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हमारी कोशिशों से जल्द खत्म होगा मणिपुर संकट: मुख्यमंत्री बीरेन सिंह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि कांग्रेस सरकार ने आपके लिए जो 15 साल में नहीं किया, वह हम सिर्फ 15 महीनों में कर देंगे

Kangkan Acharyya

2017 के मणिपुर विधानसभा चुनाव से पहले एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, 'कांग्रेस सरकार ने आपके लिए जो 15 साल में नहीं किया, वह हम सिर्फ 15 महीनों में कर देंगे.'

इस वादे का पूरा होना बेहद कठिन साबित होने वाला था. तब मणिपुर अपनी आबादी के मुख्य घटक मेती, नगा और कुकी समुदायों के बीच दशकों से चले आ रहे नस्लीय तनाव और टकराव से बुरी तरह ग्रस्त था.


यूनाइटेड नगा काउंसिल की आर्थिक नाकेबंदी से मैती बहुल घाटी में खाद्य सामग्री और अन्य जरूरी सामानों की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित थी. नाकेबंदी का पांचवां महीना चल रहा था.

लोगों ने भावावेश में कसम खाई थी

पुलिस और नागरिकों के बीच संघर्ष में नौ लोगों के खोने का दर्द भी पहाड़ों को सालता था. उनके शवों को करीब दो साल से दफन नहीं किया गया था. लोगों ने भावावेश में कसम खाई थी, वे उनके शरीरों के अवशेषों को तब तक अलविदा नहीं कहेंगे जब तक कि वह लक्ष्य हासिल नहीं हो जाता, जिसके लिए उन्होंने अपनी जानें दी थीं.

इन वादों और आकांक्षाओं को पूरा करने का काम मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को सौंपा गया, जो मणिपुर में बीजेपी की अगुवाई वाली पहली सरकार के मुखिया हैं. किसी राष्ट्रीय मीडिया को दिए गए अपने पहले साक्षात्कार में बीरेन सिंह ने आगे की चुनौतियों और राज्य के रिश्ते घावों को भरने की अपनी योजना पर बात की.

शांति प्रक्रिया जारी रखने के लिए समझौते के जिस फ्रेमवर्क पर भारत सरकार और विद्रोही एनएससीएन (आईएम) के बीच हस्ताक्षर हुए हैं, उसी पर मणिपुर की वर्तमान राजनीति घूम रही है.

राज्य की क्षेत्रीय अखंडता से समझौता

राज्य के लोगों को आशंका है कि केंद्र सरकार ने समझौते के फ्रेमवर्क में राज्य की क्षेत्रीय अखंडता से समझौता किया है. जब सरकार इसे सार्वजनिक करेगी तो लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी? आप इस बारे में क्या सोचते हैं?

नगा शांति प्रक्रिया से मणिपुर के लोगों को अब डरने का कोई कारण नहीं रहा. मुख्यतया लोगों का डर राज्य की क्षेत्रीय अखंडता से जुड़ा था.

एनएससीएन की लंबे समय से मांग थी कि असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के नगा बहुल क्षेत्रों का विलय कर एक वृहत्तर नागालिम का गठन किया जाए. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर के लोगों को पहले ही आश्वास्त किया है कि राज्य का विघटन किसी भी कीमत पर नहीं होगा.

मुझे अपने नेताओं पर मेरा पूरा भरोसा है

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी हमें इस बात का आश्वासन दिया है. केंद्र सरकार ने एनएससीएन (आईएम) को वार्ता में शामिल करने का भरोसा दिया है, लेकिन वे निश्चित तौर पर मणिपुर के क्षेत्रीय एकीकरण से संबंधित नहीं हैं. सरकार सभी वर्गों के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए काम कर रही है. मुझे अपने नेताओं पर मेरा पूरा भरोसा है.

लेकिन एनएससीएन बार-बार दावा करता है कि सरकार नागालिम की उसकी मांग से सहमत हो गई है?

यह उनकी मांग है. एनएससीएन को अपनी मांग सामने रखने का पूरा हक है. लेकिन यह भारत सरकार और मणिपुर सरकार को तय करना है कि संबंधित क्षेत्र उन्हें दिया जाएगा या नहीं. हम ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि नगा और मेती भाई-भाई हैं और हम सब एक साथ रहेंगे.

राजनैतिक सीमा के गठन का आधार

धर्म और नस्ल राजनैतिक सीमा के गठन का आधार नहीं हो सकते. अगर ऐसा होता तो कश्मीर को पाकिस्तान और पश्चिम बंगाल को बांग्लादेश के साथ होना चाहिए था. मेती और तांगखुल नगा अनंत काल से एक साथ रह रहे हैं. हम इतिहास से एक साथ जुड़े हुए हैं. नगालैंड में पहले तांगखुल नगा नहीं थे.

आंदोलन के दौरान कुछ तांगखुल नगा वहां शिफ्ट हुए. यह तथ्य इस बात का सबूत है कि तांगखुल नगा ऐतिहासिक रूप से मणिपुर के हैं, नागालैंड के नहीं. यह याद रखना चाहिए कि नगा नेता रिशान कीसिंग सबसे लंबे समय तक मणिपुर में राज करने वाले मुख्यमंत्री थे.

लेकिन क्या वे इससे सहमत होंगे? सबको पता है कि छोटी सी बात पर भी नगा गुट आर्थिक नाकेबंदी लागू कर देते हैं.

मणिपुर के विघटन की मांग

केवल कुछ नगा जिनके पास बंदूक है, वे मणिपुर के विघटन की मांग कर रहे हैं. लेकिन मैं उनको दोष नहीं दूंगा, क्योंकि इसके कारण भी हैं कि उन्होंने विद्रोह क्यों किया.

रुढ़िवादी हिंदू धर्म को मानने वाले मेती समुदाय में कुछ ऐसी परंपराएं थीं, जो छुआछूत की तरह थीं. इन परंपराओं ने उनकी भावनाओं को चोट पहुंचाया. आज भी ऐसे कुछ लोग हैं जो उन पुरानी परंपराओं का पालन कर रहे हैं जो मणिपुर में राजशाही के समय से चली आ रही हैं.

हम उनके दर्द को समझते हैं. हमने उन्हें समझाने का प्रयास किया है कि राजशाही की वजह से मेती समुदाय ने इस तरह का व्यवहार किया. उन्हें हमसे नाराज नहीं होना चाहिए. हकीकत में मेती और नगा खून के रिश्ते से भाई हैं, और हम एक हैं. आज की पीढ़ी पुराने नियमों का पालन नहीं करती. मेरा मानना है कि वे सहमत हों जाएंगे.

इन प्रयासों का क्या नतीजा निकला है?

आपकी सरकार मैदान में रहने वाले मेती और पहाड़ पर रहने वाले नगा और कुकी समुदायों को करीब लाने का प्रयास कर रही है. इन प्रयासों का क्या नतीजा निकला है?

लोगों का कहना है कि सामाजिक सद्भाव के लिए विकास ही एकमात्र शर्त है. लेकिन मेरी राय में आपसी विश्वास और विचारों का आदान-प्रदान भी उतना ही महत्वपूर्ण है. पिछली सरकार के दौरान इस तरह का प्रयास नहीं हुआ.

राज्य में मेती बड़ा समुदाय है, इसलिए उनकी बड़े भाई जैसी जिम्मेदारी बनती है. वर्तमान हालात मेती समुदाय से ज्यादा अपेक्षा रखता है. राज्य के बड़े हित को ध्यान में रखते हुए हमें छोटी गलतियां माफ करनी होगी.

समाज के रूप में हम इन मुद्दों में डूबे नहीं रह सकते

मुख्यमंत्री का कार्यभार संभालने के तुरंत बाद मेरा लक्ष्य पांच महीने से चल रही आर्थिक नाकेबंदी को खत्म कराना था. इसके लिए यूनाइटेड नगा काउंसिल के नेताओं को राजी करना था. यह हमारा चुनाव पूर्व वादा था. मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि वे जिन मुद्दों पर संघर्ष कर रहे हैं, उन पर वार्ता जारी रहेगी.

मैंने उनसे कहा कि मुद्दे तो हमेशा रहेंगे, लेकिन एक समाज के रूप में हम इन मुद्दों में डूबे नहीं रह सकते. हमें अपनी अगली पीढ़ी के बेहतर भविष्य के लिए आगे बढ़ना होगा. मैंने उन्हें आश्वासन दिया है कि मैं संविधान के दायरे में उनके लिए जो कुछ भी कर सकता हूं, वह करूंगा.

उन्होंने मुझ पर भरोसा जताया. मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि जेल में बंद यूनाइटेड नगा काउंसिल के नेता रिहा कर दिए जाएंगे, तब उन्होंने नाकेबंदी उठा ली. यह हमारे लिए बड़ी सफलता थी, क्योंकि नाकेबंदी खत्म कराने के लिए पहले किए गए तकरीबन सभी प्रयास किसी न किसी वजह से नाकाम हो गए थे.

मेरा अगला लक्ष्य...

मेरा अगला लक्ष्य अपनी सरकार के पहले 100 दिन के अंदर मणिपुर के हर पहाड़ी जिले में महिलाओं द्वारा संचालित बाजार स्थापित करना है.

महिलाओं द्वारा संचालित इम्फाल का पांच सदी पुराना ‘एमा मार्केट’ इन बाजारों के लिए मॉडल होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रोजेक्ट के लिए 150 करोड़ रुपए आवंटित किया है. मेरा मानना है कि विकास में समानता भावनात्मक लगाव के लिए आवश्यक है.

इन प्रयासों से स्पष्ट रूप से अच्छे नतीजे निकले हैं. जब मैं नगा वर्चस्व वाले जिले उर्खुल गया, जो मुइवा का जन्म स्थान भी है, तो स्वागत के लिए आई भीड़ को देखकर मैं अभिभूत हो गया.

मुख्यमंत्री के लिए जुटी अभूतपूर्व भीड़

मैंने देखा कि लोगों को मुझ पर भरोसा है. मैं उनसे बात करने के लिए अपने सुरक्षा घेरे से बाहर निकल गया. इससे वे भावुक हो गए. यह जन्म से मैती मणिपुर के एक मुख्यमंत्री के लिए जुटी अभूतपूर्व भीड़ थी. इस तरह का भावनात्मक लगाव हमने पहले कभी नहीं देखा था. अब मैदान के लोग बिना किसी भय या संदेह के पहाड़ों पर जाते हैं. हालात तेजी से बदल रहे हैं.

कूकी वर्चस्व वाले पहाड़ी इलाकों में लोगों ने अलग राज्य की अपनी लड़ाई के हिस्से के तौर 600 से ज्यादा दिनों से पुलिस फायरिंग में मारे गए 9 लोगों के मृत शरीर को संरक्षित कर रखा है. क्या इस स्थिति ने राज्य में टकराव की आशंका को बरकरार नहीं रखा है?

यह उन तमाम उदाहरणों में से एक है जो पिछली सरकार की उदासीनता को रेखांकित करती है. कानून के अनुसार 48 घंटे से ज्यादा समय तक किसी मृत शरीर को संरक्षित नहीं किया जा सकता है.

चुड़ाचंदपुर में कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ थी

आंदोलन के दौरान 2015 में पुलिस फायरिंग में नौ लोगों की मौत हुई थी. यह राज्य की जिम्मेदारी थी कि वह लोगों को मृतकों का अंतिम संस्कार करने के लिए समझाए. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ऐसा लग रहा है कि जैसे तब कोई सरकार ही नहीं थी.

इन नौ लोगों की तब मौत हुई थी जब पहाड़ी जिले चुड़ाचंदपुर में कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ गई थी. लोगों में गलतफहमी पैदा हो गई कि घाटी के लोग पहाड़ के निवासियों को भगाना चाहते हैं. ऐसा 2015 में विधानसभा में पारित तीन विधेयकों की वजह से हुआ.

लिहाजा लोगों ने मृतकों को दफनाने से मना कर दिया. अब यह मेरी अगली जिम्मेदारी है कि मैं लोगों को मृतकों को दफनाने के लिए राजी करूं.

केंद्र ने नागरिकता अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव किया है ताकि पड़ोसी देशों में रहने वाले धार्मिक अल्पसंख्यक भारत की नागरिकता ले सकें. पूर्वोत्तर के कई राज्यों ने इस संशोधन का विरोध किया है क्योंकि इससे बांग्लादेश से इस क्षेत्र प्रवासियों की बाढ़ आ जाएगी. हाल के दिनों में मणिपुर में भी इस विधेयक के खिलाफ प्रतिरोध देखा गया.

मोदीजी सभी मुद्दों को समझते हैं

मुझे लगता है कि केंद्र मणिपुर की सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करने पर विचार करेगा. भारत का संविधान भी ऐसे समाजों के हितों की सुरक्षा के प्रावधानों की अनुमति देता है जो भाषा और आबादी के लिहाज से अल्पसंख्यक हैं. मोदीजी सभी मुद्दों को समझते हैं और मुझे विश्वास है कि वे इस दिशा में कोई निर्णय लेने से पहले इस पहलू पर विचार करेंगे.

इनर लाइन परमिट

बीजेपी ने मणिपुर के लोगों को ‘इनर लाइन परमिट’ जैसा सिस्टम देने का आश्वासन दिया है. यह देश के दूसरे हिस्सों के लोगों को मणिपुर में बसने के अधिकार से वंचित करेगा.

मणिपुर के पहाड़ पहले से ही ऐसे कानून से संरक्षित हैं. वहां कोई बाहरी व्यक्ति जमीन नहीं खरीद सकता. मणिपुर में 92 प्रतिशत पहाडी इलाका है और बाकी 8 प्रतिशत मैदान है. घाटी के लोगों को आशंका है कि बाहर से भारी तादाद में लोग यहां आएंगे और इससे उनका अपना सांस्कृतिक वजूद खत्म हो जाएगा.

मणिपुर में म्यांमार और बांग्लादेश से पहले ही काफी लोग आए हैं. लिहाजा हमें लगता है कि इस बेरोकटोक आगमन को रोकने के लिए एक अधिनियम की आवश्यकता है. यह कानून भविष्य में होने वाले आगमन को नियंत्रित करेगा. पहले से आए हुए लोगों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा, यानी देश के दूसरे हिस्सों से जो लोग पहले ही मणिपुर आ गए हैं, वे यहां बने रहेंगे. हम इसे तैयार करते वक्त सभी संवैधानिक मानदंडों का पालन करेंगे.