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राम की शरण में पहुंचा विकास का नारा

मोदी अपने ही विकास के नारे को नजरअंदाज कर राम नाम का सहारा क्यों लेना चाहते हैं?

Krishna Kant

दो साल पहले गुजरात से चला विकास का नारा उत्तर प्रदेश में ढेर हो गया. दशहरे पर लखनऊ लखनउ पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन की शुरुआत जय श्रीराम के जयघोष के साथ की.

उनके इस चुनावी जयघोष के बाद भाजपा और संघ की भगवा बिग्रेड सक्रिय हो गई है. भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने राम मंदिर बनवाने की मांग कर डाली.


मसला यहीं नहीं रुका. केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा रामायण म्यूजियम बनवाने के लिए जमीन देखने अयोध्या पहुंच गए.

उमा भारती और विनय कटियार ने राम मंदिर निर्माण के लिए लोकसभा में कानून पास किए जाने की मांग कर डाली.

रामायण म्यूजियम के बहाने महेश शर्मा ने भाजपा के राजनीतिक मंसूबे का शिलान्यास कर दिया है. क्या भाजपा को लगता है कि वह बिना राम का नाम लिए चुनावी वैतरणी पार नहीं कर पाएगी?

अगर ऐसा नहीं है तो नरेंद्र मोदी अपने ही विकास के नारे को नजरअंदाज करके राम नाम का सहारा क्यों लेना चाहते हैं?

सपा और कांग्रेस जैसी पार्टियां भी अपने मुखौटे के भीतर से ही हिंदूवादी दिखने का प्रयास करती रहती हैं.

उत्तर प्रदेश में चुनाव का मौसम आने वाला है. ऐसे में वोट पाने का सबसे लुभावना नारा है कि राम मंदिर बनवाएंगे.

सपा पांच साल शासन कर चुकी है. उसके हिस्से में कुख्यात गुंडाराज और अनगिनत दंगों का कलंक है. इसलिए सपा सरकार को रामायण थीम पार्क बनवाने की याद आ गई.

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने कुछ समय पहले अखिलेश सरकार का रिपोर्ट कार्ड जारी किया था.

रिपोर्ट के मुताबिक, सपा सरकार के चार साल के शासन में 637 दंगे हुए. एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली महुली ने आरोप लगाया था कि सपा सरकार दंगाइयों की सरकार है.

हाल ही में बसपा प्रमुख मायावती ने सहारनपुर में रैली की तो उन्होंने इसी तरह का आरोप दोहराया कि सपा सरकार के कार्यकाल में सर्वाधिक दंगे हुए. सपा और भाजपा मिलकर चुनाव से पहले भी दंगा कराना चाह रही हैं.

रामायण म्यूजियम के मामले पर मायावती का कहना है कि अयोध्या का विकास तो ठीक है, लेकिन ठीक चुनाव के वक्त भाजपा को रामायण संग्रहालय, राम मंदिर और सपा को रामायण थीम पार्क की याद क्यों आने लगी?

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने लाल किले से आह्वान किया था कि हिंदू-मुसलमान के झगड़ों को स्थगित करके विकास पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

शायद प्रधानमंत्री को लगा होगा कि अब विकास का काम हो चुका है इसलिए वे जय श्रीराम के नारे पर लौट आए.

नरेंद्र तब से सिर्फ विकास की बात करते दिखते हैं, जब से वे प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के साथ चुनाव प्रचार कर रहे थे.

मोदी तब से बार-बार दोहराते रहे हैं कि जाति-धर्म के झगड़ों को परे रखकर पहले सभी समुदायों के विकास पर ध्यान देना चाहिए.

जब वे ऐसा कहते हैं तो यह सुनकर बेहद अच्छा लगता है. एक उम्मीद जागती है कि शायद भारतीय राजनीति के दिन बहुरने वाले हैं.

लेकिन उनकी पार्टी और सहयोगी संगठन बार-बार यह साबित करते हैं कि विकास का लुभावना नारा चुनावी जुमला भर है. धार्मिक भावनाओं से जुड़े मसले भाजपा की जान हैं.

क्या नरेंद्र मोदी जिस विकास की बात करके देश को आगे ले जाना चाह रहे थे, वह उद्देश्य पूरा हो चुका है? या फिर विकास के नारे ने धर्म की राजनीतिक मजबूरी के आगे हथियार डाल दिए हैं?

केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा के म्यूजियम के लिए जमीन देखने अयोध्या पहुंचे तो कहा कि 'मन बन चुका है, माहौल बन चुका है.'

'शुरुआत हो चुकी है और हमें रामलला का आदेश प्राप्त हो चुका है. हम भगवान के बच्चे हैं, लिहाजा हमें शिक्षा फैलाने का उनका काम करना है.'

महेश शर्मा ने को आदेश देने वाले रामलला मोहन भागवत हैं या नरेंद्र मोदी, यह अभी ठीक-ठीक नहीं पता. लेकिन यह तय है कि राम नाम की राजनीति ही भाजपा का अंतिम सहारा है.

राम मंदिर ब्रिगेड के सक्रिय सिपाही विनय कटियार कह रहे हैं कि राम मंदिर बनाने की कोशिश होनी चाहिए, सिर्फ लॉलीपॉप देने से कुछ नहीं होगा.

विनय कटियार ने अयोध्या में महेश शर्मा के कार्यक्रम का बहिष्कार किया. उनका कहना था कि अगर वे वहां पहुंचे तो संत उनसे राम मंदिर को लेकर सवाल करेंगे.

भाजपा विरोधियों ने आरोप लगाया कि भाजपा को चुनावी मौसम में ही राम याद आते हैं. वे सिर्फ राम के नाम की राजनीति करते हैं.

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने इसके जवाब में कहा कि 'राम की याद चुनाव के लिए ही नहीं आती, हम राम भक्त को रामलला के मंदिर बनने का इंतजार है.'

सपा सरकार ने पांच साल के कार्यकाल में मुस्लिमों के लिए सिर्फ एक काम किया है, कब्रिस्तान की दीवारें पक्की करवा दी हैं. उसे लगता है कि मुसलमानों का विकास हो गया.

इसी तरह भाजपा का ख्वाब है कि अयोध्या में राम मंदिर बन जाए. इसके बाद हिंदू सबसे विकसित प्राणी होंगे.

जनता से कौन पूछता है कि उसे क्या चाहिए? जो उत्तर प्रदेश आंकड़ों में कई पिछड़े देशों और प्रदेशों से बदतर हालत में है, वहां पर उसके विकास की बात कौन करेगा?

क्या उत्तर प्रदेश में रोजी, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जरूरतें पूरी हो चुकी हैं? मुझे तो ऐसा लगता है कि 2017 का चुनाव उत्तर प्रदेश को दो दशक और पीछे ले जाएगा.