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मणिपुर में किसकी बनेगी सरकार? कांग्रेस को टक्कर देने के लिये बीजेपी तैयार

मणिपुर में पिछले 15 साल से कांग्रेस की सरकार है.

FP Staff

मणिपुर में पहाड़ी और घाटी के लोगों के ईर्द-गिर्द ही सियासत घूमती है. मणिपुर यानी रत्नों की जमीन लेकिन यहां जाति और जमीन की जंग छिड़ी हुई है.

राज्य में नगा और कूकी समुदाय के बीच पुराना संघर्ष है. दोनों समुदायों के बीच हुई हिंसा में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं. अब जिले का विभाजन मणिपुर के लोगों और सरकार के गले की हड्डी बन चुका है.


दरअसल मणिपुर के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी मैतई समुदाय से आते हैं. मणिपुर की कुल जनसंख्या में 63 प्रतिशत लोग मैतई समुदाय से हैं. ऐसे में साफ है कि राज्य की राजनीति में मैतई समुदाय का वर्चस्व ही पहाड़ और घाटी के बीच बढ़ती दूरियों की एक बड़ी वजह भी है.

मणिपुर में पिछले 15 साल से कांग्रेस की सरकार है. ओकराब इबोबा सरकार हमेशा से ही मैतई बहुल घाटी को लेकर सरकार की नीतियों को आगे बढ़ाते हैं जिस वजह से पहाड़ और घाटी के लोगों के बीच तनाव में इजाफा हुआ है.

बीजेपी की कोशिश है कि वो कांग्रेस के खिलाफ पैदा हुए एंटी इंकंबेंसी का फायदा उठाए.

मणिपुर में कुल 60 विधानसभा सीटों में से 40 सीटें घाटी में हैं. जबकि पहाड़ पर विधानसभा की 20 सीटें हैं.

यही एक बड़ी सियासी वजह है कि इबोबा सरकार हमेशा घाटी के फायदे में राजनीति देखते हैं. इबोबा सरकार को नगा बहुल वाले पहाड़ी जिलों का बंटवारा कर दो नए जिले बनाए गए है. राज्य की इबोबी सरकार इसी फैसले के दम पर चुनाव जीतने का सपना देखर ही है. लेकिन वर्तमान हालात हिंसा से घिरे हुए हैं.

साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 42 सीटें जीतकर विपक्ष को हाशिये पर धकेल दिया था लेकिन इस बार बीजेपी को उम्मीद है कि वो सत्ताधारी कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे सकती है.

बीजेपी ने उत्तर-पूर्वी राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ करने के लिये नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस का गठन किया है . हालांकि राज्य में हुई आर्थिक नाकाबंदी बीजेपी के लिये मुश्किल खड़ी कर सकती है.