view all

केजरीवाल की सियासत का स्टाइल बीजेपी ने अपनाया, सकते में आई AAP की दिल्ली सरकार

जिस तरह से दिल्ली की पूर्व की शीला सरकार के खिलाफ अरविंद केजरीवाल ने हल्ला-बोल छेड़ते हुए सुर्खियों से सत्ता तक जगह बनाई अब उसी तर्ज और तरीकों को हथियार बना कर बीजेपी भी अरविंद केजरीवाल सरकार पर हमला बोल रही है.

Kinshuk Praval

दिल्ली में सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन समारोह में आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतउल्लाह खान जिस तरह से दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी को स्टेज से धक्का देते  हैं उसे पूरी दिल्ली देखती है. सार्वजनिक रूप से आप के विधायक का आचरण उस धुंधलाई तस्वीर की भी याद ताजा कर देता है कि सीएम निवास में रात के पहर में मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ क्या हुआ होगा? मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट प्रकरण में भी अमानतउल्लाह खान मुख्य भूमिका में थे तो इस बार भी लीड रोल उन्हें ही मिला.

अब अमानतउल्लाह खान ये सफाई दे रहे हैं कि अगर वो मनोज तिवारी को नहीं रोकते तो वो केजरीवाल पर हमला कर सकते थे. आखिर केजरीवाल स्टेज पर ऐसा क्या बोलने वाले थे जिस पर उन्हें मनोज तिवारी के हमले का डर था? बड़ा सवाल ये उठता है कि अबतक किसी से न डरने वाले सीएम केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को अचानक बीजेपी से डर क्यों लगने लगा?


सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन में मनोज तिवारी की एन्ट्री को लेकर आम आदमी पार्टी इतनी असहज क्यों हो गई कि उसने स्टेज से उतारने के लिए धक्का तक दे दिया?

मनोज तिवारी उत्तर-पूर्वी दिल्ली से सांसद हैं. उन्होंने सिग्नेचर ब्रिज के निर्माण में हो रही देरी के लिए छह महीने पहले राज्यपाल को ज्ञापन भी सौंपा था. वहीं उत्तर-पूर्वी दिल्ली में विकास न होने की वजह से अनशन तक किया था. जाहिर तौर पर इलाके का सांसद होने की वजह से उनके पास निमंत्रण पाने का औपचारिक अधिकार था. खुद सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी कहा कि डिप्टी सीएम मनीश सिसोदिया ने मनोज तिवारी को समारोह में शामिल होने के लिए न्योता दिया था. लेकिन क्या इस बात की भी सार्वजनिक जानकारी मनोज तिवारी को दी गई थी कि उन्हें स्टेज पर धक्का भी दिया जाएगा ?

दरअसल, बीजेपी ने जब से आम आदमी पार्टी को केजरीवाल की पॉलिटिक्स की स्टाइल से काउन्टर करना शुरू किया है तब से ही आप की बेचैनी बढ़ती दिख रही है. जिस तरह से दिल्ली में पूर्व की शीला दीक्षित सरकार के खिलाफ अरविंद केजरीवाल ने हल्ला-बोल छेड़ते हुए सुर्खियों से सत्ता तक जगह बनाई अब उसी तर्ज और तरीकों को हथियार बना कर बीजेपी भी अरविंद केजरीवाल सरकार पर हमला बोल रही है. अब बीजेपी भी दिल्ली सरकार के खिलाफ आमरण अनशन,धरना और  विरोध प्रदर्शन के जरिए 'आप' का चैन छीन रही है.

आज से पांच महीने पहले दिल्ली के उपराज्यपाल के दफ्तर में सीएम अरविंद केजरीवाल अपने तीन मंत्रियों के साथ धरने पर बैठ गए थे. 9 दिनों तक दिल्ली सरकार ने कोई कामकाज नहीं किया क्योंकि खुद मुख्यमंत्री ही धरने पर बैठे थे. केजरीवाल इससे पहले भी बतौर मुख्यमंत्री धरने पर बैठ चुके हैं और जब वो सीएम नहीं बने थे तब भी वो 'मफलर मैन' के साथ 'धरना मैन' बन चुके थे. उनके आक्रमक और अप्रत्याशित रवैये की ही वजह से उन पर अराजकता फैलाने तक का आरोप लगा.

लेकिन अपने सियासी कद को बढ़ाने के लिए केजरीवाल हर  रिस्क उठाने लगे थे और यही उनकी और पार्टी का स्टाइल भी बन गया. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ ताल ठोंकते हुए वो गुजरात के विकास की ग्राउन्ड-रिपोर्ट बताने अहमदाबाद भी चले गए. वहां जब विरोध का सामना करना पड़ा तो आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में बीजेपी के दफ्तर का घेराव किया और पत्थरबाजी की. आम आदमी पार्टी के अतीत से ही सबक सीखते हुए बीजेपी भी अब उसी स्टाइल में आक्रमक हो चुकी है.यही वजह रही कि सिग्नेचर ब्रिज विवाद के जरिए बीजेपी ने आम आदमी पार्टी को उसी के अंदाज में जवाब देने की कोशिश की.

सीलिंग के मुद्दे पर भी बीजेपी दिल्ली सरकार को निशाना बनाने में नहीं चूकी है. एक वक्त खुद केजरीवाल सीलिंग के मुद्दे पर शीला दीक्षित सरकार पर निशाना साधते थे. उसी अंदाज में मनोज तिवारी ने सीलिंग के खिलाफ अपने अभियान में दिल्ली सरकार पर हमले किये. यहां तक कि जब अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को खुली बहस की चुनौती दी तो मनोज तिवारी ने अरविंद केजरीवाल को ही खुली बहस की चुनौती देकर समय और स्थान निश्चित करने को कहा. जाहिर तौर पर केजरीवाल अगर बहस करना भी चाहेंगे तो वो बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व पर ही निशाना लगाएंगे. लेकिन बीजेपी ने केजरीवाल की स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स सीखते हुए केजरीवाल को मनोज तिवारी तक सीमित कर दिया है. अब केजरीवाल के किसी भी आरोप या हमले का जवाब देने के लिए बीजेपी के पास मनोज तिवारी हैं.

बीजेपी ने जहां एक तरफ आप को उलझाए रखने के लिए लगातार धरना-प्रदर्शनों का इस्तेमाल किया तो वहीं दूसरी तरफ केजरीवाल से जुबानी जंग के लिए मनोज तिवारी को सेनापति बना कर केजरीवाल के सियासी कद को सीमित कर दिया. हालांकि हाथ आए किसी भी मौके पर केजरीवाल चूकते भी नहीं हैं. दिल्ली में रन फॉर यूनिटी के दौरान बीजेपी के पूर्वांचली नेता पर हुए हमले पर वो बीजेपी के खिलाफ ट्वीट करते हैं तो दिल्ली में किसान यात्रा को रोके जाने का विरोध भी करते हैं. वहीं दिल्ली के प्रदूषण को लेकर भी केंद्र सरकार पर हमला करते हैं. वो ये जरूर जानते हैं कि केंद्र सरकार से जुड़े किसी भी मामले में कूद कर सुर्खियां बटोरी जा सकती हैं.

बहरहाल, जिस तरह से केजरीवाल ने एलजी के दफ्तर को धरना-प्रदर्शन के लिए चुना उसी तरह बीजेपी ने भी सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन के मौके पर अपनी उपस्थिति दर्ज तो करा दी. जिस पर अब आम आदमी पार्टी ही मनोज तिवारी पर अराजकता फैलाने का आरोप लगा रही है. सवाल उठता है कि अगर क्षेत्र के सांसद का अपने इलाके में होने वाले विकास के उद्घाटन समारोह में जाना अगर अराजकता है तो एलजी दफ्तर में कई दिनों तक धरने पर बैठना क्या है?