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यूपी चुनाव 2017: लखनऊ का रास्ता कब्रिस्तान से होकर जाता है क्या ?

चुनाव के अंतिम दो चरणों से पहले साक्षी महाराज का विवादास्पद बयान सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगता है

Amitesh

चुनावी मौसम में बीजेपी के बड़बोले सांसद साक्षी महाराज फिर विवादों और सुर्खियों में हैं. उन्नाव से सांसद साक्षी महाराज की तरफ से एक बार फिर विवादास्पद बयान आया है लेकिन, ये चौंकाता नहीं है. चौंकाने वाला इसलिए नहीं क्योंकि साक्षी महाराज की पहचान ही ऐसे बयानवीर नेता की है.

उत्तर प्रदेश चुनाव आहिस्ता-आहिस्ता अपने अंतिम पड़ाव की तरफ बढ़ रहा है लेकिन इसी दौरान साक्षी महाराज ने कहा कि, 'देश के मुसलमानों को अब दाह-संस्कार करना चाहिए. उन्हें कब्रिस्तान में दफनाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए.'


साक्षी महाराज के बयान ने सियासी बवंडर खड़ा हो गया. बवाल होना ही था. बीजेपी की विरोधी पार्टियों ने इसे लेकर हमला बोल दिया.

लेकिन, साक्षी महाराज के ताजा बयान को लेकर एक नई बहस जरूर छिड़ गई है. आखिरकार उनकी मंशा क्या है. क्या वजह है कि साक्षी महाराज बार-बार इस तरह के बयान दे रहे हैं. मतदान के अंतिम दो चरणों से पहले क्या ये ध्रुवीकरण की कोशिश तो नहीं है.

यूपी विधानसभा चुनाव के अंतिम दो चरणों में पूर्वांचल इलाके में मतदान होने हैं  (फोटो: पीटीआई)

लगता तो यही है. माहौल चुनाव का है तो बीजेपी की तरफ से अब ध्रुवीकरण की कवायद में कब्रिस्तान से लेकर कसाब तक उछाले जाने लगे हैं. साक्षी महाराज तो इस रणनीति के महज एक मोहरे भर हैं.

असली चाल तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक चल रहे हैं. सियासी बिसात पर अमित शाह ने कसाब कार्ड खेला तो पीएम मोदी ने सीधे कब्रिस्तान और श्मशान की तुलना कर चुनावी माहौल को ही गरमा दिया.

मोदी ने कब्रिस्तान की तुलना में श्मशान से भेदभाव का मुद्दा उठाकर अखिलेश को मुस्लिम परस्त ठहरा दिया. बात केवल कब्रिस्तान की ही नहीं थी, बिजली के करंट ने रग-रग में जोर का सियासी झटका दे डाला.

बसंत के माहौल में होली की बजाए बात रमजान और दिवाली की होने लगी. लेकिन, बात घूम फिर कर फिर कब्रिस्तान पर ही होने लगी है.

साक्षी महाराज के क्षेत्र में मतदान का काम पूरा हो चुका है. लेकिन, बीजेपी के सबसे बड़े भगवाधारी महाराज के इलाके में तो अब जाकर चुनाव जोर पकड़ रहा है. गोरखपुर के बाबा योगी आदित्यनाथ की वाणी तो कब्रिस्तान से शुरू होकर कब्रिस्तान पर ही खत्म होती है.

पिछड़ेपन के बजाए कब्रिस्तान का शोर

चुनाव के बाकी के दो चरणों में पूर्वांचल में मतदान होना है. लिहाजा, चुनाव के पहले रणनीति को धार दी जा रही है. लेकिन, अफसोस है कि पूर्वांचल की रणनीति के केंद्र में पिछड़ेपन की बजाए फिर वही कब्रिस्तान का शोर है. विकास का मुद्दा कहीं पीछे छूटता जा रहा है, जिसपर न तो विरोधी और न ही सत्ताधारी दल बात करना और सुनना चाहते हैं. वोटिंग से पहले केवल कब्रिस्तान-कब्रिस्तान की रट लगनी शुरू हो गई है.

चुनाव में 'यूपी के लड़के' अखिलेश यादव और राहुल गांधी की साख दांव पर लगी है (फोटो: पीटीआई)

सोशल इंजीनियरिंग के दम पर जातीय समीकरण को साधने में जुटी भगवा ब्रिगेड को फिर से हिंदुत्व का आसरा दिखने लगा है. लेकिन, अफसोस कि हिंदुत्व के नाम पर ध्रुवीकरण की कोशिश अब कब्र तक पहुंच गई है.

अब तक तो यही कहा जाता रहा है कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर गुजरता है. लेकिन, नेता इस बार के चुनाव में लखनऊ का रास्ता कब्रिस्तान से होकर गुजरता है, की बात जोर-शोर से कह रहे हैं.