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जन्मदिन विशेष मायावती: संघर्षों से भरा रहा है स्कूल टीचर से मुख्यमंत्री बनने तक का सफर

बीएसपी प्रमुख मायावती के जन्मदिन को उनके समर्थक और पार्टी कार्यकर्ता हर वर्ष की तरह इस बार भी लखनऊ से लेकर दिल्ली तक धूमधाम और पूरे उत्साह से मना रहे हैं

FP Staff

बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की प्रमुख मायावती का आज यानी मंगलवार को 63वां जन्मदिन है. बहनजी के नाम से जाने जानी वाली मायावती के जन्मदिन को पार्टी के नेता और कार्यकर्ता लखनऊ और दिल्ली दोनों जगहों पर बड़े पैमाने पर मना रहे हैं.

उत्तर प्रदेश की चार बार की मुख्यमंत्री रहीं मायावती के जन्मदिन पर लखनऊ में बीएसपी कार्यकर्ताओं ने कई जगहों पर उन्हं बधाईयों के संदेश वाले होर्डिंग और पोस्टर लगाए हैं. बहनजी का जन्मदिन बीएसपी कार्यकर्ताओं के लिए उत्सव की तरह होता है. जबकि इस अवसर पर उनके करोड़ों के नोटों की माला पहनने और फिजूलखर्ची के प्रदर्शन को लेकर उनके विरोधी आलोचना करते हैं. पूर्व में मायावती को उनके समर्थक और कार्यकर्ता जन्मदिन पर करोड़ों के नोटों की माला गूंथकर पहनाते रहे हैं.


हर वर्ष 15 जनवरी को मायावती का जन्मदिन हर साल 'जन कल्याणकारी दिवस' के तौर पर मनाया जाता है. बीएसपी सुप्रीमो अपने जन्मदिन के दिन सामान्य रूप से पार्टी कार्यालय में प्रदेश पदाधिकारियों और लखनऊ मंडल के पदाधिकारियों से मिलती हैं.

इस साल लखनऊ में सुबह पार्टी कार्यालय में उनका जन्मदिन मनाया जाएगा. इसके बाद मायावती दोपहर बाद दिल्ली चली जाएंगी. यहां उनके जन्मदिन समारोह में सहयोगी दलों के नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है.

मायावती के अपने जन्मदिन के अवसर पर करोड़ों के नोटों की गूंथी हुई माला पहनने को लेकर काफी आलोचना होती है (फोटो: फेसबुक से साभार)

शनिवार को लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस में एसपी-बीएसपी गठबंधन की घोषणा होने के बाद अब कयास लग रहे हैं कि मायावती अपने जन्मदिन के अवसर पर सीटों के बंटवारे का ऐलान कर सकती हैं.

सरकारी स्कूल में टीचर बनने से लेकर मुख्यमंत्री बनने का सफर

मायावती का जन्म 15 जनवरी, 1956 में दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल में हुआ था. उनके पिता प्रभुदास पोस्ट ऑफिस में क्लर्क और मां रामरती गृहणी थीं. मायावती के छह भाई और दो बहनें हैं. दिल्ली के इंद्रपुरी इलाके में मकान के दो कमरों के छोटे से घर में उनका पूरा परिवार रहता था. यहीं पल-बढ़कर मायावती बड़ी हुईं. मायावती की मां अनपढ़ थीं लेकिन वो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहती थीं.

इंद्रपुरी इलाके के प्रतिभा विधालय में मायावती की शुरुआती पढ़ाई हुई. बचपन से ही उका सपना कलेक्टर बनने का था. बी.एड करने के बाद वो प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने लगीं. संघर्षों से भरे इस समय में वो दिन में बच्चों को पढ़ातीं थीं और रातभर खुद पढ़ती थीं. वर्ष 1977 में आर्थिक हालात की वजह से वो एक स्कूल टीचर बन गईं. इस दौरान उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी भी की.

मायावती और अखिलेश यादव ने पिछले दिनों लखनऊ में साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर 2019 चुनाव साथ लड़ने की घोषणा की

मायावती के शुरुआती संघर्षों का अंत तब हुआ जब उन्होंने कांशीराम की राह चुनी. मायावती आज जो भी हैं उसमें काफी हद तक कांशीराम का हाथ है. 1980 के दशक की बात है, कांशीराम को जब मायावती के प्रतिभा के बारे में पता चला तो वो सीधे उनके घर उनसे मिलने पहुंचे. तब दोनों के बीच बातचीत में कांशीराम को पता चला कि मायावती का सपना कलेक्टर बनकर अपने समाज के लोगों की सेवा करना है. इस पर उन्होंने मायावती से कहा कि मैं तुम्हें मुख्यमंत्री बनाऊंगा. तब तुम्हारे पीछे एक नहीं कई कलेक्टर फाइल लिए तुम्हारे आदेश का इंतजार करेंगे.

कांशीराम ने 14 अप्रैल, 1984 को बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की नींव रखी. मायावती ने अपनी स्कूल टीचर की नौकरी छोड़ दी और बीएसपी में शामिल हो गईं. कांशीराम ने सबसे पहला दांव पंजाब में खेला और उसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश की राह पकड़ी. वो दरअसल समझ चुके थे कि यूपी में एसटी/एससी प्रत्याशियों की संख्या ज्यादा है. इसके बाद उन्होंने राज्य में बीएसपी की राजनीतिक जमीन तैयार की. हालांकि पार्टी गठन के पांच वर्षों में धीरे-धीरे वोट बैंक तो बढ़ा, लेकिन कोई अहम सफलता नहीं मिली.

साल 1989 में मायावती ने बिजनौर संसदीय सीट से जीत दर्ज की. मायावती के इस जीत ने बीएसपी के लिए संसद के दरवाजे खोल दिए. 1989 के आम चुनाव में बीएसपी को तीन सीटें मिली थी. पार्टी को उत्तर प्रदेश में 10 और पंजाब में 8.62 प्रतिशत वोट मिले. बीएसपी का कद अब बढ़ रहा था. अब वो एक राजनीतिक पार्टी बनकर उभर रही थी, जो आने वाले समय में प्रदेश की राजनीति की दशा-दिशा तय करने वाली थी. यह वो दौर था जब कांशीराम का मायावती पर भरोसा काफी बढ़ गया था.

बहुजन समाज पार्टी के शुरुआती सभाओं में युवा मायावती और कांशीराम

दरअसल मायावती युवावस्था में आईएएस अफसर बनना चाहती थीं, मगर परिस्थितियों ने उन्हें पहले नेता बनाया फिर उनके सिर यूपी के मुख्यमंत्री का ताज सजाया.

प्रशासनिक सेवा में जाने की चाह रखने वाली दलित समुदाय की इस बेटी ने अपने सियासी सफर में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की नेता बनने से लेकर एसटी/एससी समुदाय के बीच खुद को सबसे बड़े हिमायती के रूप में स्थापित किया है.