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कपिल मिश्रा का आरोप: 'आप' का राजनीतिक टाइटैनिक हकीकत के आइसबर्ग से टकराया

आज केजरीवाल उसी तरह कीचड़ में सने दिख रहे हैं, जैसे दूसरी पार्टियां और उनके नेता

Mridul Vaibhav

आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल जिस तेजी से भारतीय राजनीति के क्षितिज पर उभरे थे, वे उसी गति से अब नीचे आ रहे हैं. आप सरकार से शनिवार को ही हटाए गए कपिल मिश्रा ने जो आरोप लगाए हैं, वे बेहद गंभीर हैं. इससे पार्टी और अरविंद केजरीवाल दूसरी पार्टियों के बराबर आ जाएंगे.

अरविंद केजरीवाल के बेहद नजदीकी और उनकी सरकार में मंत्री रहे कपिल मिश्रा के आरोप झूठे हो सकते हैं. लेकिन इन आरोपों को खारिज करने से पहले यह ध्यान रखना होगा कि ये आरोप केजरीवाल का ही एक भरोसेमंद साथी लगा रहा है. और ठीक उसी तेवर और उसी अंदाज से लगा रहा है, जैसे कभी खुद केजरीवाल लगाया करते थे. कभी कांग्रेस सरकार पर और कभी बीजेपी सरकार पर.


क्या सच हैं आरोप?

कपिल मिश्रा ने आरोप लगाया है कि केजरीवाल को उनकी सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन ने अभी दो दिन पहले ही दो करोड़ रुपये नकद दिए हैं. ये उन्होंने अरविंद केजरीवाल के घर पर दिए हैं.

वे पूछते हैं, ये पैसा जैन के पास कहां से आया? और वे इतनी बड़ी राशि केजरीवाल को क्यों दे रहे हैं? यही नहीं, कपिल मिश्रा ने ये भी आरोप लगाया कि केजरीवाल ने पचास करोड़ रुपए लेकर अपने एक रिश्तेदार का काम भी सत्येंद्र जैन के माध्यम से करवाया. यह एक लैंड डील थी.

सिसोदिया की भूमिका पर भी सवाल?

आरोपों से घबराए हुए केजरीवाल चुप हैं. वे हमेशा आरोप लगाने की हिम्मत तो जुटाते हैं, लेकिन आरोपों का कभी जवाब नहीं देते. अलबत्ता, उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सफाई दी और कहा कि ऐसे आरोपों पर कुछ नहीं कहा जा सकता. ये बहुत ऊलजलूल आरोप हैं. लेकिन जब वे अपनी ये चालीस सेकंड की सफाई दे रहे थे, उनकी बॉडी लैंग्वेज बहुत निराशाजनक थी.

सिसोदिया वह नेता हैं, जो केजरीवाल का विकल्प बनने को लालायित हैं. वे इस पार्टी में कलह के बीज बोने वाले नेताओं में रहे हैं. आरोपों पर भरोसा करें तो प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव के अलग होने के पीछे सिसोदिया की राजनीतिक महत्वकांक्षाएं भी कम नहीं थी.

अब क्या करेंगे केजरीवाल?

आम आदमी पार्टी के डिक्टेटर बन चुके अरविंद केजरीवाल चाहे जिसे निकाल रहे थे और चाहे जिसे पद दे रहे थे. लेकिन वे अब बेपर्दा हो रहे हैं. वे उसी तरह ही कीचड़ में सने दिख रहे हैं, जैसे दूसरी पार्टियां और उनके नेता.

कुल मिलाकर वैकल्पिक राजनीति के आम आदमी प्रयोग का टायटेनिक हकीकत के आइसबर्ग से टकराकर हिचकोले खा रहा है. आम आदमी पार्टी कच्ची नींद वाली झपकी में देखा गया एक टूटा सपना था. केजरीवाल को चाहिए वे इस सपने को बेचें नहीं, बचाएं.