इमरजेंसी की याद बार-बार ताजा की जाती है. जबकि पूरे देश को बीजेपी सरकार की नोटबंदी की आर्थिक इमरजेंसी की जबर्दस्त मार झेलने पड़ी. बीएसपी प्रमुख ने कहा कि पिछले चार वर्षों से हर मामले में अघोषित इमरजेंसी जैसा माहौल हर स्तर पर लोगों को झेलना पड़ रहा है. इससे हर समाज, हर वर्ग और हर व्यवसाय के लोग काफी ज्यादा घुटन महसूस कर रहे हैं.