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पीएम की तस्वीर पर जूते चलवाने वाले जलील मस्तान पुराने 'खिलाड़ी' हैं

पीएम मोदी की तस्वीर के अपमान से नाराज बीजेपी मस्तान की मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी के लिए बिहार भर में रैलियां निकाल रही है

Kanhaiya Bhelari

बिहार के आबकारी मंत्री अब्दुल जलील मस्तान को बिहार के बाहर ज्यादातर लोगों ने तब पहचानना शुरू किया जब टेलीविजन पर उनकी एक क्लिप चलने लगी. वीडियो क्लिप में वो जनता से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले को जूते मारने की बात कहते दिखे. लेकिन इन दिनों जब आप उनसे इस बारे में बात करें तो वो बड़ी मासूमियत से कहते हैं, ‘मेरे को समझे में नहीं आता है कि टेलीविजन वाले कैसे मेरे मुंह में इन दो शब्दों को डाल दिए.’

पूरे बिहार में बीजेपी जहां उनको नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल से निकाल बाहर करने के लिए रैलियां निकाल रही है. वहीं, दूसरी तरफ मस्तान कहते हैं कि यह पूरा बवाल उनकी समझ से बाहर है. मस्तान कहते हैं कि, ‘हां, ये बात सही है कि सभा में शरीक कुछ लोगों ने कुर्सी पर नरेंद्र मोदी की फोटो रखकर उसे जूतों से पीटा.’


मस्तान का दावा है कि वो अगर लोगो को रोकने की कोशिश करते तो वो उन्हें भी ‘मजा चखा देते’.

वैसे विवादों का मस्तान से बड़ा पुराना नाता है. अब्दुल जलील मस्तान ने 2015 में चुनाव आयोग को जो शपथपत्र दिया है उसमें उनकी उम्र 57 साल दर्ज है. वहीं, शपथपत्र कहता है कि मस्तान ने 1963 में मैट्रिक की परीक्षा पास की है.

मतलब मस्तान ने 3 वर्ष की आयु मे ही 10वीं की परीक्षा पास कर ली. इस बारे में सवाल करने पर मस्तान झिड़क कर कहते हैं ‘चुनाव आयोग को दिए गए शपथपत्र में मेरे द्वारा कुछ गलत सूचना दे दी गई है, उस पर और मेरे निजी जिंदगी में ताक-झांक न करें तो बेहतर होगा.’

बिहार में मंत्री अब्दुल जलील मस्तान का विवादों से पुराना नाता रहा है (फोटो: फेसबुक से साभार)

साल 2010 में मस्तान को चुनाव में हराने वाले सबा जफ़र कहते हैं ‘पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार रौटा थाना क्षेत्र के पटगांव में एक संपन्न किसान के यहां डकैती हुई थी जिसमें मस्तान नामजद अभियुक्त थे'.

मुकदमे से पीछा छुड़ाने राजनीति में आए

जफर आरोप लगाते हैं कि, मस्तान इसी मुकदमे से पीछा छुड़ाने के लिए एक स्थानीय वकील की सलाह पर राजनीति में आ गए.'

बाद में मस्तान इस मुकदमे से बरी हो गए. दूसरी तरफ मस्तान दावा करते हैं कि उनके इलाके में 1990 से अभी तक एक भी डकैती की वारदात नहीं हुई है और तो और वो कहते हैं कि लोगों की सुरक्षा के लिए वो 10 हजार जवानों का एक सामानांतर सुरक्षा दल चलाते थे.

चाहे विरोधी हो या समर्थक सब मानते हैं कि मस्तान मिजाज से मस्त नेता हैं. कब, कहां और क्या बोल देगें ये समझना बड़ा कठिन है.

मस्तान सामंती मानसिकता से प्रभावित पूर्णिया जिले के अमौर विधानसभा से पहली बार 1985 में निर्दलीय विधायक बने. 1990 में हुए चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में वो शामिल हो गए. भागलपुर दंगों से बुरी तरह घायल कांग्रेस की चुनाव में हार हुई लेकिन मस्तान ने जीत कर सबको चौंका दिया.

1995 में हुए विधानसभा चुनाव में वो हार गए लेकिन फिर 2000 का चुनाव जीत गए. जीतने के बाद राबड़ी देवी के मंत्रिमंडल में उन्हें बतौर राज्यमंत्री शामिल होने का न्योता मिला जिसे मस्तान ने मना कर दिया. राज्यमंत्री का पद उन्हें अपने खिलाफ साजिश लगा. मस्तान 2005 का चुनाव जीते लेकिन फिर 2010 में उनकी हार हुई.

पीएम को डकैत और उग्रवादी कहा

पिछले 22 फरवरी को अपने विधानसभा क्षेत्र अमौर में मुख्य अतिथि के तौर पर एक सभा को संबोधित करते हुए मस्तान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डकैत और उग्रवादी तक कह डाला. अपने सर्मथकों से सरेआम पीएम के फोटो पर जूते पड़वाए. यह सबकुछ तब हुआ तब राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों के चलते आदर्श आचार संहिता लागू थी.

मस्तान ने जब कथित रूप से जब यह विवादित भाषण दिया तो उस वक्त मंच पर कई सरकारी अधिकारी मौजूद थे. मस्तान के बेतुके बयान के चलते इन अधिकारियों की जान सांसत में पड़ गई है.

पूर्णिया के डीएम पंकज कुमार पाल ने फोन पर गुस्से में कहा, ‘मुझे नहीं पता कि अाचार संहिता लागू थी या नहीं. ये एक राजनीतिक सवाल है.’ जबकि अमौर ब्लॉक के बीडीओ ने कंर्फम किया कि आचार संहिता लागू था और सीओ साहब उस सभा में तैनात थे.