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चंडीगढ़ में खिला कमल, बीजेपी ने बताया नोटबंदी पर रेफरेंड्रम

बीजेपी के लिए कई मायने में अहम है चंडीगढ़ नगर निकाय की जीत

Amitesh

चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में बीजेपी को मिली बड़ी सफलता पार्टी के साथ-साथ सहयोगी अकाली दल के लिए भी राहत लेकर आई है. ये राहत इस मायने में बड़ी है कि नोटबंदी के  फैसले के बाद से ही विपक्ष सरकार पर लगातार हमला कर रही थी.

विपक्ष ने नोटबंदी के फैसले को जन विरोधी बताकर कतारों में खड़ी जनता का हमदर्द बनने की कोशिश की थी. विपक्ष को उम्मीद थी कि नोटबंदी की मार से मोदी से मोह भंग होगा. लेकिन इस नतीजे से एकतरफ बीजेपी गदगद है तो विपक्ष सोचने पर मजबूर.


महाराष्ट्र और गुजरात में भी मिली जीत

PTI

इसके पहले महाराष्ट्र और गुजरात में भी स्थानीय चुनाव के नतीजों में बीजेपी ने बाजी मारी थी. पार्टी इसे नोटबंदी के फैसले पर जनता की मुहर बता रही है.

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा चंडीगढ़ में बीजेपी को दो-तिहाई बहुमत मिला है. इससे जनता का मूड एक बार फिर साफ हो जाता है.

नोटबंदी के बाद अलग-अलग चुनाव नतीजे विपक्ष को जनता का मूड बता रहे हैं. नोटबंदी के बाद चाहे विधानसभा चुनाव के नतीजे हों या स्थानीय चुनाव के नतीजे सब यही बता रहे हैं कि नोटबंदी के फैसले पर जनता सरकार के साथ है.

दरअसल, चंडीगढ़ में मिली जीत को लेकर बीजेपी के उत्साहित होने का कारण भी है. अगले साल की शुरुआत में पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं.

चुनाव की तैयारी 

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में चुनाव का बिगुल कभी भी बज सकता है.

लेकिन, नोटबंदी का असर इस कदर है कि शहर से लेकर गांवों तक कोई भी इसके असर से अछूता नहीं रह पाया.

विपक्षी पार्टियों ने इसे ही मुद्दा बनाकर लगातार लोगों की सहानुभूति लेने की कोशिश में हैं. इस आस में कि शायद नोटबंदी की मार से परेशान लोग उनका साथ दे दें.

हाल ही में खत्म हुए संसद के शीतकालीन सत्र में तो विपक्ष के आक्रामक तेवर ने सरकार को परेशान कर दिया था.

सरकार सफाई देती रही. संसद का सत्र हंगामे की भेंट तक चढ़ गया. लेकिन, नोटबंदी को कालेधन के खिलाफ लड़ाई बताने में लगी बीजेपी और खुद प्रधानमंत्री मोदी इसपर जनसभा में अपने फैसले का बचाव करते नजर आ रहे हैं.

अहम है जीत

चंडीगढ़ नगर निकाय की जीत कई मायने में अहम है, क्योंकि बीजेपी बार-बार यही कह रही है कि नोटबंदी से गरीबों को मदद मिलेगी.

अमीरों की शामत आई है. ऐसा कर बीजेपी की तरफ से अमीर और गरीब की खाई को पाटने की कोशिश के तौर पर प्रचारित किया जा रहा था.

कोशिश है कि गांव, गरीब और किसान को अपने पाले में ला खड़ा किया जाए. लेकिन, शहरी क्षेत्र में पार्टी की पहले से मजबूत पकड़ को लेकर कई सवाल खडे हो रहे थे.

खतरा मंडरा रहा था कहीं इस फैसले की मार से बीजेपी के पारंपरिक वोटर ही न खिसक जाएं.

ऐसे में चंडीगढ़ की जीत ने बीजेपी को फिलहाल सांस लेने की मोहलत दे दी है.

अब सियासी बिसात बिछने वाली है. विधानसभा चुनाव के लिए बैटल ग्राउंड तैयार हो रहा है.

जनता के दरबार में हाजिरी लगाने की सबकी तैयारी है. ऐसे में साल के अंत में चंडीगढ़ में मिली जीत बीजेपी के लिए किसी बड़ी लड़ाई जीतने से कम नहीं है.

खासतौर से पंजाब की बात करें तो यहां विधानसभा चुनाव में सत्ता पर काबिज बीजेपी-अकाली गठबंधन को इस बार कांग्रेस और आप से तगड़ी चुनौती मिल रही है.

ऐसे में इस जीत को भुनाने की कोशिश तो होगी ही. साथ ही नोटबंदी पर बीजेपी के उपर आंखें तरेर रहे अकालियों की अकड़ भी थोड़ी कम होगी.