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राजस्थान: मंदिर की राजनीति करने वाली बीजेपी के लिए हालात इस बार मुश्किल

2013 में बीजेपी की सरकार बनी तो जयपुर में कई मंदिरों को हटाया गया. अब लोग कह रहे हैं कि इसका असर विधानसभा चुनाव में पड़ेगा

Vijai Trivedi

कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी इस हफ्ते गुरुवार को सपरिवार और दल-बल सहित राजस्थान के पुष्कर पहुंचे थे. पुष्कर को सतयुग का तीर्थस्थल माना जाता है, यहां ब्रहा का मंदिर है और पवित्र सरोवर है. बताया जाता है कि कुमारस्वामी ने वहां सपरिवार वृहस्पति देव की विशेष पूजा की. उन्हें ज्योतिषियों ने सलाह दी थी कि उन पर बृहस्पति ग्रह का कुछ प्रकोप है, जिस वजह से राजनीतिक संकट अभी पूरी तरह से टला नहीं है. इसलिए विशेष पूजा का आयोजन किया गया.

इस पूजा के आयोजन के लिए दिल्ली से एक विद्वान ज्योतिष ज्ञाता और ब्राह्मण प्रोफेसर भी दिल्ली से अजमेर होते हुए पुष्कर पहुंचे थे. कहा जाता है कि ये विद्वान ज्योतिषी वहीं हैं, जिन्होंनें एक जमाने में कुमारस्वामी के पिता एचडी देवेगौड़ा की जन्म कुंडली देखकर उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावना जताई थी और तब से उनका परिवार इन से विशेष लगाव रखता है. घर के कई सदस्य उनके शिष्य भी हैं.


खैर, कुमारस्वामी की यह विशेष पूजा व्यक्तिगत और पारिवारिक समारोह था, जिसे सार्वजनिक भी नहीं किया गया, तो इसमें भला किसी को क्या आपत्ति हो सकती है. जिस वक्त कुमारस्वामी विशेष पूजा कर रहे थे, करीब उसी वक्त राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पुष्कर सरोवर में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थियों का विसर्जन कर रही थीं. यह मसला भी आस्था का हो सकता है लेकिन बहुत से लोगों ने कहा कि चुनाव करीब आ रहे हैं हैं इसलिए अब वाजपेयी जी की अस्थियों के बहाने भावनाओं को उकसाया जा रहा है.

पूरे साल राजस्थान के मंदिरों में चलते हैं कार्यक्रम

वैसे राजस्थान को आमतौर पर मंदिरों का प्रदेश कहा जाता है, यहां शायद ही कोई शहर कस्बा हो जहां कोई मशहूर, स्थापित और प्राचीन मंदिर नहीं हो, और शहर की बात छोड़िए, कोई रास्ता या मोहल्ला नहीं मिलेगा जहां कोई मंदिर नहीं हो. इसके साथ ही इन मंदिरों में साल भर कोई ना कोई उत्सव चलता रहता है, उनमें भी राजनेताओं की खासी भागीदारी होती है. चाहे फिर वो रामलीला या रासलीला हो. श्रावण मास में पूरे महीने मंदिरों में विशेष झूला झांकियों का आयोजन किया जाता है. इस दौरान मंदिरों में देव झूले पर विराजते हैं.

इसी तरह होली के करीब सभी मंदिरों में फाग उत्सव होते हैं तो सर्दियों में पौष के महीने में पौष बड़े का आयोजन होता है. इसमें रात भर मंदिरों में भजनों के साथ गर्मा-गर्म दाल बड़े यानी पकौड़े प्रसाद के रूप में वितरित किए जाते हैं. कार्तिक मास में तो शायद ही कोई मंदिर हो जहां विशेष पूजा, झांकियां नहीं होती हो और फिर नवरात्रों में देवी मंदिर सजे रहते हैं. इन कार्यक्रमों में स्थानीय राजनेता शामिल तो होते ही हैं साथ में वे आयोजक भी होते हैं.

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अभी तक बीजेपी इस पर अपना एकाधिकार मानती थी, लेकिन अब कांग्रेस के स्थानीय नेता भी धीरे-धीरे सॉफ्ट हिंदूत्व के लिए इनमें शामिल होने लगे हैं. जयपुर का गोविंद देव जी मंदिर हो या मोती डूंगरी का गणेश मंदिर. दिल्ली हाईवे बाईपास पर बना खोले के हनुमान जी का मंदिर हो, नाथद्वारा के श्रीनाथ जी का मंदिर हो, खाटूश्याम जी, मेहंदीपुर बालाजी हो, रणथम्भौर का गणेश मंदिर, आमेर का शिलादेवी मंदिर, जोधपुर में तो रावण की पत्नी मंदोदरी का मंदिर भी है. मेड़ता कस्बे में मीरा का प्रसिद्ध मंदिर है. राज्य में दर्जनों बड़े मंदिर हैं.

जयपुर के इस मंदिर के विकास में वसुंधरा राजे की रही है अहम भूमिका

जयपुर के खोले के हनुमान मंदिर के विकास में तो वसुंधरा राजे की अहम भूमिका बताई जाती हैं जहां साल भर सवामणि प्रसाद के भोग चलते हैं और हर दिन हज़ारों लोग प्रसाद लेते हैं. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस बार भी अपनी गौरव यात्रा की शुरुआत मंदिर में पूजा करके ही की. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी इस बार जब जयपुर पहुंचे थे तो वे गोविंद देव मंदिर में दर्शन करने गए.

जयपुर के कई बार सांसद रहे गिरधारी लाल भार्गव की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण यह भी था कि वे किसी भी ऐसे सार्वजनिक कार्यक्रम में शरीक हुए बिना नहीं रहते थे. फिर उन्होंनें एक अभिनव प्रयोग तब किया जब वे पहली बार सांसद बने. इससे पहले भार्गव कई बार विधायक और उससे पहले पार्षद भी रह चुके थे. भार्गव की लोकप्रियता इतनी रही कि राजस्थान के सबसे बड़े नेता भैरोंसिंह शेखावत उनसे नाराज रहते थे, लेकिन वे कभी उनका टिकट नहीं काट पाए और उनके निधन के बाद ही कांग्रेस वहां अपना सांसद बना पाई.

भार्गव सवेरे अखबार में निधन के बाद होने वाली तीसरे दिन की बैठक की खबर पढ़ते थे और शाम को अपना स्कूटर लेकर निकल जाते और हर बैठक में शामिल होते चाहे वो किसी भी धर्म या राजनीतिक दल का व्यक्ति हो और रात को वे जयपुर के शादी समारोहों में शामिल होते.

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जयपुर से सबसे बड़े श्मशान गृह में बरसों से अनजान लोगों की अस्थियां पड़ी रहती हैं जिन्हें कोई लेकर नहीं जाता और वो हजारों लोगों की अस्थियां थीं. गिरधारी लाल भार्गव जब पहली बार सांसद बने तों उन्होंनें इन अस्थियों को हरिद्वार में प्रवाहित करने का फैसला किया और वे शनिवार की रात राजस्थान रोडवेज की बस में बैठकर सवेरे दिल्ली पहुंचते. उनके साथ एक बोरी भर कर अस्थियां होतीं, वे पूजा अर्चना कर उन अस्थियों को प्रवाहित करते रहे.

मंदिर की राजनीति करने वाली बीजेपी इस बार मुश्किल में

बात हो रही थी मंदिरों और राजनीति की, तो बीजेपी को मंदिरों के करीब माना जाता रहा, वसुंधरा राजे भी हमेशा ही पूजा अर्चना में लगी रहती हैं, लेकिन इस बार थोड़ी मुश्किल हो गई है. इस बार जब 2013 में बीजेपी की सरकार बनी तो वसुंधरा राजे ने जयपुर में ऐसे मंदिरों को हटाने का फैसला किया जिनसे रास्तों में यातायात में अड़चन आती थी या अतिक्रमण माना जाता था. फिर जब वहां मेट्रो का काम चल रहा था तो कई मंदिरों को हटाने का निर्णय करना पड़ा, इससे शहर में उनको लेकर नाराज़गी बढ़ने लगी. एक धरोहर बचाओ समिति बन गई, जिसे इस फैसले के खिलाफ लगातार धरने प्रदर्शन भी किए, लेकिन मंदिरों को हटाने का काम नहीं रुका.

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धरोहर समिति के संरक्षक भारत शर्मा बताते हैं कि जयपुर शहर में कुल 132 मंदिर मौजूदा सरकार ने अपने स्थान से हटाए हैं, इनमें से 18 मंदिर मेट्रो निर्माण के लिए हटाए गए हैं. कुछ मंदिरों को सड़क से हटाकर फिर से बनाया गया लेकिन बहुत से मंदिरों से प्राचीन मूर्तियां गायब हो गईं. कुछ मजारों को भी हटाना पड़ा. भारत शर्मा चेतावनी देते हुए कहते हैं कि जयपुर में इस बार के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को इस नाराजगी का सामना करना पड़ेगा क्योंकि जयपुर में सांसद भी बीजेपी के हैं और ज्यादातर विधायक भी.

तस्वीर: कालीचरण सराफ के फेसबुक से

जयपुर शहर के एक प्रमुख चौराहे पर एक शिव मंदिर है, इसका नाम है रोजगारेश्वर महादेव मंदिर, यह मंदिर त्रिपोलिया बाजार जाने वाली सड़क के बीचों बीच बना हुआ है, छोटी चौपड़ पर. इस मंदिर को तमाम विरोधों के बावजूद मेट्रो निर्माण की वजह से हटाना पड़ा था, लेकिन बाद में कुछ लोगों ने इस बात का माहौल बनाया कि यह रोजगारेश्वर मंदिर है, इसको हटाया है तो बीजेपी का रोजगार इन चुनावों में चला जाएगा यानी पार्टी हार जाएगी. वजह की जानकारी तो मुझे नहीं है, लेकिन रोजगारेश्वर मंदिर का निर्माण फिर से ठीक उसी स्थान पर शुरू हो गया है और अगले तीन महीने में पुराने से बेहतर मंदिर बन जाएगा, यानी राजस्थान के विधानसभा चुनावों से पहले. श्रावण में राजस्थान में अभी हर-हर महादेव की गूंज सुनाई दे रही है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)