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काले धनवालों ने मीडिया को बेवकूफ बनाया

कुछ एंकर पूछ रहे हैं कि क्या बैंक की लाइन में खड़े गरीब काले धन के लिए जिम्मेदार है?

सुरेश बाफना

पिछले चार दिनों से टीवी चैनलों व सोशल मीडिया यह बात चीख-चीखकर कही जा रही है कि धनी लोग बैंक के सामने लगने वाली लंबी कतारों में नहीं दिखाई दे रहे हैं.

कुछ टीवी चैनल पर एंकर यह सवाल करते हुए पाए गए कि क्या बैंक की लाइन में खड़े ये गरीब काले धन के लिए जिम्मेदार है?


काले धन रखनेवाले लोग इस कतार में नहीं दिखाई दे रहे हैं. टीवी एंकर्स के भोलेपन की दाद देनी चाहिए.

एनडीटीवी के बड़े सुलझे हुए पत्रकार रवीश कुमार की चांदनी चौक व खारी बावली के व्यापा‍रियों संबंधी रिपोर्ट में वे उन व्यापारियों के प्रति सहानुभूति प्रकट करते नजर आए जो अपना 100 प्रतिशत व्यापार नगद में करते हैं.

नगद में होता है कारोबार 

करोड़ों रुपए साल का व्यापार करने वाले पुरानी दिल्ली के व्यापारी इक्कीसवीं सदी में मुगलकालीन रोकड़ के माध्यम से अपने बिजनेस का रिकार्ड रखते हैं. यह बताने की जरूरत नहीं है कि ये व्यापारी केवल नगदी में ही बिजनेस क्यों करते हैं?

पुरानी दिल्ली के व्यापारी नोटबंदी के बाद दुकान बंद करके पत्रकारों को यह बता रहे हैं कि देखिए व्यापार ठप होने की वजह से मजदूरी करने वाले हजारों मजदूरों बेरोगजार हो गए और उनके घरों में भोजन का संकट पैदा हो गया है.

वास्तविकता यह है कि इन व्यापारियों के साथ काम करने वाले सभी मजदूर बैंक की लाइनों में लगकर अपने सेठों का काला धन सफेद करने में लगे हुए हैं.

इन मजदूरों को एक बार नोट बदलने पर 400-500 रुपए दिए जा रहे हैं. ये मजदूर दिन में दो बार नोट बदलने में कामयाब हो जाते हैं.

मजूदरों को नोट बदलवाने के अभियान में लगाया

इसी तरह छोटे-बड़े उद्योगपतियों ने भी अपने लगभग सभी मजूदरों को नोट बदलवाने के अभियान में लगा दिया है. उद्योगपति मीडिया के साथ बातचीत में कहते हैं कि मांग नहीं होने से मजदूरों के बेरोगारी का सामना करना पड़ रहा है.

टीवी रिपोर्टर भी मजदूरों की दुर्दशा पर आंसू बहाना नहीं भूलते हैं. कई मजदूरों ने तो गांव से अपनी पत्नी व रिश्तेदारों को बुलाकर बैंकों के सामने कतार में लगा दिया है.

बैंकों की कतार में लगे आधे लोग एक हजार रुपए पाकर काले धनवालों की मदद कर रहे हैं, जिसकी वजह से आम लोगों को कई घंटे कतार में परेशान होना पड़ रहा है.

काले धनवालों ने साइकिल रिक्शा चलाने वालों को भी नोट बदलवाने के बिजनेस में लगा दिया है, जिसकी वजह से सड़क पर साइकिल रिक्शों की संख्या में काफी कमी हुई है.

मीडिया इस सच को देख पाने में बुरी तरह विफल रहा है. इन लोगों को अब तो निशुल्क खाना भी उपलब्ध कराया जा रहा है. सुबह पांच बजे बैंक के सामने लाइन में लगने पर रजाई की सुविधा भी उपलब्ध है.

काले धनवालों द्वारा मजदूरों व रिक्शा चालकों के माध्यम से नोट बदलवाने के इस अभियान का नतीजा यह हुआ है कि नए नोटों का एक बड़ा हिस्सा फिर सर्कुलेशन से बाहर हो गया. इसकी वजह से आम लोगों को नगदी की समस्या का समाधान नहीं हो रहा है.

काले धनवालों की इस रणनीति को विफल करने के लिए वित्त मंत्रालय ने अब निर्देश दिया है कि नोट बदलवाने लोगों की उंगलियों पर अमिट स्याही लगाई जाए, ताकि वे दूसरी बार नोट बदलवाने की कोशिश न करें.

यह कदम शुरू में ही उठाया होता तो काले धनवालों को सफेद करने की सुविधा नहीं मिलती.

सरकार को अब जल्दी से जल्दी एटीएम मशीनों के माध्यम से नए नोट वितरित करने पर अधिक जोर देना चाहिए और नोट बदलवाने की प्रक्रिया को सीमित किया जाए.

काले धनवालों की नजर ग्रामीण इलाकों में किसानों के बैंक खातों पर भी है, जिनकी आय करमुक्त होती है. कई चाटर्ड अकाउंटेंट काले धन को सफेद करने की दलाली के काम में लग गए हैं.