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बीजेपी के बराबर सीटों पर ही लड़ेगी जेडीयू, पासवान खुश, कुशवाहा का क्या होगा ?

आखिरकार बीजेपी और जेडीयू में सीटों पर बात बन गई है. दोनों दल बिहार में लोकसभा चुनाव बराबर-बराबर सीटों पर लड़ेंगे.

Amitesh

आखिरकार बीजेपी और जेडीयू में सीटों पर बात बन गई है. दोनों दल बिहार में लोकसभा चुनाव बराबर-बराबर सीटों पर लड़ेंगे. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से दिल्ली में उनके आवास पर जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुलाकात के बाद दोनों नेताओं ने इस बात का ऐलान कर दिया.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा, ‘बिहार के लोकसभा चुनाव के लिए सभी साथियों से चर्चा चल रही थी. नीतीश कुमार से हमारी चर्चा हुई है. बिहार में जेडीयू और बीजेपी बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. 2019 के चुनाव में मोदी जी के नेतृत्व में प्रचंड बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार बनेगी. बिहार में भी NDA गठबंधन जीतेगा.’ अमित शाह ने कहा, ‘सहयोगियों को भी सम्मानजनक सीटें मिलेंगी. उपेंद्र कुशवाहा और रामविलास पासवान भी हमारे साथ रहेंगे.’


अमित शाह के बाद नीतीश कुमार ने भी इस बात पर हामी भरते हुए साफ कर दिया, ‘बिहार में गठबंधन में सीटों के बारे में समझौता हो गया है. अब दोनों ही दल बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, जबकि बाकी सीटें गठबंधन की दूसरी सहयोगी पार्टियों एलजेपी और आरएलएसपी के खाते में जाएगी.’

‘पासवान’ खुश लेकिन, ‘कुशवाहा’ का क्या होगा ?

इस ऐलान का एलजेपी ने भी स्वागत किया है. एलजेपी संसदीय बोर्ड के चेयरमैन चिराग पासवान ने कहा, ‘हम सीट बंटवारे का सम्मान करते हैं. हमें उम्मीद है कि हमें भी सम्मानजनक सीटें मिलेंगी.’ चिराग पासवान ने फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की बात दोहराई.

एलजेपी की बातों से साफ है कि वो एनडीए की तरफ से दिए जा रहे सीटों के फॉर्मूले से संतुष्ट है. सूत्रों के मुताबिक, एलजेपी को 5 या 6 सीटें दी जा सकती हैं. लेकिन, आरएलएसपी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा इस फॉर्मूले से संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं. पार्टी सूत्रों के मुताबिक, दो-तीन दिनों में बीजेपी के साथ बात के बाद ही कुशवाहा कोई भी फैसला करेंगे. बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, कुशवाहा को मात्र एक या दो सीटें दी जा सकती हैं.

हालांकि जेडीयू-बीजेपी के साथ गठबंधन के ऐलान के कुछ ही देर बाद उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार के अरवल के गेस्ट हाउस में आरजेडी नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से मुलाकात की. तेजस्वी के साथ कुशवाहा की मुलाकात को बदलते घटनाक्रम में काफी अहम माना जा रहा है. कयास फिर लगाए जा रहे हैं कि अगर कुशवाहा को सम्मानजनक सीटें नहीं मिलीं तो फिर वो एनडीए छोडने को लेकर कोई बड़ा फैसला कर सकते हैं.

आखिर कैसे बनी बात ?

अमित शाह के साथ शुक्रवार शाम मुलाकात के पहले दिन में नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की थी. उस दौरान भी बिहार में सूखा संकट पर चर्चा के साथ-साथ सीट शेयरिंग के मसले पर भी बात हुई थी. इस बात की जानकारी खुद नीतीश कुमार ने भी मीडिया से बात करते हुए दी. सूत्रों के मुताबिक, नीतीश-मोदी की मुलाकात में ही बीजेपी के साथ बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने पर सहमति हो गई थी. अमित शाह के साथ मुलाकात में बस औपचारिक तौर पर मुहर लगाकर इस बात का ऐलान कर दिया गया.

दरअसल, पिछले कुछ महीनों से सीट बंटवारे को लेकर चर्चा चल रही थी. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के पटना दौरे से पहले दोनों दलों में बिहार में बड़े भाई की भूमिका को लेकर लड़ाई चल रही थी. भले ही बीजेपी और जेडीयू के आला नेता चुप्पी साधे थे, लेकिन, उनके प्रवक्ताओं और दूसरे नेताओं की तरफ से हो रही बयानबाजी ने गठबंधन की सेहत पर बुरा असर डाला था. दोनों दलों के रिश्तों में आई कड़वाहट तब खत्म हुई जब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने जुलाई में अपने बिहार दौरे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के घर जाकर उनसे मुलाकात की.

हालांकि उस वक्त कहा गया था कि अगस्त की आखिर तक सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप दे दिया जाएगा, लेकिन, ऐसा हो न सका. ऐसा जेडीयू के अलावा एलजेपी और आरएलएसपी को भी मनाने की कोशिशों के तहत किया गया. लेकिन, ऐलान में देरी का कारण जेडीयू-बीजेपी में बातचीत नहीं हो पाना भी रहा. इसके बाद नीतीश कुमार ने जेडीयू की बिहार की कार्यकारिणी बैठक में भी कहा था कि बीजेपी के साथ बात बन गई है, जल्द ही औपचारिक ऐलान हो जाएगा.

सूत्रों के मुताबिक, नीतीश कुमार ने बीजेपी को साफ कर दिया था कि किसी भी सूरत में वो बीजेपी से एक भी सीट कम पर चुनाव नहीं लड़ेंगे. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, नीतीश कुमार किसी भी सूरत में बीजेपी के मुकाबले नंबर दो की हैसियत में बिहार के भीतर नहीं दिखना चाह रहे थे, जिसके चलते बात होने में देरी हुई. आखिरकार, बीजेपी को नीतीश कुमार की जिद के आगे झुकना पड़ा. बीजेपी को भी इस बात का एहसास है कि बिहार में भी 2014 वाली लहर नहीं है, जिसके चलते बीजेपी ने नीतीश कुमार को साथ लेकर उनकी बात मानने में ही भलाई समझी.

ऐलान में क्यों हुई देरी ?

ऐलान में देरी के पीछे सीटों के गणित का उलझा हुआ स्वरूप है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. उस वक्त बीजेपी ने रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी के साथ समझौता किया था. बीजेपी खुद 40 में से 31 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जबकि एलजेपी 7 और आरएलएसपी 3 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. बीजेपी ने बिहार में 22, एलजेपी ने 6 जबकि आरएलएसपी ने 3 सीटों पर कब्जा किया था.

उस वक्त जेडीयू को मात्र 2 सीटों पर ही जीत मिल सकी थी. जब जेडीयू और बीजेपी का फिर से गठबंधन हो गया तो फिर बीजेपी को अपनी मौजूदा जीती हुई सीटों को छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. बीजेपी अपनी जीती हुई कम-से-कम सीटों को छोड़ने के लिए तैयार हो रही थी, जबकि जेडीयू बीजेपी की जीती हुई सीटों में से कई सीटों की मांग कर बराबरी पर लड़ने की मांग कर रही थी.

जेडीयू सूत्रों के मुताबिक, अमित शाह के साथ दिल्ली में सितंबर में नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर के साथ बैठक के दौरान भी 17 सीटों की मांग की गई थी. दरअसल, जेडीयू को किसी भी हालत में बीजेपी का जूनियर पार्टनर बनना मंजूर नहीं था.

दरअसल, 2009 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो उस वक्त तक जेडीयू हर हाल में बीजेपी से आगे रहती थी. बीजेपी बिहार में नीतीश कुमार की जूनियर पार्टनर बनकर ही रहती थी. उस वक्त लोकसभा चुनाव 2009 में जेडीयू ने 25 जबकि बीजेपी ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें जेडीयू को 20 और बीजेपी को 12 सीटों पर जीत मिली थी. विधानसभा चुनाव का भी यही हाल था. लेकिन, अब दोबारा एनडीए में वापसी के बाद हालात बदल गए हैं और जेडीयू-बीजेपी बराबर–बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार हैं.

कैसी हो सकती है तस्वीर ?

सूत्रों के मुताबिक, जो तस्वीर निकलकर सामने आ रही है उसके मुताबिक, दो फॉर्मूला संभव है. पहले फॉर्मूले के मुताबिक, जेडीयू और बीजेपी 16-16 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि पांच सीटें राम विलास पासवान की पार्टी एलजेपी, दो सीटें उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी और एक सीट आरएलएसपी से अलग हुए सांसद अरुण कुमार के लिए छोड़ी जा सकती है.

लेकिन, सूत्रों के मुताबिक, एक दूसरे फॉर्मूले पर भी चर्चा हो रही है, जिसके मुताबिक, जेडीयू-बीजेपी 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और 5 सीटों पर एलजेपी चुनाव मैदान में उतरेगी. इस तरह बाकी बची हुई एक सीट उपेंद्र कुशवाहा के लिए छोड़ी जाएगी. इस सूरत में अगर उपेंद्र कुशवाहा एनडीए से अलग होते हैं तो उनकी एक सीट एलजेपी को मिल जाएगी. इस तरह सीटों का फॉर्मूला होगा जेडीयू के खाते में 17, बीजेपी के खाते में 17 और एलजेपी के खाते में 6 सीट. दो से तीन दिन के भीतर सीटों का ऐलान संभव है.