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राजनीतिक अखाड़ा बन गए हैं इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर के चुनाव

इस्लामिक सेंटर का चुनाव राजनीतिक अखाड़े में बदल गया है. जो कांग्रेस के नेता सीधे चुनाव में सिराज कुरैशी को नहीं हरा पाए हैं, वो अब आरिफ मोहम्मद खान के साथ हैं

Syed Mojiz Imam

दिल्ली के पॉश लुटियन ज़ोन में इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर में चुनाव की वजह से हलचल तेज़ है. पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान के चुनाव में आने से मामला दिलचस्प हो गया है. आरिफ मोहम्मद खान एक समय बीजेपी में थे. हालांकि उनकी तरफ से कहा जाता है कि बीजेपी से उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. मौजूदा प्रेसिडेंट सिराजुद्दीन कुरैशी को भी बीजेपी का समर्थन है.

बीजेपी बनाम पूर्व बीजेपी!


आरिफ मोहम्मद खान 2004 में बीजेपी से जुड़े थे. शाह बानो प्रकरण में राजीव गांधी से मतभेद की वजह से कांग्रेस से अलग होकर जनता दल के साथ हो गए थे, फिर बीएसपी में थे. यूपी के बहराइच से सांसद भी थे. हालांकि बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतने में सफलता नहीं मिली. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ताल्लुक है, जाहिर है कि आरिफ मोहम्मद खान का बायोडाटा लंबा है. राजनीतिक रसूख भी है. इसका मतलब ये नहीं कि सिराज कुरैशी किसी सिरे से कमज़ोर हैं. कई राजनीतिक हस्तियों को पटकनी दे चुके हैं. बीजेपी से करीबी है. इससे इनकार नहीं हैं. पुरानी दिल्ली के रहने वाले हैं. मशहूर कारोबारी हैं. बीजेपी से नज़दीकी के बावजूद कांग्रेस का एक धड़ा भी उनके साथ है.

राजनीतिक लड़ाई में तब्दील चुनाव

इस्लामिक सेंटर का चुनाव राजनीतिक अखाड़े में बदल गया है. जो कांग्रेस के नेता सीधे चुनाव में सिराज कुरैशी को नहीं हरा पाए हैं, वो अब आरिफ मोहम्मद खान के साथ हैं. पिछला चुनाव सिराज कुरैशी से हार चुके कांग्रेस के नेता शकीलुज़्ज़मा अंसारी आरिफ मोहम्मद के मुख्य कर्ता धर्ता हैं. जिनका कहना है कि सेंटर के मकासिद को पूरा करने के लिए ही वो विरोध में खड़े हैं. शकीलुज़्ज़मा का आरोप है कि इस्लामिक सेंटर का फायदा उठाया जा रहा है. जबकि आरिफ मोहम्मद खान के समर्थक इस्माइल खान का कहना है कि सेंटर के लिए सिराजुद्दीन कुरैशी ने काफी काम किया है, लेकिन अब नए लोगों को मौका मिलना चाहिए. सेटर को थिंक टैंक की तरह काम करना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है.

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वहीं इन सब आरोपों को सिराजुद्दीन कुरैशी खारिज करते हैं. उनका कहना है कि सेंटर को दिया है, लिया कुछ भी नहीं है. सेंटर को खड़ा करनें में अपना पैसा भी लगाया है, जबकि बाकी लोग चुनाव के समय सक्रिय होते है, चुनाव के बाद सो जाते हैं. वहीं पलटवार करते हुए कहते हैं इस्लामिक सेंटर सांस्कृतिक केंद्र है, लेकिन इसे सियासत का अखाड़ा बनाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन वो इसे सफल नहीं होने देंगें.

वहीं सिराज कुरैशी के हिमायती आईआरएस अफसर अबरार अहमद जो खुद बोर्ड ऑफ ट्रस्टी के लिए मैदान में हैं अबरार अहमद का कहना है कि सेंटर की मर्यादा बनाए रखना ज़रूरी है. इसका काम सद्भाव पैदा करना है, वैमनस्य नहीं, ज़ाहिर है कि ये गैर राजनीतिक संस्थान है इसे ऐसा ही रहने दें. इस सेंटर में राजनीतिक दखल इसके भविष्य के लिए ठीक नहीं है. अबरार अहमद आगे कहते हैं कि 1984 से इस संस्थान से जुड़े हैं, चुनाव के दौरान बेमतलब के आरोप लगाए जाते हैं, चुनाव के बाद सब गायब हो जाते हैं. जहां तक मुसलमानों के मसलों पर दखल का सवाल है ये नई कमेटी तय करेगी, लेकिन अभी तक इसका स्वरूप पॉलिटिकल बनाए हुए हैं.

आरिफ मोहम्मद खान

कौन हैं सदस्य?

इंडिया इस्लामिक सेंटर का चुनाव इसलिए अहम है कि यहां के सदस्य मुसलमानों के बौद्धिक वर्ग की नुमाइंदगी करते हैं. इस्लामिक सेंटर में तकरीबन 3212 सदस्य हैं. जिसमें डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, बिज़नेसमैन राजनेता और सिविल सर्वेंट भी हैं. इस्लामिक सेंटर के चुनाव की अहमियत भी है.

इसकी नुमाइंदगी करना सामाजिक प्रतिष्ठा की बात हैं. इसलिए चुनाव में दमखम लगाया जा रहा है. हालांकि इस सेंटर में गैर- मुस्लिम सदस्य भी काफी हैं, लेकिन सेंटर के चुनाव में मुस्लिम राजनीति ही हावी है. क्योंकि सेंटर में तादाद मुस्लिम सदस्यों की ज्यादा है. हालांकि इस सेंटर में ईद से लेकर दीवाली , क्रिसमस तक मनाया जाता है, जो भारत की सेक्युलर छवि से मेल खाता है.

पुरानी टीम

2004 से इस सेंटर के प्रेसिडेंट का चुनाव लगातार सिराजुद्दीन कुरैशी जीत रहें हैं. सिराजुद्दीन कुरैशी पेशे से व्यवसायी हैं लेकिन निर्बाध रूप से चुनाव जीत रहें हैं. उनको हराने की कई बार गंभीर कोशिश की गयी है, लेकिन कामयाबी नहीं मिली है. सिराज और उनकी टीम का दबदबा कायम हैं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद भी एक चुनाव उनसे हार चुके है , पिछले चुनाव में कांग्रेस के शकीलुज्ज़मा अंसारी ने भी कोशिश की थी लेकिन जीत नहीं पाए.

2004 के पहले इस्लामिक सेंटर और अब के हालात में काफी फर्क है. पहले बिल्डिंग नहीं बनी थी लेकिन अब पूरा सेंटर बन गया है, सिराज कुरैशी बता रहें हैं कि विस्तार की योजना है. पुरानी टीम का कहना है कि जब उन्होंने कमान संभाली थी तब 68 लाख का घाटा था अब सेंटर के पास कई करोड़ का सरप्लस फंड है.

सिराज कुरैशी का दावा है कि सेंटर को कल्चर का केंद्र बनाया गया है, यहां सभी मज़हब के लोगों को सदस्यता दी जाती है, महत्वपूर्ण त्योहार सभी धर्मों के मनाए जाते हैं. यही नहीं सेंटर की तरफ से कोचिंग भी चलाई जा रही हैं जिससे निकल कर कई लोग सरकारी नौकरी भी कर रहें हैं.

सिराजुद्दीन कुरैशी

क्यों महत्वपूर्ण चुनाव ?

इंडिया इस्लामिक सेंटर का चुनाव कई मायने में महत्वपूर्ण है. एक तो इकलौता सेंटर हैं, ये बौद्धिक मुस्लिम का इकलौता संगठन है. जहां धार्मिक दखल ना के बराबर है. इस संस्था के मुखिया की राजनीतिक रसूख तो है ही सामाजिक प्रतिष्ठा भी कम नहीं है. इसके अलावा विदेशों में भी इस सेंटर का काफी नाम है, खाडी़ देशों में इस सेंटर का काफी नाम है. इसके कारण चुनाव में गहमा गहमी है.

इस्लामिक सेंटर का इतिहास

1980 में इस्लाम के 1400 साल पूरे होने पर पूरी दुनिया में जश्न चल रहा था. भारत में मुसलमान की आबादी पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर है. तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार ने तब के उपराष्ट्रपति जस्टिस हिदायतुल्ला की अगुवाई में एक कमेटी गठित की थी. जिसमें पहली बार इस तरह का सेंटर बनाने का सुझाव दिया गया था.

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1981 में सोसायटी का पंजीकरण कराया गया जिसके मुखिया हकीम अब्दुल हमीद थे. सरकार ने 8000 गज जमीन एलॉट किया, 24 अगस्त 1984 में इंदिरा गांधी ने इसका शिलान्यास किया था.

1996 में नए भवन का निर्माण शुरू हुआ, 12 जून 2006 में सोनिया गांधी ने नए भवन का उद्घाटन किया था.

ये भवन काफी खूबसूरत है. जिस पर ईरानी छाप है. इस सेंटर में रहने के लिए कमरे, दो ऑडिटोरियम, कॉफी हाउस, रेस्तरॉ, लाइब्रेरी और कई अन्य सुविधा है.